लक्ष्य कृंिष की आय बढ़ाने का हो 

भूमि की उपजाऊ शक्ति का कम होना, भू-जल का स्तर नीचे जाना, पर्यावरण का प्रदूषित होना तथा मौसम में आ रहा परिवर्तन पंजाब की कृषि की गम्भीर समस्याओं तथा किसानों को दरपेश चुनौतियां हैं। वित्तीय तथा कृषि अनुसंधान में सरकारी लागत का कम होना किसानों तथा कृषि का भविष्य खतरे में दर्शाते हैं। किसानों की आन्दोलनों के माध्यम से भी मुख्य मांग यही है कि प्रो. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कृषि लागत सी2+50 प्रतिशत मुनाफा मिला कर फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) देने की कानूनी तौर पर गारंटी दी जाए तथा स्वामीनाथन रिपोर्ट में किसानों की बेहतरी के लिए की गई अन्य सिफारिशों को भी सरकार स्वीकार करे। ये सिफारिशें मुख्य तौर पर किसानों की आय बढ़ाने तथा उन्हें खुशहाल बनाने के लिए की गई हैं। 
किसानों की आय बढ़ाने के लिए उत्पादन बढ़ाने तथा कृषि को दीर्घकालिक बनाने की आवश्यकता है। किसान अपने उत्पादन का लाभदायक मंडीकरण कर सकें। लाभदायक मंडीकरण के लिए किसी निर्यात या भंडारण करने पर किसी प्रकार की रोक या अन्य किसी तरह की पाबंदी नहीं होनी चाहिए। कृषि अनुसंधान में लागत बढ़ा कर इसे मज़बूत किया जाए। मुख्य समस्या यह है कि सरकार की नीतियां उपभोक्ता पक्षीय हैं, परन्तु किसानों द्वारा की जा रही मांग के अनुसार ये नीतियां किसान तथा उत्पादक पक्षीय होनी चाहिएं। कृषि में 23 फसलें जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है, उनके अतिरिक्त अन्य भी कृषि उत्पादन हैं जैसे दूध, फलों व सब्ज़ियों की काश्त आदि। ये भी किसानों की आय को प्रभावित करते हैं। 
फलों तथा दूध को मिला कर फसलों के कृषि उत्पादन की तुलना में इनकी कीमत अधिक बनती है। इसलिए किसानों की आय 23 फसलों के अतिरिक्त कृषि से जुड़े अन्य सहायक व्यवसायों से भी काफी प्रभावित होती है। किसानों की और भी मांगें हैं जैसे ऋण माफी, कृषि मज़दूरों तथा किसानों के लिए पैंशन, दिहाड़ी की कम से कम मज़दूरी तथा मनरेगा श्रमिकों को किसानों के खेतों में काम करने की अनुमति देना आदि। इन सभी मांगों पर सरकार को विचार-विमर्श करके किसान पक्षीय फैसले लेने की ज़रूरत है। 
देश तथा पंजाब की बहुसंख्या का विकास तथा रोज़ी-रोटी का आधार कृषि है। देश में लगभग 49 प्रतिशत तथा पंजाब में 65 प्रतिशत के करीब लोग कृषि से ही अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं, परन्तु सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान कम होता जा रहा है। खाद्य सुरक्षा एवं संतुष्टि के लिए तथा गरीबी एवं बेरोज़गारी को कम करने के लिए प्राकृतिक स्रोतों का सूझबूझ से उपयोग करने की ज़रूरत है। चाहे अब दूसरे राज्य जैसे मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश आदि भी उत्पादन के पक्ष से आगे आ रहे हैं, परन्तु पंजाब उत्पादन में स्थिरता लाने में प्रभावशाली योगदान दे सकता है। 
उत्पादन बढ़ाने के लिए बीजों की महत्वपूर्ण भूमिका है। चाहे किसानों में बीज तथा नई किस्में अपनाने संबंधी चेतना बढ़ी है, परन्तु अभी भी बीज बदल दर कम है। संशोधित बीज अधिकतर किसानों तक किसान मेलों तथा किसान प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से पहुंचते हैं। बीज वितरण प्रबंधन की पूर्ण योजनाबंदी करने की ज़रूरत है ताकि ये छोटे किसानों तक, दूरवर्ती गांवों में भी पहुंचें। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना तथा कई अन्य संस्थानों द्वारा ऐसे यत्न किये जा रहे हैं। किसानों को कृषि को व्यापारिक तौर पर इसे लाभदायक बनाने की ज़रूरत है। कृषि व्यवसाय लाभ के लिए अपनाया जाए, सिर्फ गुज़ारे के लिए नहीं। पीढ़ी दर पीढ़ी ज़मीन पर अधिकारों के कारण खेतों का आकार लगातार कम हो रहा है। लगभग 60 प्रतिशत किसानों के पास 10 एकड़ से कम ज़मीन है। इसलिए किसानों की कृषि आय कम है, जिस कारण उनमें निराशा एवं मायूसी की लहर दौड़ रही है। लेज़र कराहे के इस्तेमाल को व्यापक स्तर पर उत्साहित किया जाना चाहिए। इस तकनीक से खेत समतल करने के बाद पानी एक समान लगता है और खादों का इस्तेमाल विशेष तौर पर यूरिया का उपयोग निपुणता से होता है।
 प्रति हैक्टेयर उत्पादन में वृद्धि होती है। पानी की बचत के लिए फसलों का उत्पादन बैड्ड-प्लांटिंग विधि अपना कर भी किया जा सकता है और धान में सीधी बिजाई करके भी। किसानों को ये सुविधाएं मशीनरी काल सैंटरों के माध्यम से मुहैया करने के साथ-साथ रियायती दरों पर उपलब्ध की जानी चाहिएं। किसानों का लक्ष्य आय में वृद्धि करना होना चाहिए, जिसके लिए सरकार उनकी सहायता करे।