पश्चिम बंगाल में बने नाज़ुक हालात 

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे निकट आ रहे हैं, वैसे-वैसे ही देश का राजनीतिक माहौल गर्माता जा रहा है। जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी चुनाव प्रचार को लेकर पूरी तरह सक्रिय प्रतीत होती है, वहीं देश के भिन्न-भिन्न भागों में कांग्रेस समेत अन्य प्रांतीय पार्टियां भी इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंकने का यत्न कर रही हैं। राजनीतिक पार्टियां सियासी लाभ लेने के लिए लोगों को जाति व धर्म के नाम पर बांटने का भी निरन्तर यत्न कर रही हैं। उत्तरी-पूर्वी प्रदेश मणिपुर में कूकी तथा मैतेयी समुदायों के बीच भयावह हिंसक टकराव चाहे लोकसभा चुनावों की घोषणा से कई माह पहले शुरू हुआ था, परन्तु किसी न किसी रूप में इनका प्रभाव लोकसभा चुनावों पर पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि अभी तक भी इस समस्या का कोई  समाधान नहीं हो पाया। इस मामले से अच्छी तरह से न निपटने के कारण केन्द्र की भाजपा सरकार की भी बड़ी बदनामी हुई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस प्रदेश का एक बार भी दौरा न किये जाने ने सरकार की छवि को धूमिल अवश्य किया है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां मणिपुर के घटनाक्रम को भी इन चुनावों में एक मुद्दा बना रही हैं।  
इन चुनावों से पहले देश के अनेक प्रदेशों में अलग-अलग पार्टियों के भीतर व्यापक स्तर पर टूट-फूट हो रही है। महाराष्ट्र में भी शिव सेना के दोफाड़ होने के कारण राजनीति पूरी तरह गर्मायी दिखाई दे रही है। इस सब कुछ के बावजूद ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री होते हुए जो कुछ पश्चिम बंगाल में घटित होता रहा है, वह चिन्ताजनक भी है और भयावह भी है। यहां ममता ने प्रत्येक पक्ष से अपनी पूरी शक्ति बना कर प्रदेश में कांग्रेस तथा मार्क्सी पार्टी, जिसने अढ़ाई दशक तक यहां प्रसाशन चलाया था, को आज हाशिये पर धकेल दिया है, परन्तु दूसरी ओर विगत काफी लम्बे समय से भारतीय जनता पार्टी अपनी निर्धारित नीति के तहत वहां हमलावर बनी रही है, जिससे तृणमूल कांग्रेस तथा भाजपा के बीच सख्त टकराव हो रहा है, जो अक्सर रक्तिम झड़पों का रूप भी धारण कर लेता है। केन्द्र सरकार ने भी यहां अपनी एजेंसियों को पूरी तरह सक्रिय करके दबाव बनाने की नीति जारी रखी हुई है, जिसका परिणाम अक्सर तनाव में वृद्धि में ही निकलता दिखाई देता रहा है। 
काफी समय पहले फरवरी 2019 में शारदा चिट फंड मामले के संबंध में तत्कालीन कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए जब सी.बी.आई. की टीम उनके निवास स्थान पर पहुंची थी तो मुख्यमंत्री होते न सिर्फ ममता बैनर्जी उनके घर ही पहुंच गई थीं, अपितु केन्द्रीय एजेंसी के विरुद्ध कोलकाता के धर्म पल्ला मैट्रो स्टेशन के पास धरने पर भी बैठ गई थीं, जिसकी उस समय बड़ी चर्चा हुई थी। इसी तरह केन्द्रीय एजेंसियों ने तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता एवं मंत्री के ठिकानों पर छापामारी करके  भारी संख्या में करोड़ों रुपये के बंडल बरामद किये थे, जिससे प्रदेश सरकार की छवि को भारी आघात पहुंचा था तथा भाजपा ने इसके विरुद्ध स्थान-स्थान पर बड़े जनसमूहों में यह घोषणा की थी कि दीदी अपने भ्रष्टाचारी नेताओं को बचाने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है। कुछ मास पहले सन्देशखली में राशन घोटाले के आरोप में तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख के घर केन्द्रीय बल जब छापामारी के लिए पहुंची थी तो पार्टी से संबंधित स्थानीय लोगों ने बड़ा हमला करके अधिकारियों को बुरी तरह घायल कर दिया था। स्थानीय पुलिस यह सब कुछ देखती रही थी। इसके बाद सन्देशखली में शाहजहां शेख के साथियों की ओर से वहां के लोगों को हर तरह से निशाना बनाया गया तथा व्यापक स्तर पर उसकी ओर से स्थानीय महिलाओं के प्रति हिंसा भी की गई। इस घटनाक्रम ने प्रदेश सरकार को एक तरह से दीवार की ओर धकेल दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस तथा वामपंथी पार्टियां इस समूचे घटनाक्रम पर दोहरी नीति अपना कर चल रही हैं। जहां इन दोनों पार्टियों के नेता केन्द्र पर अपनी एजेंसियों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाते रहे हैं, वहीं वे ममता के कुशासन तथा व्यापक स्तर पर किये जाते भ्रष्टाचार के अतिरिक्त उनकी पार्टी की ओर से अक्सर गुंडागर्दी किये जाने की आलोचना भी करते रहे हैं।
इस सब कुछ के बीच पिछले दशकों में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपना प्रभाव बढ़ाया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की 42 सीटों में से भाजपा को 18 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी जबकि तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें और कांग्रेस को 2 सीटें प्राप्त हुई थीं। मौजूदा हालात में भी भाजपा प्रदेश में हो रहे लोकसभा चुनाव पूरी तरह आक्रामक रुख धारण करके लड़ती दिखाई दे रही है, जिस कारण आगामी दिनों में इस प्रदेश में अधिक तनाव एवं गड़बड़ फैलने की आशंका बन गई है, जो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द