काले धन के ऊंचे होते पहाड़

विगत कुछ वर्षों से अत्यधिक चर्चित रही केन्द्रीय जांच एजेंसी इन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट यानि ई.डी. की ओर से विगत कुछ ही दिनों के अन्तराल में दो विभिन्न राज्यों से करोड़ों रुपये की नकदी के रूप में काले धन की बरामदगी की घटनाओं ने देश और विदेशों में भी, भारतीय नागरिकों को चौंका कर रख दिया है। एक घटना में ई.डी. ने उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध व्यवसायी नगर आगरा में एक प्रसिद्ध जूता व्यापारी की विभिन्न इकाइयों पर मारे गये छापों के दौरान एक सौ करोड़ रुपये से अधिक की नकदी बरामद की। नोटों के रूप में यह बरामदगी बिस्तर-बाक्स आदि कई स्थानों पर छिपा कर रखी गई थी। दूसरी बरामदगी झारखंड के एक मंत्री के सचिव के निजी नौकर के घर से की गई जहां एक बड़ी इमारत के एक बड़े कमरे में ढेरों के रूप में रखे गये नये-पुराने नोटों की गड्डियों की कुल कीमत 32.36 करोड़ रुपये थी जबकि मंत्री के सचिव के एक अन्य परिचित के घर से भी 3 करोड़ रुपये से अधिक की नकद धन-राशि बरामद हुई। ऐसा नहीं कि किसी एक जगह से एक ही बार में इतनी बड़ी मात्रा में नकद धन-राशि मिलने की ऐसी कोई घटना देश में पहली बार हुई हो, अथवा यह घटना इस सिलसिले की अंतिम घटना सिद्ध हो,किन्तु ये दोनों घटनाएं चौंकाती भी हैं, और संदेहों के निशान भी छोड़ती हैं। इनमें से एक संदेह यह भी हो सकता है, कि चूंकि देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव हेतु भारी गहमा-गहमी चल रही है, अत: सम्भव है कि इस काले धन का इस्तेमाल इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित किये जाने के उद्देश्य से किया जाना हो। आशंका यह भी हो सकती है, कि पता नहीं ऐसा और कितना काला धन कुछ और लोगों के पास भी हो।
इतनी बड़ी मात्रा में नकद धन राशि के पहाड़ मिलने की एक अन्य घटना विगत में प. बंगाल में भी हुई थी जहां तत्कालीन शिक्षा मंत्री की एक परिचित महिला के घर से करोड़ों रुपये की धन-राशि सूटकेसों में बंद करके रखी पाई गई थी। पिछले वर्ष दिसम्बर मास में उड़ीसा के एक सांसद के घर और उसकी शराब फैक्टरी के कई व्यवसायिक ठिकानों पर एक साथ मारे गये छापों के दौरान 351 करोड़ रुपये की धन-राशि बरामद की गई थी।  इस धन-राशि के एकाधिक पहाड़ कितने ऊंचे थे, इसका अनुमान इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि नोट गिनने वाली 40 मशीनों से लगातार पांच दिन में लगभग 150 अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने सौ, दो सौ और पांच सौ के नोटों को गिनने का काम निपटाया था। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश के कानपुर में भी एक इत्र-फरोश के घर और व्यापारिक स्थलों से 200 करोड़ रुपये की नकदी और 200 करोड़ रुपये के आभूषण भी बरामद किये गये थे। मौजूदा बरामदगी की गिनती के लिए आठ मशीनों के साथ कई बैंक कर्र्मचारियों को तैनात किया गया था। कथित नौकर के घर से कुछ स्वर्णाभूषण भी बरामद किये गये हैं। कर्नाटक के एक भाजपा विधायक के बेटे के घर से 6 करोड़ रुपये की नकदी बरामद किये जाने और इसी प्रदेश के एक पूर्व मंत्री के निवास से दो वर्ष पूर्व बरामद हुई बड़ी मात्रा में नकद धन-राशि का मामला भी इसी सूचि में शुमार होता है।
नि:संदेह यह बरामदगी एक ओर तो देश में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के नये स्थापित होते आयामों का संकेत देती है, वहीं इससे काले धन के ऊंचे होते पहाड़ों का भी पता चलता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस बरामदगी को भ्रष्टाचार की कमाई करार दिया है। एक अन्तर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार भ्रष्टाचार के धरातल पर भारत का स्थान विश्व के 180 देशों की सूचि में  79वां है। इसी प्रकार भारत में रिश्वत लिये जाने की दर 47 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है। विगत दो वर्ष में रिश्वत और घपलेबाज़ी के तौर पर बैंकों के लगभग 60,000 करोड़ रुपये डूब जाने की रिपोर्ट दर्ज की गई है। 
नि:संदेह काले धन के रूप में बरामद हुई यह सम्पूर्ण धन-राशि राजनीति एवं सत्ता-संरक्षण के बिना जमा नहीं हो सकती। हम समझते हैं कि देश की राजनीति में मौजूदा तौर पर जिस प्रकार के अवसान की स्थिति दिखाई देती है, वह कमोबेश इसी सत्ता-संरक्षण की उपज है। इस प्रकार की धन-राशि का उपयोग नि:संदेह रूप से चुनावी रिश्वत अथवा अन्य कई प्रकार के गलत कार्यों हेतु ही किया जाना था। ऐसा भी देखने में आया है कि राजनीति में कुछ नेता लोग काले धन को खुले-बंदों खर्च करके राजनीतिक सत्ता प्राप्त करते हैं, और फिर इसी सत्ता-संरक्षण के बल पर खर्च किये गये धन से कई गुणा अधिक धन एकत्रित कर लेने हेतु सभी प्रकार के वैध-अवैध कृ त्य करते हैं। कर्नाटक का मौजूदा यौन-शोषण कांड भी कुछ इसी प्रकार के राजनीतिक संरक्षण और धन-बल के आधार पर हासिल सत्ता-बल के दुरुपयोग की ही उपज है। हम समझते हैं कि राजनीति के कई छोरों से बेशक ई.डी. पर पक्ष-पोषण की अनेक उंगलियां उठी हो सकती हैं, किन्तु इस प्रकार की बरामदगियों ने ई.डी. की छवि को बेद़ाग भी रखा है। ऐसा कोई मामला न तो पहला है, और न ही यह अन्तिम हो सकता है, किन्तु ई.डी. की इस प्रकार की कार्रवाइयां लोकसभा के लिए हो रही चुनावी गतिविधियों अथवा देश की आर्थिकता पर कैसा प्रभाव डालती हैं, यह आगामी समय में देखने वाली बात होगी।