चाबहार बंदरगाह समझौता और अमरीका की आपत्ति

भारत ने ईरान के साथ चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए एक समझौता किया है। 10 वर्षों के लिए हुए इस समझौते पर दोनों देशों के संधि पत्र पर हस्ताक्षर भी हो चुके हैं। हस्ताक्षर के चंद घंटों बाद भी अमरीकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने भारत को चेतावनी दे दी। कहा गया कि तेहरान के साथ व्यापार समझौता करने वाले किसी को भी इससे जुड़े प्रतिबंधों के संभावित खतरों का ज्ञान होना चाहिए यानि संधि करने वाले देश को अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि पटेल ने यह साफ नहीं किया कि समझौते के बाद अमरीका भारत पर प्रतिबंध लगाएगा या नहीं, लेकिन इतना ज़रूर कहा कि ईरान पर प्रतिबंध जारी रहेंगे किंतु इस चेतावनी से जुड़े बयान के साथ ही यह भी कहा कि भारत सरकार अपनी विदेश नीति को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। अमरीका की यह आपत्ति भारत के इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान के बंदरगाह एवं समुद्री संगठन के बीच 13 मई को 10 साल के लिए समझौता हुआ है। भारत के जहाज़रानी मंत्री सर्बानंद सोनोबाल ने ईरान पहुंच कर अपने समकक्ष के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 2016 में भी ईरान और भारत के बीच चाबहार बंदरगाह संचालन हेतु समझौता हुआ था। इस नए समझौते को उसी समझौते का नवीनीकरण होना बताया जा रहा है। अमरीकी आपत्ति की परवाह किए बिना विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि इस समझौते से बंदरगाह में बड़े निवेश का रास्ता खुलेगा। लोगों को इसे लेकर संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए। जबकि अमरीका पहले इस बंदरगाह की प्रासंगिकता की सरहाना करता रहा है।
इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी। भारत सरकार की यह संस्था सागर माला विकास कम्पनी की सहायक कम्पनी है। कम्पनी की वेबसाइट के मुताबिक चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह को विकसित करने के लिए ही इस कम्पनी को अस्तित्व में लाया गया था। इसका लक्ष्य भूमि से घिरे अफगानिसतान और मध्य-एशियाई देशों के लिए मार्ग तैयार करना है। यह कम्पनी कंटेनरों के संचालन से लेकर वेयर हाउसिंग तक का काम करती है। इंडिया पोर्ट ने इस बंदरगाह का संचालन सबसे पहले साल 2018 के अंत में शुरू किया था। तब ईरान के परमाणु कार्यक्रम, मानवाधिकार उल्लंघन और चरमपंथी संगठनों को मदद करने के आरोप में अमरीका ने ईरान पर तब से अनेक व्यापक असर डालने वाले प्रतिबंध लगाए हुए हैं। इन प्रतिबंधों के दायरे में ऐसे व्यापार और देश भी शामिल हैं, जो ईरान के साथ मिल कर काम कर रहे हैं। भारत की भी कुछ कम्पनियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। 1998 में जब पोखरन में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था तब भी अमरीका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे। हालांकि भारत ने ऐसे प्रतिबंधों की कभी परवाह नहीं की और वह ईरान समेत अनेक देशों से द्विपक्षीय वार्ताएं और समझौते करता रहा है।
अमरीका जो भी सोचे, भारत के लिए यह समझौता एक बड़े व्यापरिक-सामरिक लाभ तो देगा ही, चीन और पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी भी है। अतएव पाकिस्तान और चीन की सभी कूटनीतियों को दरकिनार करते हुए भारत ईरान के रास्ते अफगानिसतान और मध्य-एशियाई देशों पहुंचने वाले वैकल्पिक मार्ग, अर्थात चाबहार बंदरगाह के अधूरे काम को पूरा करने के समझौते के नवीनीकरण में सफल हो गया है। भारत अपने पूंजी निवेश से इस बंदरगाह पर पांच गोदियों का निर्माण कर रहा है, इनमें से दो बनकर तैयार हो गई हैं। इन्हीं में से एक पर भारत ने एक साल पहले गेहूं से भरा जहाज़ इस बंदरगाह पर भेजा था, जिसकी अगवानी ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने की थी। इसी के साथ इस बंदरगाह का औपचारिक उद्घाटन भी सम्पन्न हो गया था। भारत के लिए यह बंदरगाह आर्थिक, सामरिक एवं रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। इस परियोजना के पहले चरण को ‘शाहिद बेहश्ती पोर्ट’ के नाम से जाना जाएगा। वैसे चाबहार का अर्थ चारों ओर बहार अर्थात खुशहाली से है।
ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित इस बंदरगाह की भौगोलिक स्थिति बेहद अहम् है। चाबहार ओमान की खाड़ी में स्थित है। अतएव यह बंदरगाह भारत के लिए मध्य एशिया, यूरोप, रूस और अफगानिस्तान में प्रवेश के लिए एक द्वार माना जाता है। चाबहार के सबसे निकट गुजरात की कंडला बंदरगाह (1016 कि.मी.) है और मुम्बई बंदरगाह की दूरी 1455 कि.मी. है। यहां से महज 140 किमी दूर पाकिस्तान की ग्वादर बंदरगाह है। इसे चीन ने विकसित किया है। यह बहुत पहले से संचालित है। दरअसल पाकिस्तान ने कूटनीतिक चाल चलते हुए अपने क्षेत्र से भारतीय जहाज़ों को अफगानिस्तान ले जाने से मना कर दिया था। नतीजतन भारत ने वैकल्पिक मार्ग की तलाश की और चाबहार बंदरगाह ईरान के साथ हुए द्विपक्षीय समझौते के बाद अस्तित्व में आई। भारत के लिए यह रास्ता इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान और चीन की मिली-जुली रणनीति के तहत भारत को दक्षिण एशिया में हाशिए पर डालने की कुटिल चाल अपनाई हुई है। चीन ने दक्षिण एशिया में बड़ा पूंजी निवेश करते हुए पाक, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों से मज़बूत आर्थिक व सामरिक संबंध बना लिए हैं। इनके ज़रिए चीन एवं पाकिस्तान ने भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार को प्रतिबंधित करने की कोशिश की थी, जो अब नाकाम हो गई है। भारत से बंदरगाह बनवाए जाने की बुनियाद 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ईरानी राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी ने डाली थी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सकारात्मक पहल के बाद परवान चढ़ रही है। ईरान और भारत के बीच हुए इस समझौते के संदर्भ में एक बार फिर अमरीका का दोहरा रवैया देखने में अया है। अमरीका जहां दुनियाभर के देशों को ईरान और रूस के साथ व्यापार नहीं करने के लिए कहता रहता है, वहीं वह खुद दो साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद रूस से यूरेनियम खरीदता रहा है। 
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