इस बार टूट रहा गर्मी का रिकार्ड

ग्लोबल वार्मिंग भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। 2024 के पहले चारों महीनों और अप्रैल में बढ़ते तापमान ने कई रिकॉर्ड तोड़ कर यह संकेत दे दिए हैं कि मनुष्य का अस्तित्व खतरा में पड़ रहा है। समय रहते मनुष्य नहीं संभला तो मानव जाति को भीषण प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफार्मेशन (एनसीईआई) की रिपोर्ट के मुताबिक 175 वर्षों के जलवायु रिकॉर्ड में कभी भी अप्रैल इतना गर्म नहीं रहा। उधर अंटार्कटिका की बर्फ के गहन रासायनिक विश्लेषण से पता चला है कि अब वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड वृद्धि की दर पिछले 50 हज़ार सालों की तुलना में 10 गुना तेज़ है। यह वृद्धि दर मुख्य रूप से मानव जनित उत्सर्जन के कारण इतनी ज्यादा है। दरअसल कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीन हाउस गैस है जो वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। जब कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में प्रवेश करती है तो यह ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण जलवायु को गर्म कर देती है। अतीत में हिमयुग चक्रों और अन्य प्राकृतिक कारणों से इसके स्तर में उतार-चढ़ाव होता रहा है, लेकिन वर्तमान में मानवजनित उत्सर्जन के कारण यह बढ़ रही है।
कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन पृथ्वी के वातावरण में सूरज की गर्मी को अपने अंदर रोकती हैं। यह ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से भी मौजूद हैं। मानव गतिविधियों, विशेष रूप से बिजली वाहनों, कारखानों और घरों में जीवाश्म ईंधन यानी कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। पेड़ों को काटने सहित अन्य गतिविधियां भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं। वायुमंडल में इन ग्रीन हाउस गैसों की उच्च मात्रा पृथ्वी पर अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। 1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक और बढ़ सकता है।
वैश्विक तापमान में वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग सूखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है। एक गर्म जलवायु में वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और बारिश कर सकता है जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री सतह का तापमान भी बढ़ जाता है क्योंकि पृथ्वी के वातावरण की अधिकांश गर्मी समुद्र द्वारा अवशोषित हो जाती है। गर्म समुद्री सतह के तापमान के कारण तूफान का बनना आसान हो जाता है। मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह आशंका जताई जाती है कि तूफान से वर्षा की दर बढ़ेगी। तूफान की तीव्रता बढ़ जाएगी और श्रेणी 4 या 5 के स्तर तक पहुंचने वाले तूफानों का अनुपात बढ़ जाएगा। 
ग्लोबल वार्मिंग दो मुख्य तरीकों से समुद्र के जल स्तर को बढ़ाने में योगदान देती है। सबसे पहले, गर्म तापमान के कारण ग्लेशियर और भूमि आधारित बर्फ की परतें तेज़ी से पिघलती हैं, जो ज़मीन से समुद्र तक पानी ले जाती हैं। दुनिया भर में बर्फ पिघलाने वाले क्षेत्रों में ग्रीनलैंड, अंटार्कटिक और पहाड़ के ग्लेशियर शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन 2019 अनुसार ग्लोबल वार्मिंग की वजह 2100 तक 80 फीसदी ग्लेशियर पिघल कर सिकुड़ सकते हैं।  (अदिति)