खनन माफिया का बढ़ता दु:साहस

पंजाब के ज़िला जालन्धर के शाहकोट से गुज़रते दरिया सतलुज पर हो रहे अवैध रेत खनन की कार्रवाई पर छापेमारी करने गए सरकारी कर्मचारी दल पर हुए हमले ने एक ओर जहां प्रदेश में अवैध खनन के निरंकुशता से जारी होने की पोल खोली है, वहीं खनन माफिया की दबंगता का क्रूर चेहरा भी सामने ला खड़ा किया है। बड़े स्तर पर हो रहे इस रेत खनन की सूचना मिलने पर जैसे ही सम्बद्ध विभाग का कर्मचारी दल पुलिस के साथ मौका पर पहुंचा, खनन माफिया के अनेत हथियारबंद लोगों ने सामूहिक रूप से उन पर हमला बोल दिया और उनके वाहनों की तोड़फोड़ की। स्थिति इतनी विकट और गम्भीर हो चली थी कि सरकारी अमले के बचाव हेतु उनके साथ गये अंग-रक्षक को हवाई फायर तक करना पड़ा। यहां तक कि सरकारी अमले को इधर-उधर भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी। खनन माफिया की दबंगता का आलम यह रहा कि हमलावर सरकारी वाहनों से दस्तावेज़ों से भरा एक बैग, चालान पुस्तिका और अन्य कुछ सामान भी उठा ले गए। अधिकारियों ने मौका से अवैध रूप से खनन में प्रयुक्त होने वाला सामान और कई वाहन तो बरामद किये किन्तु हमलावर फरार होने में सफल रहे। इस खनन माफिया के तार जालन्धर के अतिरिक्त रोपड़ एवं अन्य कई शहरों में भी पाये गये हैं जहां से यह दरिया गुजरता है। पुलिस कार्य बल ने इसके दृष्टिगत कई अन्य केन्द्रों पर भी छापे-मारी की है। इन स्थलों से करोड़ों रुपये की नकदी के रूप में काले धन की बरामदगी, सत्ता-हस्तक्षेप की कहानी भी बयां करती है। 
नि:संदेह ऐसी कोई घटना खनन माफिया के सदस्यों के दु:साहस की पराकाष्ठा का ही प्रमाण है। वैसे इस किस्म की यह कोई पहली घटना नहीं है, न ही यह कोई अन्तिम घटना हो सकती है। प्रदेश में होते अवैध खनन और इसके भीतर उपजने वाले माफिया की ओर से ऐसी घटनाएं प्राय: आम होती रहती हैं, किन्तु इन तत्वों को राजनीतिक और सत्ता-संरक्षण प्राप्त होने से इनका कभी बाल भी बांका नहीं होता। कई बार इन माफिया की ओर से किये गये हमलों में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की जान भी चली गई है। दो वर्ष पूर्व हरियाणा के नूह में अरावली की पहाड़ियों पर अवैध खनन करने वाले माफिया ने एक डी.एस.पी. पर डम्पर चढ़ा कर उनकी हत्या कर दी थी। इसी प्रकार करनाल में भी एक डी.एस.पी. को जीप से कुचलने का दु:साहस किया गया, किन्तु अधिकारी अपनी कुशलता से बचने में कामयाब हो गया। इस प्रकार की अन्य अनेक घटनाएं भी पंजाब और हरियाणा में होती रहती हैं, किन्तु इन माफियाओं के दांत इतने तीव्र और विषाक्त हो चुके हैं, कि किसी की भी गर्दन को काटने हेतु झपट पड़ते हैं। इनके दांतों के पैनेपन का एहसास इस एक तथ्य से भी हो जाता है कि विगत वर्ष सर्वोच्च न्यायालय तक को अवैध खनन के विरुद्ध स्वत: संज्ञान लेते हुए कठोर टिप्पणी करनी पड़ी थी। सर्वोच्च अदालत ने तो फिलहाल खनन की नई मंजूरी न देने का भी प्रस्ताव दिया था।
अवैध खनन के धरातल का एक सर्वाधिक गम्भीर पक्ष यह है कि सभी राजनीतिक दल इस अभिशाप से अवगत होते हैं। वे अवैध खनन को रोकने और माफियाओं पर अंकुश लगाने के बड़े-बड़े दावे और दमगजे तो हवाओं में उछालते हैं, किन्तु ज़रा-सा समय व्यतीत होते ही सभी इस हमाम में नहाने हेतु सीढ़ियां उतर जाते हैं। एक समय प्रदेश के 26 विधायक अवैध खनन हेतु प्रशासनिक तंत्र के राडार पर थे। पंजाब के एक मंत्री की कुर्सी भी इस अवैध खनन माफिया की भेंट चढ़ गई थी। प्राय: सभी सरकारों के दौर में अवैध खनन की कार्रवाइयां जारी रहते आई हैं। मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी ज़ोर-शोर से खनन माफियाओं को खत्म करने की घोषणाएं की थीं, किन्तु मौजूदा राजनीतिक वर्ग एवं सत्ता पक्ष भी पूर्व के राजनीतिज्ञों की भांति माफियाओं के रंगमहल में शुमार हो गया प्रतीत होता है। तभी तो खनन माफियाओं द्वारा अधिकारी वर्ग को आगे-आगे दौड़ाने की घटनाएं समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी हैं। अभी हाल ही में खनन-गतिविधियों से सम्बद्ध एक वर्ग ने, एक विधायक द्वारा सरेआम रंगदारी मांगे जाने की शिकायत को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया था।
हम समझते हैं कि वर्तमान में नदियों एवं पहाड़ों पर अवैध खनन की कार्रवाइयों में बड़े स्तर पर इज़ाफा हुआ है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि यह धंधा करोड़ों रुपये की अवैध कमाई का साधन बन गया है। रेत और बजरी जैसी निर्माण सामग्री सस्ती होने के दावों के विपरीत और महंगी होती गई है। पंजाब में इस समय लगभग 125 अधिकृत खदानें हैं, और अधिकतर में काम बंद होने के बावजूद अवैध खनन ज़ोर-शोर से जारी है। इसी प्रकार निजी खदानों से भी, अवैध खुदाई की क्रिया प्राय: जारी रहती है। वर्तमान चुनावी माहौल में तो यह कार्य द्रुत गति से हो रहा है। अरावली की पहाड़ियों का एक बड़ा भाग इन माफियाओं की भेंट चढ़ चुका है। यहां तक कि सेना की पश्चिमी कमान को भी एक बार चेतावनी जारी करनी पड़ी थी कि नदियों-पहाड़ों से इस प्रकार अनियंत्रित एवं अनियोजित तकीके से खुदाई करते जाने से देश की सीमांत अखण्डता को खतरा उत्पन्न हो सकता है। हम समझते हैं कि मौजूदा सरकार को निहित स्वार्थपूर्ण राजनीति से ऊपर उठ कर रेत एवं पहाड़ खनन को यथासम्भव और यथाशक्ति नियोजित करके इसे जनहित के तौर पर नीति-गत बनाना चाहिए। इस हेतु अवैध खनन माफियाओं के गिरेबां पर दृढ़ता से हाथ डालना बहुत ज़रूरी है। इससे एक ओर जहां अवैध खनन पर सचमुच अंकुश लगाया जा सकेगा, वहीं जन-साधारण को भी सही कीमतों पर इस निर्माण सामग्री को उपलब्ध कराया जा सकता है।

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