जन फतवा
लोकसभा के चुनावों के परिणाम जहां आश्चर्यचकित करने वाले एवं दिलचस्प हैं, वहीं इन्होंने भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक और मज़बूत कड़ी जोड़ दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) सरकार जिसकी मुख्य भागीदार पार्टी भाजपा है, पिछले 10 वर्ष से देश का प्रशासन चलाती आ रही है। इस समय के दौरान राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं अन्य क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन होते रहे हैं। जहां श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में धरातल पर अनेक बदलाव देखे गये, वहीं इस समय के दौरान सरकार की ओर से लिए गए कई बड़े-छोटे फैसलों के कारण उनकी कड़ी आलोचना भी होती रही है।
देश के विकास तथा इसकी आर्थिक मज़बूती के पक्ष से भी लगातार सरकार की जांच-पड़ताल की जाती रही है, परन्तु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि नरेन्द्र मोदी देश में न सिर्फ बेहद ऊंचे रुतबे वाले नेता के रूप में ही उभरे हैं, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी बड़ी पहचान बनी है। आधुनिक भारत में पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद नरेन्द्र मोदी ही अक्सर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर छाये रहे हैं। पिछले डेढ़ मास से सात चरणों में हुये चुनावों में एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाला एन.डी.ए. था तथा दूसरी तरफ राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने डेढ़ दर्जन से अधिक पार्टियों के साथ मिल कर ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया था ताकि सांझे रूप में नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा का मुकाबला किया जा सके। एन.डी.ए. गठबंधन की ओर से ये चुनाव मुख्य रूप में मोदी के नाम पर ही लड़े गये हैं। वर्ष 2019 के चुनावों में भाजपा ने 303 सीटें जीती थीं। इस बार 18वें लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा नेतृत्व ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में कड़ी मेहनत की है। भाजपा ने इन 18वीं लोकसभा के चुनावों से पहले अपने लक्ष्य निर्धारित किये थे, जिनकी व्याख्या करते हुये उनके प्रवक्ताओं ने इस बार पार्टी की ओर से अपने तौर पर 370 सीटें जीतने की घोषणा की थी तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से 400 सीटें पार करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। पिछली बार लोकसभा की कुल 543 सीटों में से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास 352 सीटें थीं। इस बार प्रधानमंत्री ने समूचे रूप में 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करने की बात की थी।
देश में नया संविधान अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस ही ऐसी पार्टी थी, जो श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद 1984 में इस लक्ष्य के आस-पास पहुंच सकी थी। इस बार भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों की ओर भी पूरा ध्यान केन्द्रित किया था, क्योंकि तमिलनाडू तथा केरल जैसे राज्यों में इसकी कोई भी सीट नहीं थी। चुनाव परिणाम सामने आने के बाद यह बात तो स्पष्ट हो रही है कि श्री मोदी के नेतृत्व में एन.डी.ए. तीसरी बार सरकार बनाने जा रहा है। चाहे इसमें भाजपा का पहले की भांति बड़ा दबदबा नहीं होगा, क्योंकि अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार अकेले बहुमत हासिल करने से वंचित रह जाने के कारण इसे अपनी भागीदार पार्टियों का अधिक सहयोग लेना पड़ेगा।
नई केन्द्र सरकार के लिए अपनी अहम नीतियां बनाने के समय संयम से काम लेते हुए अपने भागीदारों के साथ विचार-विमर्श करके काम करना ज़रूरी होगा। आगामी दिनों में यदि नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह इस कतार में पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ खड़े दिखाई देंगे। ‘इंडिया’ गठबंधन में जहां कांग्रेस एक बड़ी पार्टी बन कर उभरी है, वहीं समाजवादी पार्टी, डी.एम.के. तथा टी.एम.सी., नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी आदि उसकी भीगीदार पार्टियां भी आने वाले समय में देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाएंगी। दूसरी तरफ एन.डी.ए. में सरकार बनाने में टी.डी.पी. तथा जनता दल (संयुक्त) तथा लोक जन शक्ति आदि पार्टियों की भी विशेष भूमिका रहेगी। हम महसूस करते हैं कि किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्षी पार्टियों का मज़बूत होना भी बेहद ज़रूरी होता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द