बेहतर स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित व पौष्टिक भोजन ज़रूरी
आज के लिए विशेष
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस हर वर्ष 7 जून को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना और खाद्य जनित रोगों पर नियंत्रण के उपायों को प्रोत्साहित करना है। इस वर्ष की थीम ‘सुरक्षित भोजन बेहतर स्वास्थ्य’ रखी गई है। मानव जीवन के लिए खाद्य पदार्थों की सुरक्षा अति महत्वपूर्ण है। लोगों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन का प्रकृति प्रदत अधिकार है। राज्य का दायित्व है कि प्रकृति की ओर से प्रदान किए गए अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन करे। खाद्य सुरक्षा का अधिकार भी इसमें शामिल है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में हर साल चार लाख बीस हज़ार लोग दूषित खाने की वजह से अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। दुनियाभर में लगभग 10 में से एक व्यक्ति दूषित भोजन का सेवन करने से बीमार पड़ जाता है जो कि सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। इस वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस हम ऐसे समय में मनाने जा रहे हैं जब भारत भूख और गरीबी के दल दल से बाहर निकलने के लिए निरन्तर प्रयासरत है। खाद्य सुरक्षा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में विशेष रूप से संकट के समय खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
वर्तमान में खाद्य पदार्थों की बर्बादी प्रमुख समस्या बन गई है। दुनिया भर में सभी खाद्य पदार्थों का लगभग 50 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है और कभी भी ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंचता है। मानव उपभोग के लिए लगभग एक तिहाई भोजन विश्व स्तर पर बर्बाद हो जाता है। दुनिया में लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है या आधा पेट खाकर जीवन जीते हैं, वही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बहुत सारा भोजन बर्बाद कर देते हैं। विकासशील देशों में सबसे अधिक अन्न सही रख-रखाव न हो पाने के कारण भी बर्बाद हो जाता हैं, जो बेहद चिन्ताजनक है। अन्न या भोजन की बर्बादी के प्रति हम सबको जागरूक होना चाहिए और दूसरों को भी जागरूक करना चाहिए ताकि एक सशक्त समाज और देश का निर्माण हो सके।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2023 में देश और दुनिया का ध्यान भोजन की बर्बादी की ओर दिलाया है। रिपोर्ट के अनुसार खाने के लिये उपलब्ध भोजन का 17 प्रतिशत बर्बाद हो गया और लगभग 69 करोड़ लोगों को खाली पेट सोना पड़ा था। खाने की बर्बादी को लेकर दुनिया भर में चिंता व्यक्त की जा रही है। यही भोजन यदि गरीबों को सुलभ कराया जाये तो भूखे पेट सोने वालों की कमी आएगी।
भारत भी खाना बर्बाद करने वाले देशों में शामिल है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने खाने की बर्बादी को लेकर डराने वाले आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक भारत में हर साल प्रति व्यक्ति 50 किलो खाने की बर्बादी हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा खाना लोग अपने घरों के भीतर बर्बाद करते हैं। वे ज़रूरत से ज्यादा खाना बनाकर फिर बचे खाने को फेंकने में संकोच नहीं करते। होटलों और खाने-पीने के दूसरे स्थान भी इस कार्य में आगे हैं। खुदरा दुकानदार भी अनाज का ठीक से भंडारण नहीं कर पाते और खराब होने पर उसे फेंकना पड़ता है।
आपने कई बार सुना होगा कि लोग अपना खाना बर्बाद करते हैं या आपने अपने घर में सुना होगा किए आपके माता-पिता हमेशा आपको खाने को बर्बादी न करने की सलाह देते हैं, क्योंकि वे बखूबी समझते है कि खाना उनके लिए क्या माइने रखता है। एक कहावत बड़ी प्रचलित है कि ‘इतना ही लो थाली में, जो न जाए नाली में।’ लेकिन आज इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। अभी भी हमारे देश के कई राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड भुखमरी से जूझ रहे हैं। इन राज्यों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीबों को बहुत ही मुश्किल से दो समय की रोटी नसीब होती है। कई बार तो ये एक समय ही खाकर सो जाते हैं। इस समस्या के समाधान के ठोस उपाय करने के लिए सभी संबद्ध व्यक्तियों, संस्थाओं को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। यह दिन अब रश्मि होता जा रहा है। ढोल नगाड़ा पीटने से न खाद्य सुरक्षा होगी और न हीं भूखे को खाना मिलेगा। यह हमारी ज़मीनी सच्चाई है, जिसे स्वीकार करना ही होगा।
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