नरमा को अलविदा कह कर धान की काश्त न बढ़ाएं 

नरमा-कपास की काश्त के अधीन रकबा लगातार कम हो रहा है। वर्ष 1995-96 के 7.42 लाख हैक्टेयर के मुकाबले रकबा इस वर्ष कम होकर 96300 हैक्टेयर पर आ गया है। वर्ष 2023 में यह रकबा 1.69 लाख हैक्टेयर था। वर्ष 2011-12 में 5.15 लाख हैक्टेयर तथा वर्ष 2015-16 में 3.25 लाख हैक्टेयर था। इसके मुकाबले धान की काश्त के अधीन रकबा लगातार बढ़ रहा है, जो 1995-96 के 21.84 लाख हैक्टेयर से बढ़ कर इस वर्ष 31 लाख हैक्टेयर से पार हो जाएगा। नरमा-कपास की काश्त के अधीन रकबा कम होना और धान की काश्त के अधीन रकबे का लगातार बढ़ना चिन्ता का विषय है। नरमा-कपास के लिए पंजाब की जलवायु, भू-जल, भूमि का स्वास्थ्य तथा कृषि विभिन्नता को देखते हुए पंजाब में पहले समय के दौरान नरमे की फसल पंजाब का सोना मानी जाती थी और नरमा-कपास पट्टी के किसान बड़े खुशहाल थे। इस दौरान रकबे में धीरे-धीरे कुछ वर्ष कुछ वृद्धि होती गई। 
अब नरमा पैदा करने वाले अकेले बठिंडा ज़िले में ही वर्ष 2022 के 78000 हैक्टेयर रकबे में से नरमे की काश्त कम होकर इस वर्ष 10500 हैक्टेयर पर आ गई है। इसी प्रकार की स्थिति नरमा पैदा करने वाले दूसरे ज़िलों की है। इससे फसली विभिन्नता पिछड़ रही है और भू-जल के कम होने का संकट भी बढ़ रहा है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग दो लाख हैक्टेयर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरे यत्न कर रहा है, परन्तु नरमा की बिजाई का समय जो पीएयू के अनुसर 15 मई तक का था, वह अब निकल गया है। चाहे केन्द्र सरकार ने नरमा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 501 रुपये की वृद्धि करके 7121 रुपये प्रति क्ंिवटल मूल्य कर दिया है, परन्तु इसका प्रभाव अगले वर्ष पड़ सकता है। इस वर्ष अब रकबा बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं। 
दो दशक पहले नरमा दक्षिण-पश्चिमी ज़िलों के क्षेत्रों की खरीफ के मौसम की मुख्य फसल रही है, परन्तु समय-समय पर इसके उत्पादन में मुश्किलें आने के कारण इसकी काश्त के अधीन रकबा कम होता गया। उत्तर भारत के तीन राज्य पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान नरमा-कपास पैदा करने के लिए योग्य हैं। हरियाणा तथा राजस्थान में भी नरमे की फसल के अधीन रकबा कम होकर आधा रह गया है। नरमा के अधीन ही नहीं अपितु देसी कपास की काश्त के अधीन भी रकबा नाममात्र ही रह गया है। हालांकि सदियों से पंजाब में छोटे रेशे वाली देसी कपास उगाई जाती रही है, जिससे घरेलू ज़रूरतों की पूर्ति की जाती थी। देसी कपास की काश्त में यह गुण था कि देसी किस्मों को पत्ता मरोड़ रोग नहीं लगता और चिट्टी मक्खी जैसे रस चूसने वाले कीड़ों के हमले से भी यह सहनशीलता रखती है। इसके अतिरिक्त देसी कपास हलकी ज़मीन तथा कम पानी उपलब्ध होते हुए भी उग कर बढ़िया उत्पादन दे देती है। इसका गत कुछ वर्षों से मंडी में उत्पादकों को दाम भी अच्छा मिल रहा है। कपास-नरमा की काश्त कम होने से बीज कम्पनियों तथा पीएयू द्वारा विकसित किस्मों के बीज की बिक्री भी तेज़ी से गिर रही है। पंजाब में बी.टी. बीज के 30 लाख पैकेटों की बिक्री होती थी जो कम होकर 6 लाख पर आ गई है। 
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डा. जसवंत सिंह रकबा कम होने का मुख्य कारण भीषण गर्मी (हीट वेव) पड़ना बताते हैं। गत वर्ष उत्पादकों को पूरा न्यूनतम समर्थन मूल्य भी मंडी में नहीं मिला था। मौसम में बदलाव व अनुकूल न होने के कारण नरमा की गुणवत्ता भी कहीं-कहीं प्रभावित हुई थी, जिस कारण मंडी में दाम कम मिला। नरमा की चुगाई महंगी होने के कारण तथा फसल के पालन-पोषण का खर्च बढ़ने के कारण भी किसानों की शुद्ध आय प्रभावित हुई है। गुलाबी सुंडी तथा चिट्टी मक्खी के हमले को काबू करने के लिए किए जाने वाले महंगे छिड़कावों से भी फसल के खर्च में वृद्धि हुई है। वर्ष 2015 में चिट्टी मक्खी ने जो फसल का नुकसान किया, उससे भी किसानों का उत्साह इस फसल के लिए कम हो गया। किसानों का अधिक झुकाव धान, बासमती की फसल की ओर हो गया। 
डा. जसवंत सिंह कहते हैं कि फसल का उत्पादन बढ़ाने तथा बढ़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नरमा बेच कर अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को काश्त के लिए ऐसी किस्मों का चयन करना चाहिए जो पीएयू द्वारा सिफारिश की गई हों। 2022 में नरमा के पत्ता मरोड़ रोग के फैलने का एक बड़ा कारण यह था कि बड़े रकबे पर गैर-सिफारिश हाइब्रिड किस्मों की बिजाई की गई थी। गुलाबी सुंडी के हमले को रोकने के लिए पुरानी छिटियों को खेत व आस-पास से निकाल देना चाहिए। बिजाई हर हालत में निर्धारित समय पर 15 मई तक कर देनी चाहिए। देर से बिजाई वाले नरमा पर गुलाबी सुंडी का हमला अधिक होता है। नरमा की फसल को अंतिम पानी सितम्बर में लगा देना चाहिए ताकि फसल को जल्द तोड़ कर गुलाबी सुंडी के हमले को आगामी वर्ष के लिए रोका जा सके। नरमा एक ऐसी फसल है जो अधिक समय खड़े पानी को सहन नहीं कर सकती। नरमा की फसल को खाद-खुराक बिल्कुल समय पर देनी चाहिए। कई बार नहरी पानी की उपलब्धता न होने के कारण तथा बारिश न होने की स्थिति में इसमें लापरवाही हो जाती है, जिसे रोकना चाहिए। जिस प्रकार ज़्यादा नदीन पहले पानी के बाद ही उठते हैं, इनकी रोकथाम के लिए सिफारिशशुदा नदीन नाशक समय पर इस्तेमाल करने चाहिएं। नरमा की खड़ी फसल में गेहूं की बिजाई नहीं करनी चाहिए। फसल को बागों के निकट नहीं लगाना चाहिए। फसल को सूखा नहीं लगने देना चाहिए।