लम्बित ‘झूठी गवाही’ के विरुद्ध सख्त कानून ज़रूरी

‘झूठी गवाही’ एक ऐसा अपराध है जो मूल और प्रक्रियात्मक कानून के बीच की रेखाओं को धुंधला कर देता है, जिससे न्यायिक प्रशासन प्रणाली के लिए चुनौती खड़ी हो जाती है। ‘झूठी गवाही’ शब्द को हाल ही में एक जुलाई से लागू हुई भारतीय न्याय संहिता या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। हालांकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ‘किशोरभाई गंडूभाई पेठानी बनाम गुजरात राज्य’ के मामले में पैरा 9 में झूठी गवाही के अर्थ को संक्षेप में स्पष्ट किया है, जो इस प्रकार है, ‘झूठी गवाही’ न्याय में बाधा डालती है। जानबूझ कर झूठा बयान देना, जो मामले के लिए महत्वपूर्ण होता है, वह भी शपथ लेकर, अपराध के बराबर है। इसलिए झूठी गवाही को हमेशा न्यायिक प्रणाली के लिए चिंता का विषय माना जाना चाहिए। यह प्रणाली की जड़ पर ही प्रहार करता है; क्योंकि यह न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों की सटीकता को बाधित करता है। इसलिए, यदि कोई व्यक्ति झूठी गवाही देने का दोषी पाया जाता है, तो उसके साथ गंभीरता से निपटा जाना चाहिए। यह अदालत के कामकाज के साथ-साथ आम जनता के हित में भी है।’
भारतीय न्याय संहिता के अध्याय 14 के अंतर्गत ‘झूठे साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध’ शीर्षक के अंतर्गत ‘झूठी गवाही’ के अपराध की उत्पत्ति का उल्लेख विभिन्न धाराओं में मिलता है। समय की मांग है कि ‘झूठी गवाही’ से संबंधित स्पष्ट और मज़बूत कानून बना कर उसे लागू किया जाए, खासकर इसलिए भी कि अपने यहां पक्षकार अदालत में झूठ बोलने से नहीं हिचकिचाते। कानून की अवहेलना करने और भरी अदालत में झूठ बोलने से न हिचकिचाने का मुख्य कारण यह है कि पकड़े जाने पर भी उन्हें इसके लिए कोई डर नहीं होता। नकली  दस्तावेज गढ़ कर या अदालत में झूठ बोलकर भी किसी तरह के दंड, जुर्माना या दोनों से बचना आसान है। ‘झूठी गवाही’ यदि एकमात्र कारण नहीं है, तो भी अदालती फैसलों में अन्याय, देरी, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और बढ़ते अपराधों का यह एक प्रमुख कारण है। दुनिया के विकसित देश सख्त क्रियान्वयन और कठोर दंड के साथ झूठी गवाही को बहुत गंभीरता से लेते हैं। शपथ आयुक्तों/नोटरी पब्लिक द्वारा विधिवत सत्यापित और/या नोटरीकृत होने के बाद भी न्यायालयों और अन्य जगहों पर हलफनामे और दस्तावेज दाखिल करना भारत में सभी व्यावहारिक तरीकों से महज औपचारिकता बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक भारतीय न्यायालयों में बड़ी संख्या में केस जमा हो रहे हैं। शपथ आयुक्त/नोटरी पब्लिक आमतौर पर उस व्यक्ति को देखे बिना ही हस्ताक्षरित दस्तावेजों को सत्यापित कर देते हैं, जिसके हस्ताक्षरित दस्तावेजों को वे सत्यापित करते हैं। बस इसके लिए वे आधिकारिक तौर पर निर्धारित शुल्क से कहीं ज्यादा शुल्क वसूलते हैं।
राजस्थान उच्च न्यायालय को एक बार दो शपथ आयुक्तों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश देना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने आवेदक के देश से बाहर होने पर भी हलफनामा सत्यापित किया था। ऐसा अवैध अभ्यास काफी आम है, जब आमतौर पर शपथ आयुक्त/नोटरी पब्लिक उस व्यक्ति या हस्ताक्षर को सत्यापित किए बिना दस्तावेजों को सत्यापित करने की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं, जिनके हस्ताक्षर सत्यापित किए जाने होते हैं। समय आ गया है कि भारत में एक ऐसा सख्त लेकिन सरल कानून बनाया जाए, जो भारतीय न्याय व्यवस्था में झूठी गवाही की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटे और न्यायालयों तथा अन्य स्थानों पर झूठे दस्तावेज प्रस्तुत करने पर कठोरतम दंड का प्रावधान करे। 
हाल ही में भारत सरकार ने ब्रिटिश शासकों द्वारा बनाए गए तीन पुराने अधिनियमों को बदलने के लिए एक स्वागत योग्य प्रशंसनीय कदम उठाया है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता को पुराने भारतीय दंड संहिता-1860, दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम-1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के स्थान पर एकदम नए और सरल प्रारूप में कानून बनाया गया है। ‘सतयुग संहिता’ (या कोई अन्य नाम) के नाम से एक बिल्कुल नया अधिनियम बनाया जा सकता है जो ‘झूठी गवाही’ के खतरे को समाप्त करे, जिसमें कारावास और जुर्माने दोनों का प्रावधान ‘झूठी गवाही’ के कारण होने वाले नुकसान की गंभीरता पर निर्भर हो, जो आजीवन कारावास तक हो सकता है। लेकिन साथ ही, उन अधिवक्ताओं पर भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए, जिनके माध्यम से ऐसे सत्यापित दस्तावेज न्यायालयों में प्रस्तुत किए जाते हैं। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि अधिकांश बार, प्रभावित वादी, कभी-कभी अशिक्षित, अपने वकीलों के निर्देशानुसार कहीं भी किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर देते हैं, बिना यह जाने कि उनके हस्ताक्षर करने के क्या परिणाम होंगे?
सख्त कानून से इस पर लगाम लग सकती है क्योंकि अधिवक्ताओं को यह अच्छी तरह पता होता है कि वे अपने वादियों के लिए जो केस लड़ रहे हैं, वे सही हैं या गलत। ऐसी व्यवस्था से न्यायालयों में होने वाले केसों की संख्या में भी कमी आएगी, क्योंकि वकील ऐसे मामलों को लेने में संकोच करेंगे, जिनके बारे में वो जानते हैं कि ये झूठे हैं। शपथ आयुक्तों/नोटरी पब्लिक के लिए अधिकृत सत्यापन शुल्क को नियमित रूप से सभी मीडिया माध्यमों से प्रचारित किया जाना चाहिए, जिसमें इन सभी सत्यापन अधिकारियों को चेतावनी दी जानी चाहिए कि वे अपने समक्ष उन व्यक्तियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के बाद ही दस्तावेजों को सत्यापित करें जिनके हस्ताक्षर वे सत्यापित कर रहे हैं।  
उपरोक्त सुझाए गए तरीकों पर ‘झूठी गवाही’ पर एक सख्त और कठोर कानून केवल तीन नए कानूनों अर्थात भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता के सरलीकरण के उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है। साथ ही निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सभी स्तरों पर पहले से पंजीकृत और नए दायर किए जाने वाले अदालती मामलों की संख्या में भारी कमी ला सकता है। फिर सभी मौजूदा वादियों और अन्य संबंधित लोगों को ‘झूठी गवाही’ पर सुझाए गए नए अधिनियम के अनुसार नए सत्यापित दस्तावेज/शपथ-पत्र दाखिल करने के लिए एक समय-सीमा प्रदान की जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में अदालती मामलों को वापस भी लिया जा सकता है। लेकिन नए हलफनामे/दस्तावेज दाखिल करने की निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने के बाद, ‘झूठी गवाही’ से नए सुझाए गए कानून के माध्यम से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। जिसमें कैद और जुर्माना दोनों के प्रावधान हो सकते हैं जो न केवल झूठे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी न्यूनतम छह महीने का कारावास हो सकता है, इनके हस्ताक्षर/अंगूठे के निशान सत्यापित किए गए हों।
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