त्याग की भावना

पिछले लम्बे समय से शिरोमणि अकाली दल (ब) संकट में घिरा दिखाई देता है। विधानसभा में प्रतिनिधित्व के पक्ष से इसकी संख्या कम होती जा रही है। राष्ट्रीय राजनीति में भी इसका प्रभाव कम होता जा रहा है। इस समय में कई और अकाली दल भी सक्रिय दिखाई देते रहे हैं परन्तु पंजाब की राजनीति में विगत लम्बी अवधि से बड़ा प्रभाव मुख्य अकाली दल का ही बना रहा है। विशेष रूप से वर्ष 1966 में पंजाबी सूबा अस्तित्व में आने के उपरांत सिख राजनीति पर भी अकाली दल का ही प्रभाव रहा है। यह लम्बी अवधि तक समय-समय पर अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करके प्रदेश के प्रशासन में भी अहम भूमिका निभाता रहा है। मास्टर तारा सिंह के बाद संत ़फतेह सिंह, संत हरचंद सिंह लौंगोवाल, जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी, जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा तथा प्रकाश सिंह बादल पंजाब की राजनीति का केन्द्र बने रहे हैं।
कभी समय था जब लोग पंजाब के मामलों के हल के लिए अकाली दल (ब) की ओर नज़रें लगाये रहते थे। समय बदलता रहता है, राजनीति बदलती रहती है, भिन्न-भिन्न शख्सियतों का उभार लोगों को उनकी ओर आकर्षित करता है। इसीलिए यदि इस दल को बड़ा समर्थन मिलता रहा है तो इसकी विफलताओं की भी आलोचना होती रही है। इसी सन्दर्भ में पिछले समय की बात करें तो वर्ष 1997 से 2002 तक एवं दूसरी बार वर्ष 2007 से 2017 तक प्रदेश में अकाली-भाजपा सरकार बनी रही थी। स. प्रकाश सिंह बादल इसके निर्विवाद नेता माने जाते रहे थे, परन्तु उस समय भी एवं आज भी इस छोटे-से प्रदेश की समस्याएं बड़ी से बड़ी होती रही हैं। यदि नेता इनके समकक्ष न हो सकें तथा समस्याओं का हल तलाश न कर सकें तो नेतृत्व के प्रति उम्मीद भी कम होती है, तथा लोगों का मोह भी भंग होता है। विगत अवधि के दौरान  सुखबीर सिंह बादल भी अहम भूमिका निभाते रहे हैं। उन्हें भी भारी जन-समर्थन मिलता रहा है परन्तु इसी ही समय में कुछ ऐसे घटनाक्रम भी घटित हुए, जिनसे बड़ी संख्या में लोगों के मन को ठेस पहुंची तथा समय के नेतृत्व को उनके प्रति उत्तरदायी भी होना पड़ा। इसी समय में बड़ी संख्या में पंजाब के युवा निराश होकर विदेशों को जाने लगे, पंजाब की आर्थिकता डावांडोल होने लगी। कई पक्षों से इसका अवसान होता गया। सांस्कृतिक नैतिक-मूल्यों के स्थान पर अवसरवाद, परिवारवाद तथा फैलते भ्रष्टाचार ने समाज तथा राजनीति पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया। धार्मिक पक्ष से भी प्रदेश रसातल की ओर जाने लगा, जिससे लोगों के मन में बेचैनी बढ़ती चली गई। इन तथा ऐसे अन्य अनेक कारणों के दृष्टिगत लोगों का  पंजाब के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों से विशेष रूप से वरिष्ठ अकाली नेतृत्व से मोह भंग हो गया।
इसी कारण लोगों ने 2022 के विधानसभा चुनावों में अकालियों सहित अन्य बड़ी पार्टियों को नकारते हुए इस उम्मीद से तीसरे पक्ष का चयन किया था कि शायद वह उनकी उम्मीदों पर पूरा उतर सकेगा और हर पक्ष से गिर रहे पंजाब को कोई ढाढस दे सकेगा। चाहे आज इस तीसरे पक्ष के प्रति भी लोगों में निराशा बढ़ गई है परन्तु अकाली दल के नेतृत्व से भंग मोह को पुन: विश्वास में नहीं बदला जा सका। बेचैन एवं बेजान हो रही इस पार्टी में नई जान डालने की ज़रूरत है। इसीलिए ही आज बड़ी सीमा तक अकाली कतारों में बेचैनी का उभार देखा जा रहा है। यही कारण है कि आज इस पार्टी में टूट-फूट होती नज़र आ रही है। यह जहां तक पहुंच गई है, उससे आगे हर हाल में कोई नई गम्भीर योजनाबंदी किये जाने की ज़रूरत प्रतीत होती है। पिछले दिनों सिंह साहिबान की बैठक भी ऐसा ही संकेत दे रही है। हम समझते हैं कि अब प्रदेश की हर पक्ष से बेहतरी के लिए अकाली नेतृत्व को पश्चाताप करते हुए त्याग की भावना दिखाने की ज़रूरत होगी। अपनी पिछली गलतियों खुले मन से विश्लेषण करके लोगों का पुन: विश्वास हासिल करने की ज़रूरत होगी। ऐसी भावना ही बुझते दीप को पुन: प्रकाशमय कर सकने के समर्थ हो सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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