मोदी की रूस यात्रा से अमरीका और यूरोप को परेशानी क्यों ?

मोदी जी की रूस यात्रा के बाद अमरीका किस कदर चिढ़ा हुआ है, इसका अंदाजा अमरीकी राजदूत के बयान से लगाया जा सकता है। उसने बयान दिया है कि भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि युद्ध भारत से ज्यादा दूर नहीं है। देखा जाए तो यह सीधे-सीधे भारत को युद्ध की धमकी है। एक तरह से अमरीका धमकी देने पर उतर आया है क्योंकि उसे लगता है कि भारत उसकी नीतियों के विरुद्ध जा रहा है। अमरीकी राजदूत का बयान इसलिए अजीब है क्योंकि एक तरफ अमरीका भारत से दोस्ती बढ़ाने की बात कर रहा है तो दूसरी तरफ वो दोस्त को युद्ध की धमकी दे रहा है। अमरीकी रक्षा सलाहकार ने कहा है कि भारत रूस पर गलत बाजी लगा रहा है और यह उसे भारी पड़ने वाली है। अमरीका ने कहा है कि रूस ज़रूरत पड़ने पर भारत को धोखा देगा क्योंकि रूस भारत का सच्चा दोस्त नहीं है।  अमरीका का कहना है कि रूस चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गया है, लेकिन अगर भारत और चीन के बीच युद्ध हो जाता है तो रूस भारत की मदद नहीं करेगा।   
अमरीका ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है कि अगर रूस भारत का साथ नहीं देगा तो क्या अमरीका चीन के खिलाफ भारत का साथ देगा। ऐसा कोई वायदा अभी तक अमरीका ने नहीं किया है। दूसरी बात उसने जिन देशों से वायदा किया हुआ है, वो देश भी अब अमरीका पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। देखा जाए तो भारत अपनी सुरक्षा के लिए किसी दूसरे देश की मदद पर निर्भर नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। यूक्रेन ने अमरीका और उसके साथी देशों के भरोसे रूस से युद्ध तो छेड़ दिया लेकिन वो पूरी तरह बर्बाद हो गया है। भारत ऐसी गलती करने की सोच भी नहीं सकता। भारत चीन के साथ अपने विवाद खुद ही सुलझाने में लगा हुआ है और चीन की इतनी भी हिम्मत नहीं है कि वो भारत से युद्ध छेड़ दे। चीन अच्छी तरह से जानता है कि भारत के साथ युद्ध सिर्फ भारत को नहीं बल्कि उसे भी बर्बाद कर देगा। अमरीका जहां भारत को चीन से डरा रहा है, वहीं दूसरी तरफ वो रूस से भारत को दूर रखने की कोशिश में है।
अमरीका और यूरोप ने पहले कभी भारत और रूस की दोस्ती पर उंगली नहीं उठाई है लेकिन भारत की बढ़ती ताकत का नतीजा है कि नाटो नहीं चाहता है कि भारत रूस के खेमे में चला जाए। मोदी जी की रूस यात्रा की जितनी चर्चा वैश्विक मीडिया में हुई है, शायद ही इससे पहले भारत के किसी प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा की हुई हो। जहां वैश्विक मीडिया ने मोदी जी के पुतिन से गले मिलने को लेकर उन्हें कोसा है, वहीं अमरीका और यूरोप की जनता इस बात से खुश है कि मोदी जी ने पुतिन के सामने बैठ कर युद्ध की निंदा की है।  
वास्तव में दुनिया के कई देशों की जनता मानती है कि भारत उन देशों में है, जो  युद्ध नहीं, शांति चाहते हैं। वास्तव में भारत का हित इसी में है कि यह युद्ध जल्दी से जल्दी खत्म हो जाये लेकिन अमरीका और उसके साथी कहते हैं कि यूक्रेन के आखिरी नागरिक के रहने तक युद्ध जारी रहेगा। एक कॉमेडियन ने नाटो में शामिल होने की जिद्द में अपने देश को बर्बाद कर दिया है लेकिन ऐसी गलती की उम्मीद भारत से नहीं की जा सकती। प्राय: कहा जाता है कि वैश्विक राजनीति में न कोई आपका स्थायी दुश्मन होता है और न ही दोस्त होता है। कभी भी दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन सकता है लेकिन रूस और भारत की दोस्ती एक अपवाद के रूप में सामने आई है।  इतने उतार-चढ़ाव के बाद भी रूस और भारत की दोस्ती में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। रूस ने भारत के दुश्मनों की कभी मदद नहीं की जबकि अमरीका और उसके दोस्त भारत के खिलाफ कई बार खड़े हो चुके हैं।  भारत यह कैसे भूल सकता है कि जब भारत बांग्लादेश को आज़ाद करा रहा था तो अमरीका ने अपना परमाणु विमानवाहक नौसैनिक बेड़ा भेजकर भारत को डराने की कोशिश की थी। 
अमरीका भारत और रूस के रिश्तों को हथियार विक्रेता और ग्राहक के रिश्ते की तरह देखता है। इसीलिए वो कहता है कि जो भी हथियार भारत को चाहिए, वो उसे अमरीका देगा। वो यह कहना चाहता है कि रूस को छोड़कर भारत पूरी तरह से अमरीकी खेमे में शामिल हो जाए। भारत अपनी सुरक्षा ज़रूरतों के लिए पूरी तरह से नाटो देशों पर निर्भर नहीं होना चाहता। वो नाटो देशों के हथियार खरीदता है लेकिन रूस को भी अपने महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखता है। अमरीका चाहता है कि भारत को अमरीका की दोस्ती चाहिए तो रूस का साथ छोड़ना होगा। अमरीका खुद को दुनिया का एकमात्र सुपर पावर मानता है लेकिन वो यह समझने को तैयार नहीं है कि रूस दोबारा खड़ा हो गया है और चीन भी विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत ने भी विश्व शक्ति बनने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। उसकी दादागिरी अब ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है। 
वास्तव में अमरीका यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है कि भारत तेजी से आगे बढ़े। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चलते हुए वैश्विक राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। अमरीका और उसके साथी देशों को यह बात पसंद नहीं आ रही है। अमरीका भारत की बढ़ती शक्ति से डरा हुआ है क्योंकि वो नहीं चाहता कि भारत एक वैश्विक शक्ति बन जाये और विश्व का शक्ति संतुलन उसके पक्ष में न रहे। भारत जहां बहुध्रुवीय विश्व की बात कर रहा है, वहीं अमरीका अभी भी एकध्रुवीय विश्व का सपना देख रहा है। अमरीका और यूरोप चाहते हैं कि भारत रूस से तेल और कोयला खरीदना बंद कर दे जबकि यूरोप स्वयं रूस से जबरदस्त खरीद कर रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक पत्रकार की बात का जवाब देते हुए कहा, जितना तेल हम महीने में खरीदते हैं, उतना तो यूरोप वाले एक दोपहर में खरीद लेते हैं। भारत की अपनी मजबूरियां हैं। भारत इस समय रूस को अलग-अलग नहीं छोड़ सकता क्योंकि ऐसा करने से रूस पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो जायेगा। ऐसा होना न तो भारत के हित में है और न ही दुनिया के हित में।