वैश्विक समस्या बन गया है कुपोषण
बाल कुपोषण एवं भूख वैश्विक समस्या बन गई है। ग्लोबल स्तर पर इस समस्या पर कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है। सुविधा सम्पन्न परिवार जहां भोजन की बर्बादी करता है, वहीं गरीब परिवार भूखा सोने को मजबूर है। हाल ही में आई यूनिसेफ की ‘चाइल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट-2024’ बेहद चौकाती है। दुनिया के 92 देशों पर बाल पोषण पर जो आंकड़े आए हैं वह हमें डराने वाली हैं। सबसे चिंतनीय स्थिति भारत की है। यहां 40 फीसदी बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार हैं।
एक आंकड़े के अनुसार पूरी दुनिया में जितना भोजन हर साल बर्बाद होता है उससे दो अरब लोगों की भूख मिटायी जा सकती है। लगभग एक अरब 30 लाख करोड़ टन भोजन हर साल बरबाद होता है। इंडियन इंस्चीच्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और लगभग 21 करोड़ टन सब्ज़ियां वितरण अव्यवस्था के कारण हर साल खराब हो जाती हैं जबकि 40 फीसदी भोजन शादी-विवाह में खराब हो जाता है।
अब जरा सोचिए, जब भारत जैसे कृषि प्रधान देश की यह स्थिति है तो दुनिया के दूसरे देशों की क्या हालत होगी। भारत को बाल भुखमरी के उच्च श्रेणी में रखा गया है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भी कुपोषण के मामले में भारत की स्थिति खराब बताई गई है। सोमालिया में जहां यह स्थिति 63 फीसदी है, वहीं बेलारूस सिर्फ एक फीसदी पर है। दुनिया का हर चौथा बच्चा भूखा सोने को मजबूर है जबकि दक्षिण एशिया में सबसे बदतर स्थिति अफगानिस्तान की है। भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान की सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी यह चिंताजनक है।
दुनिया का हर चौथा बच्चा भुखमरी का शिकार है। 181 मिलियन मासूम बच्चों में 65 फीसदी भूख और भोजन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दुनिया के लिए बड़े विमर्श की बात है। एक तरफ जहां हम बच्चों को भोजन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दुनिया के कई देशों में चल रहे युद्ध में बाल अधिकार को संरक्षित करने में असफलता मिली है। वैश्विक स्तर पर गुटबंदी में बंटी दुनिया के देशों ने अपनी सोच को सिर्फ कूटनीतिक संबंधों तक सीमित कर लिया है। उन्हें गर्म होती धरती, बाल अधिकार, गृहयुद्ध, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से उनको कोई मतलब नहीं है।यूनिसेफ की बाल पोषण पर आई रिपोर्ट गम्भीर चिन्ता का विषय है। दुनिया भर में पांच साल तक के बच्चे भूख और पौष्टिक आहार के लिए जूझ रहे हैं। यह चिंता और बढ़ जाती है जब भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कुपोषण और भुखमरी के हालात हैं। एक तरफ हम देश की अर्थव्यवस्था को ट्रिलियन में ले जाने का सपना देख रहे हैं और दूसरी तरफ मासूम बच्चों को भोजन और पौष्टिक आहार तक की सुविधा उपलब्ध नहीं कर पा रहे हैं। भारत या दुनिया भर में जो स्थिति है, उसमें अमीर और अमीर बनता जा रहा जबकि गरीब और गरीब हो रहा है।
भारत में सरकारी आंकड़ों में गरीबी कम करने का दावा किया जाता है, अगर ऐसी बात है तो 40 फीसदी बच्चे कुपोषण और भूख से क्यों पीड़ित हैं। दक्षिण एशिया में भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश ऐसे 20 देशों शामिल हैं, जहां बाल पोषण की समस्या बेहद गम्भीर है। दुनिया में बाल कुपोषण की समस्या महामारी का रूप ले रहीं हैं। कुपोषण की मुख्य वजह आदमी की आर्थिक सामाजिक स्थिति के अलावा दूसरे कारण भी है।
देश में बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी इस समस्या को और बढ़ा रही है। आर्थिक विपन्नता की वजह से आम आदमी बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं करवा पाता है, क्योंकि उसकी आय ही उतनी नहीं होती कि वह बच्चों को संतुलित आहार उपलब्ध करा पाए। वह कठिन परिश्रम के बाद भी रोटी-दाल जुटा पाता है। कभी हालात ऐसे बनते हैं कि पूरे परिवार को भूखे सोना पड़ता है। दिहाड़ी-मजदूरी करने वाला व्यक्ति सिर्फ रोटी-दाल की चिंता ही करता है। इस स्थिति में वह पोष्टिक भोजन की व्यवस्था कैसे कर सकता है। (अदिति)