उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा बड़े संगठनात्मक फेरबदल की तैयारी

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणाम प्रदेश के राजनीतिक ताने-बाने में एक नाटकीय बदलाव का संकेत देते हैं, जिसमें अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने आश्चर्यजनक प्रदर्शन करते हुए शक्तिशाली भाजपा के खिलाफ उल्लेखनीय चुनावी बढ़त हासिल की है। समाजवादी पार्टी ने 80 में से 37 सीटें जीतीं, यह प्रदेश में लोकसभा चुनाव में इसका अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है और वह पी.डी.ए. (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फार्मूले द्वारा भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को तोड़ने में सफल रही है। 
अब मोदी सरकार में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कौशल किशौर पी.डी.ए. फार्मूले का मुकाबला करने के लिए डी.पी.ए. (पिछड़ा-दलित-फारवर्ड) यात्रा पर जा रहे हैं। इसे भाजपा की पिछले दरवाज़े की योजना कहा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में ओ.बी.सी. तथा दलित वोट बैंक के नुकसान ने भाजपा को भीतर तक हिला दिया है, क्योंकि पार्टी 62 सीटों से कम होकर 33 सीटों पर आ गई है। उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा लगातार राजनीति पर मंथन कर रही है और अपना गुम हुआ राजनीतिक आधार वापिस पाने की योजना बना रही है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रशाद मौर्य ने 16 जुलाई को भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मुलाकात की, क्योंकि पार्टी लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण राज्य में अपने खराब प्रदर्शन के बाद अपनी रणनीति तैयार कर रही है।
 हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मौर्य के मतभेदों को पार्टी के भीतर भी व्यापक रूप में स्वीकार किया जाता है और पार्टी की प्रदेश इकाई की एक बैठक में उनकी एक टिप्पणी कि ‘संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है और कोई भी संगठन से बड़ा नहीं हो सकता’ को कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को दिए संदेश के रूप में देखा है। मौर्य ने आदित्यनाथ तथा नड्डा की मौजूदगी में टिप्पणी की थी, जबकि मुख्यमंत्री ने प्रदेश में चुनावी हार के लिए ‘अति आत्म-विश्वास’ को ज़िम्मेदार ठहराया तथा सुझाव दिया कि पार्टी विरोधी पक्ष ‘इंडिया’ गठबंधन के अभियान का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर सकी। चर्चा है कि भाजपा हाईकमान ओ.बी.सी. नेता केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में बने रहेंगे, जिन्होंने पार्टी के हिन्दुत्व के एजेंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया है और कानून एवं व्यवस्था पर मज़बूत पकड़ बनाए रखी है। 
कांग्रेस का हरियाणा में अभियान 
हरियाणा में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए राजनीतिक पारा बढ़ रहा है। गुटबंदी में उलझी कांग्रेस जाति आधारित जनगणना, बेरोज़गारी, महंगाई, अग्निवीर तथा किसानों के मुद्दों पर ज़ोर देगी जबकि भाजपा लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पंजाबी क्षत्रीय मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर ओ.बी.सी. समुदाय से संबंध रखने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना कर पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभा कर प्रदेश में सत्ता बरकरार रखने की कोशिश कर रही है। इस दौरान कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व पर भरोसा व्यक्त कर रही है, जिन्होंने अपने बेटे तथा लोकसभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा के साथ मिल कर ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान शुरू किया था। उन्होंने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पैदल यात्रा शुरू की थी, जबकि लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा हरियाणा के शहरी मतदाताओं से जुड़ने के लिए आगामी दिनों में अपनी पैदल यात्रा शुरू करेंगी। पैदल यात्रा के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा विपक्ष के नेता राहुल गांधी का संदेश प्रत्येक मतदाता तक पहुंचाया जाएगा और उन्हें पिछले 10 वर्षों के भाजपा के कुशासन बारे विस्तार में बताया जाएगा। 
योगी ने उप-चुनाव हेतु कमर कसी
2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के 10 विधायकों के जीतने के दृष्टिगत राज्य उप-चुनावों के लिए कमर कस रहा है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) तथा विपक्ष ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच एक और ज़बरदस्त मुकाबला होने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह ‘करो या मरो’ की स्थिति है, जो पहले से ही राज्य में लोकसभा चुनाव में मिली असफलता तथा नौकरशाहों पर पार्टी नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को दृष्टिविगत करने के दोषों को लेकर भाजपा में आलोचना का सामना कर रहे हैं। पार्टी नेताओं को यह संदेश देने की कोशिश करते हुए कि वह उप-चुनाव को लेकर गम्भीर हैं, आदित्यनाथ ने बुधवार को अपने मंत्रियों को उन 10 रिक्त सीटों पर राजनीतिक गतिशीलता पर उनकी प्रतिक्रिया लेने के लिए बुलाया, जिनके लिए चुनाव आयोग जल्द ही तिथियों की घोषणा कर सकता है।
 भाजपा सूत्रों ने कहा कि मुख्यमंत्री ने 30 मंत्रियों को प्रचार शुरू करने तथा चुनाव प्रचार  की निगरानी करने को कहा है। उन्होंने 10 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक के लिए तीन मंत्री नियुक्त किए हैं। 10 विधानसभा सीटों में अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट भाजपा के निशाने पर होगी, क्योंकि शहर की काया-कल्प करने तथा राम मंदिर निर्माण के बावजूद अयोध्या में उसे हार का सामना करना पड़ा था। (आई.पी.ए.)