गेहूं का उत्पादन बढ़ाने हेतु कृषि अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जाए
गेहूं पंजाब तथा भारत में रबी की मुख्य फसल है। इसकी काश्त 2023-24 में पंजाब में 3.5 मिलियन हैक्टेयर (35.08 लाख एकड़) तथा भारत में 31.23 मिलियन हैक्टेयर रकबे पर की गई। इससे कुल उत्पादन 18 मिलियन टन पंजाब में तथा 112.92 मिलियन टन भारत में हुआ। यह उत्पादन दोनों स्थानों पर गत वर्ष 2022-23 के उत्पादन से अधिक था। गत वर्ष पंजाब में उत्पादन लगभग 17 मिलियन टन तथा भारत में 110.55 मिलियन टन हुआ था। गेहूं शीत ऋतु की फसल है। इस फसल की वृद्धि तथा दाना भरने के दौरान क्रमश: अधिक से अधिक तापमान 15-22 तथा 21-28 डिग्री सैंटीग्रेड तथा कम से कम तापमान 4-11 तथा 7-13 डिग्री सैंटीग्रेड की ज़रूरत है। यदि दाने भरते समय तापमान बढ़ जाए तो फसल समय से पहले पक जाती है और दानों का भार कम हो जाता है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। इस वर्ष 2023-24 में पंजाब में उत्पादन 5069 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तथा भारत में 3615 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रहा। यह उत्पादन वर्ष 2022-23 तथा 2021-22 से अधिक था। विश्व में चीन के बाद भारत गेहूं का दूसरा बड़ा उत्पादक है। भारत में गेहूं उत्पादन में वृद्धि की नींव गत शताब्दी के 6वें दशक के मध्य में रखी गई जब अर्ध-बौनी अधिक उत्पादन देने वाली तथा खाद एवं पानी देने पर उत्पादन अधिक देने वाली किस्मों की काश्त शुरू हुई। उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि सब्ज़ इन्कलाब के दौरान हुई, जब गेहूं को काश्त के दौरान कीमियाई खाद तथा सिंचाई के साधन उपलब्ध हुए। इन अर्ध-बौनी किस्मों के काश्त में आने तथा कृषि सामग्री में लागत बढ़ने से देश की अनाज की ज़रूरत महसूस करते हुए सरकार का झुकाव इस ओर हुआ। उस उपरान्त सब्ज़ इन्कलाब का आगाज़ हुआ जिससे देश की अनाज की सुरक्षा एवं कृषि आर्थिकता में बड़ा परिवर्तन आया। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में गेहूं पर गहन अनुसंधान किए जाने लगे और अधिक उत्पादन देने वाली सफल किस्में जैसे कल्याणसोना, एच.डी.-2329, सोनालीका, एच.डी.-2285 और एच.डी.-2733 आदि तथा पी.ए..यू. की डब्ल्यू.एल.-711 अस्तित्व में आईं और ये अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्में किसानों द्वारा अपनाई जाने लगीं। सब्ज़ इन्कलाब के संस्थापक सी. सुब्राह्मणयम के नेतृत्व में प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन तथा डा. अमरीक सिंह चीमा ने मैक्सिको से लाए गए बौनी किस्मों तथा इन नई विकसित हुई किस्मों के बीज पंजाब के किसानों तथा अन्य गेहूं पैदा करने वाले राज्यों के किसानों को प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध करवाए। आई.सी.ए.आर.-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ले रिसर्च करनाल तथा पी.ए.यू. लुधियाना जैसी अनुसंधान संस्थाओं द्वारा विकसित की गई गर्मी को सहन करने वाली गेहूं की डी.बी.डब्ल्यू.-327, डी.बी.डब्ल्यू.-187, डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू.-371, डी.बी.डब्ल्यू.-372, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-303 तथा पी.बी.डब्ल्यू.-826 जैसी किस्मों के बीज किसानों को उपलब्ध किए गए। इस वर्ष लम्बी अवधि तक शीत ऋतु का चलना तथा समय पर बारिश होने तथा मौसम अनुकूल रहने के कारण उत्पादन में वृद्धि हुई है, व इस वर्ष गेहूं का रिकार्ड उत्पादन हुआ।
आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट नई दिल्ली, जो गेहूं के अनुसंधान में अग्रणी संस्था है, द्वारा एच.डी.-3086 तथा एच.डी.-2967 जैसी किस्में जारी करने के बाद इस वर्ष गेहूं की तीन नई किस्में एच.डी.-3385, एच.डी.-3386 तथा एच.डी.-3406 विकसित करके किसानों की काश्त के लिए रिलीज़ की गई हैं। एच.डी.-3406 किस्म की बिजाई नवम्बर के पहले पखवाड़े के दौरान तथा दूसरी दो किस्मों की अक्तूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के पहले पखवाड़े के बीच की जा सकती है। एच.डी.-3385 किस्म का उत्पादन 62.1 से 73.4 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तथा एच.डी.-3386 की 60.4 से 71.5 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तथा एच.डी.-3406 की 54.7 से 70.4 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक है। एच.डी.-3406 किस्म एच.डी.-2967 किस्म की संशोधित की किस्म है। एच.डी.-3386 किस्म पीली कुंगी का मुकाबला करने वाली, सिंचाई अधीन रकबे के लिए है जो गिरती नहीं। इसका अंकुरण भी अच्छा है। सरकार द्वारा गेहूं उत्पादकों को पूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाने की ज़रूरत है ताकि वे पूरी मेहनत से उत्पादन बढ़ाएं। गेहूं का और उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि अनुसंधान मज़बूत करने की आवश्यकता है। इस समय इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट जो गेहूं के अनुसंधान के लिए मुख्य संस्था है, का बजट 710 करोड़ का है, जिसमें से 540 करोड़ रुपये वेतन, पैंशनों तथा 98 करोड़ रुपये प्रशासनिक प्रबंधों पर खर्च किए जाते हैं। कृषि अनुसंधान के लिए पैसा तो न के बराबर ही रह जाता है। ऐसी ही स्थिति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की है। अनुसंधान को मज़बूत करने के लिए पंजाब तथा केन्द्र सरकार को ध्यान देना चाहिए ताकि पंजाब तथा केन्द्र का गेहूं उत्पादन में दर्जा कायम ही न रहे, अपितु और बढ़े।