बांग्लादेश के प्रति नीति

बांग्लादेश में फैली बड़ी गड़बड़ के बाद आवामी लीग पार्टी की नेता शेख हसीना ने इस सोमवार 5 अगस्त को देश छोड़ दिया था तथा वह भारत आ गई थीं। श़ेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक मुजीब-उर-रहमान की बेटी हैं। भारत की सहायता से 1971 में पूर्वी पाकिस्तान मुजीब-उर-रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश बन गया था, उस समय पाकिस्तान की सेना की ओर से लाखों ही बंगलावासियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। मुजीब-उर-रहमान तथा उनके परिवार को, बांग्लादेश में कुछ वर्षों की सत्ता के बाद कुछ सैनिक अधिकारियों द्वारा गोलियों से उड़ा दिया गया था। शेख हसीना एवं उनकी बहन श़ेख रिहाना विदेश में होने के कारण बच गई थीं। उसके बाद बंगलादेश में सैनिक तानाशाह शासन करते रहे। 5 वर्ष के लिए जमात-ए-इस्लामी तथा बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी ने शासन किया।
श़ेख हसीना पहली बार 1996 में आवामी लीग की ओर से चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बनीं। वह अब पिछले 15 वर्ष से देश का प्रशासन चला रही थीं। इस वर्ष जनवरी में वह चुनाव जीत कर लगातार चौथी बार एवं अब तक पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनी थीं। इस समय में हसीना अपने विरोधियों से बेहद सख्ती से पेश आईं। अन्य पार्टियों के कई बड़े राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने हर तरह के विरोध की आवाज़ को दबाने का यत्न किया। पाकिस्तान एवं चीन इस पूरे समय में उनके विरोधी बने रहे। अमरीकी शासन भी कई मामलों को लेकर उनसे नाराज़ रहा परन्तु हसीना ने इस समय भारत से पूरी मित्रता निभाई। भारत की ओर से बांग्लादेश की आर्थिकता को मज़बूत करने के लिए बड़ी आर्थिक सहायता भी दी जाती रही। दोनों देशों के हर तरह से गहरे रिश्तों के साथ-साथ आपसी व्यापार भी ऊंचाइयों को छूता रहा। यदि आज उनके निर्वासन को उनकी सख्त नीतियों से जोड़ा जाता है तो इसके साथ-साथ पाकिस्तानी एवं अमरीकी गुप्त एजेंसी पर भी इस तख्तापलट संबंधी आरोप लग रहे हैं। पिछले दिनों में दंगाइयों द्वारा जिस तरह अल्पसंख्यकों, खास तौर पर हिन्दुओं को हिंसा का निशाना बनाया गया तथा उनकी सम्पत्तियों को तबाह किया गया, उसका भारत की सरकार ने कड़ा संज्ञान लिया है। भारत की सरकार ने हसीना को अपने देश में शरण दी हुई है परन्तु इसके साथ ही चीन एवं पाकिस्तान की बांग्लादेश में बढ़ी गतिविधियों के कारण इसका चिंतित होना भी स्वाभाविक है। चल रहे इस हिंसक घटनाक्रम में एक बात उम्मीद पैदा करने वाली है कि वहां की सेना, राजनीतिक पार्टियां एवं प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों ने आगामी चुनाव होने तक प्रसिद्ध अर्थ-शास्त्री मोहम्मद यूनुस को देश चलाने के लिए चुना है। मोहम्मद यूनुस की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़रूरतमंदों एवं गरीबों के लिए बैंक स्थापित करके उनकी सहायता करने के लिए व्यापक स्तर पर प्रशंसा हुई थी, इस बात के लिए उन्हें वर्ष 2006 में शांति का नोबल पुरस्कार भी दिया गया था। मोहम्मद यूनुस को वीरवार रात्रि को देश के मुख्य सलाहकार के रूप में शपथ ग्रहण करवाई गई है। इस अस्थायी सरकार के होते उनका पद प्रधानमंत्री के समान रहेगा। उनके साथ कुछ राजनीतिक पार्टियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा छात्र संगठनों की ओर से चुने गए 16 और सलाहकारों की टीम भी काम करेगी। भारत की चिन्ता बांग्लादेश में फैली गड़बड़ी के कारण बड़ी संख्या में वहां से इधर आने वाले शरणार्थियों को लेकर भी होगी, क्योंकि  भारत की बंगलादेश के साथ 4096 किलोमीटर लम्बी सीमा लगती है, जिसमें पश्चिमी बंगाल के साथ 2217 किलोमीटर, असम के साथ 262 किलोमीटर, मिज़ोरम के साथ 318 किलोमीटर एवं त्रिपुरा के साथ 856 किलोमीटर की सीमा शामिल है। चाहे इन सीमाओं पर सुरक्षा बलों की ओर से कड़े पहरे लगा दिए गए हैं परन्तु इसके बावजूद भारत के लिए शरणार्थियों को अनिश्चितकाल के लिए रोक पाना बेहद कठिन होगा।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मोहम्मद यूनुस को नये पद के लिए शुभकामनाएं दी हैं, परन्तु इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि बांग्लादेश में सामान्य स्थिति की बहाली ज़रूरी है तथा इसके साथ ही हिन्दुओं एवं अन्य अल्प-संख्यक समुदायों की सुरक्षा भी सुनिश्चित बनाई जानी चाहिए। मोहम्मद यूनुस ने इस संबंध में अपना पद सम्भालने के साथ ही यह कहा है कि उनका पहला काम देश में आम जैसे हालात बनाना होगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश एक परिवार है, इसका एकजुट रहना बेहद ज़रूरी है। किसी पर कोई हमला नहीं होना चाहिए, क्योंकि देश का हर नागरिक हमारा भाई है। उसे बचाना हमारा पहला फज़र् है। भारत को भी पैदा हुई नई स्थिति में इस देश के प्रति अपनी नीति के पुन: निर्माण की ज़रूरत होगी ताकि इस अशांत हुए पड़ोसी देश के साथ संतुलन बना कर संबंधों को आगे बढ़ाने का यत्न किया जाए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द