भारत-बांग्लादेश संबंधों को नए सिरे से देखना होगा
बांग्लादेश की सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रही शेख हसीना के इस्तीफा देने के बाद सीधे भारत आने से दोनों पड़ोसी देशों के संबंधों की गहराई भी सामने आई है। शेख हसीना ने 17 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश में करीब 15 साल तक सरकार चलाई है। बांग्लादेश के संस्थापक (शेख मुजीबुर रहमान) की बेटी शेख हसीना दुनिया में किसी भी देश के सर्वोच्च नेता के पद पर सबसे लंबे समय तक रहने वाली अकेली महिला भी है। शेख हसीना करीब 15 साल तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही है हालांकि सरकारी नौकरी में आरक्षण हटाने की मांग को लेकर विरोध कर रहे छात्रों का आंदोलन व्यापक और हिंसा में तब्दील होने के बाद शेख हसीना को पद और देश दोनों छोड़ने पड़े। बीते दिनों से बांग्लादेश में जो आंदोलन चल रहा है। उसमें सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक मसले भी शामिल है। आंदोलन में शामिल अधिकतर विश्वविद्यालय के छात्र है जो वामपंथी और उदारवादी समूह से जुड़े हैं। उनकी यह मांग थी कि स्वतंत्रता सेनानियों को 30 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, उसे खत्म किया जाए। इस आरक्षण का लाभ साल 1972 से स्वतंत्रता सेनानियों को दिया गया था। उसके बाद स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों का आरक्षण दिए गए और अब यह व्यवस्था कर दी गई थी कि स्वतंत्रता सेनानी के पोते-पोतियों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। इसका वहां विरोध हो रहा था और इस विरोध में युवा सड़कों पर उतर आए थे।
इस विरोध को भड़काने की एक वजह सियासी व बाहरी ताकते भी थी, क्योंकि स्वतंत्रता सेनानी ज्यादातर अवामी लीग के समर्थक है तो राजनीतिक विरोधियों द्वारा यह कहा जाता था कि यह अवामी लीग के वोट बैंक है, इसलिए आज तक लीग पार्टी उनको आरक्षण दे रही है। हालांकि साल 2018 में जब विरोध हुआ था तब अवामी लीग ने आरक्षण खत्म कर दिया था, पर जून 2024 में वहां के न्यायालय से फैसला आया और आरक्षण को फिर लागू कर दिया। ऐसे में छात्र फिर से भड़क उठे। इस असंतोष को दबाने में शेख हसीना ने पुलिस बल के प्रयोग की कोशिश की जो उनकी राजनीतिक और कूटनीतिक चूक थी। उन्होंने आंदोलित युवा को देशद्रोही और आतंकवादी शब्दों से नवाज़ा जिससे आंदोलित छात्र उग्र हो गए जिसे काबू करने में शेख हसीना असफल रही। अभी तक पुलिस और सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी में झड़प से लगभग 500 लोगों की जान जा चुकी है।
भारत-बांग्लादेश के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से मज़बूत रहे हैं जो साझा हितों और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के तहत इस साझेदारी में विशेष रूप से व्यापार, सुरक्षा व बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के मामले महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है। गौरतलब है कि इस साल जून महीने में शेख हसीना 2 सप्ताह के भीतर दो बार भारत आई थी। पहले वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने आई थी। उसके बाद शेख हसीना दो दिवसीय अधिकारिक दौरे पर भारत आई थी। मोदी के तीसरे कार्यकाल के शुरू होने के बाद शेख हसीना भारत दौरा करने वाली पहले विदेशी नेता थी। इस दौरे के बाद मोदी ने कहा था कि बीते एक साल में हम 10 बार मिले हैं हालांकि ये मुलाकात खास है, क्योंकि हमारी सरकार के तीसरे कार्यकाल में शेख हसीना पहली मेहमान है। इस कांफ्रैंस में शेख हसीना ने कहा ‘भारत के साथ संबंध बांग्लादेश के लिए बेहद अहमियत रखते हैं, हमने क्या किया और आगे क्या योजना है, यह देखने के लिए बांग्लादेश आइए।’ भारत का बांग्लादेश के साथ हमेशा ऐसा एक खास नाता रहा है, दोनों पड़ोसी देशों के बीच करीब 4096 किलोमीटर लंबी सीमा है, लेकिन दोनों के भाषाई, आर्थिक व संस्कृति हित भी एक से हैं। दोनों देशों के बीच 16 अरब डालर यानी करीब 1342 अरब रुपए का कारोबार है, एशिया में भारत के सबसे अधिक आयात करने वालों में बांग्लादेश शीर्ष पर है। हालांकि इन सबके बावजूद दोनों देश के रिश्ते बिल्कुल सही नहीं कहा जा सकता है।
चीन के साथ बांग्लादेश के करीब होने से कई बार उसके और भारत के बीच मतभेद पैदा हुए हैं। हालांकि बांग्लादेश भारत का निकटतम विकास भागीदार बन गया है। बांग्लादेश में विदेशी निवेश विशेष रूप से तीस्ता बैराज पर चीन के इच्छित निवेश से संबंधित कई महत्वपूर्ण विकास हुए हैं। हालांकि हसीना ने भारत को प्राथमिकता दी है, इसके अलावा सीमा सुरक्षाए पलायन जैसे मुद्दे पर अलग-अलग रूप और कुछ बांग्लादेशी अधिकारियों को मोदी सरकार के हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति को लेकर असहजता भी समय-समय पर सामने आती रहती है। इसी साल जनवरी में शेख हसीना लगातार चौथी बार चुनाव जीती। हालांकि यह बांग्लादेश का विवादित आम चुनाव था। विपक्षी दल बीएनपी ने इसका बहिष्कार किया था और चुनाव में धांधलीय बड़े पैमान पर विपक्षियों को गिरफ्तारी जैसे आरोप भी लगे थे। बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाओं की जुड़े कुछ हद तक शेख हसीना सरकार को भारत के समर्थन की वजह से भी है।
आलोचकों की नज़र में यह भारत का बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में दखलअंदाजी करने जैसा है। आलोचकों का मानना है कि पिछले 15 साल से भारत शेख हसीना सरकार को समर्थन देने वाला सबसे बड़ा देश था और भारत ने बांग्लादेश से लोकतंत्र को कमजोर करने में योगदान दिया है। शेख हसीना सरकार को मिले इस अपार समर्थन की वजह से ही मानवाधिकार हनन के आरोप के बावजूद दबाव में नहीं आई। इसके बदले में भारत को आर्थिक मोर्चे पर फायदा हुआ। भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होने कारण बांग्लादेश ने अमरीका सहित कई अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्ता को आकर्षित किया है। अमरीका बांग्लादेश में एक मजबूत सैन्य और राजनीतिक उपस्थित चाहता था। 1998 में अमरीका ने प्रस्ताव दिया कि बांग्लादेश स्टेटस आफ फोर्सज एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करें ताकि अमरीकी सैनिकों को संयुक्त अभ्यास करने तथा बचाव और राहत कार्यों में भाग लेने में सक्षम बनाया जा सके। आज बांग्लादेश में अमरीका की सबसे बड़ी चिंता बंगाल खाड़ी में बढ़ती चीनी उपस्थिति और म्यांमार में सैन्य शासन को चीन का समर्थन है। अमरीका बांग्लादेश को अपने इंडो-पैसिफिक रणनीति में लाना चाहता है और चीनी प्रभाव को कम करना चाहता है। (एजेंसी)