सर्वोच्च् न्यायालय के निर्देश

पंजाब के दो किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (़गैर-राजनीति) तथा किसान मज़दूर मोर्चा विगत लगभग छ: मास से पंजाब एवं हरियाणा की सीमाओं, अभिप्राय: शम्भू एवं खनौरी के राष्ट्रीय मार्गों पर धरना लगा कर बैठे हुए हैं। इन दोनों ने केन्द्र सरकार से सभी ़फसलों पर न्यूनतम खरीद मूल्य की कानूनी गारंटी देने एवं कुछ अन्य मांगों की पूर्ति के लिए आन्दोलन छेड़ा हुआ है। कुछ वर्ष पहले भी किसान संगठनों की ओर से केन्द्र द्वारा बनाये गये तीन कृषि कानूनों को वापिस करवाने के लिए देश की राजधानी दिल्ली जा कर आन्दोलन करने की घोषणा की गई थी। उस समय भी उन्हें हरियाणा की सीमाओं पर रोकने का यत्न किया गया था, परन्तु हरियाणा पुलिस को इसमें सफलता नहीं मिली थी। उसके बाद इन संगठनों से संबंधित भारी संख्या में किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर रोक लिया गया था, जहां वे सवा वर्ष तक आन्दोलन करते रहे। इस आन्दोलन के दौरान 700 से अधिक किसानों की मौत भी हो गई थी। अंतत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन कानूनों को वापिस लेने की घोषणा कर दी थी।
इसके बाद भी किसान स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सी2+50 प्रतिशत लाभ के फार्मूले के अनुसार ़फसलों के भाव देने तथा कुछ अन्य मांगों के लिए भिन्न-भिन्न स्तरों पर किसी न किसी रूप में अपना आन्दोलन करते रहे। इस समूचे घटनाक्रम के दौरान जहां प्रदेश का जन-जीवन भारी सीमा तक प्रभावित हुआ, वहीं प्रतिदिन तरह-तरह की दरपेश आती समस्याओं को लेकर पंजाब के ज्यादातर उद्योग प्रदेश से बाहर चले गए। यहां हर तरह का व्यापार भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। इस पूरे समय के दौरान तत्कालीन प्रदेश सरकारें कोई ठोस भूमिका अदा न कर सकीं, अपितु ज्यादातर वे मूक-दर्शक बन कर इस घटनाक्रम को देखती रहीं। पंजाब के लिए यह समूचा समय बेहद घाटे वाला साबित हुआ। एक बार फिर दो किसान संगठनों संयुक्त किसान मोर्चा (़गैर-राजनीति) तथा किसान मज़दूर मोर्चा के नेताओं क्रमश: जगजीत सिंह डल्लेवाल एवं सरवण सिंह पंधेर ने अपनी मांगों के लिए दिल्ली जाकर आन्दोलन करने की घोषणा की थी। 13 फरवरी को हरियाणा सरकार ने बड़े अवरोध लगा कर उन्हें शम्भू एवं खनौरी की सीमाओं पर रोक लिया। किसानों के दिल्ली की ओर मार्च के यत्न सफल न हुए, अपितु हरियाणा पुलिस की ओर से की गई सख्ती से तनाव और भी बढ़ गया। इसी दौरान एक किसान की हुई मृत्यु ने हालात और भी बिगाड़ दिये। पिछले छ: मास से पंजाब-हरियाणा में पड़ती शम्भू सीमा पर जी.टी. रोड पर धरना लगा कर बैठे किसानों के आन्दोलन के कारण तथा दूसरी तरफ हरियाणा की पुलिस की ओर से उन्हें दिल्ली जाने से रोकने के लिए सड़क पर लगाये गये अवरोधों के कारण एक बार फिर पंजाब-दिल्ली के मध्य यातायात पर भारी विपरीत प्रभाव पड़ा। कुछ समय तक किसानों की ओर से शम्भू सीमा से रेल यातायात भी रोका गया था। इस सब कुछ के परिणामस्वरूप एक बार फिर साधारण यातायात, उद्योग तथा व्यापार पर भी भारी प्रभाव पड़ा। इस कारण उद्योगपतियों तथा व्यापारियों ने लगातार ऐसे घटनाक्रम के प्रति अपनी नाराज़गी भी प्रकट की। यातायात प्रभावित होने के कारण वाहनों को छोटी सड़कों तथा टूटे-फूटे मार्गों से लम्बी दूरी तय करके गुज़रना पड़ा, जिससे अब तक पैट्रोल एवं डीज़ल का जहां करोड़ों रुपये का नुकसान हो चुका है, वहीं लाखों ही राहगीरों को लगातार भारी परेशानी से भी गुज़रना पड़ रहा है। इसके साथ हरियाणा के ज़िले अम्बाला एवं पंजाब के ज़िला पटियाला में रहते लोगों को भी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आपसी सम्पर्क में पड़ीं दूरियों के कारण स्थानीय व्यापार भी प्रभावित हुआ है। परेशानी के कारण दोनों प्रदेशों के सीमांत क्षेत्रों के लोग भी रोष प्रकट करते रहे हैं। किसान संगठन इस  पूरी परेशानी एवं समस्या के लिए हरियाणा सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं। उनके अनुसार सीमाओं को हरियाणा ने सील किया हुआ है। इस संबंध में भिन्न-भिन्न प्रभावित पक्षों ने अदालतों एवं उच्च न्यायालय का रुख भी किया था।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा को अवरोध हटाने के निर्देश दिए थे। अमन एवं कानून की समस्या को मुद्दा बना कर हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने अब पंजाब एवं हरियाणा के बीच पड़ती शम्भू सीमा को आंशिक तौर पर खोलने के लिए कहा है ताकि किसी न किसी तरह जन-साधारण की परेशानी को दूर किया जा सके। अदालत ने दोनों ओर से सड़क को एक तरफ से खोलने का आदेश दिया है, ताकि एम्बूलैंस तथा ज़रूरी सेवाओं, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, विद्यार्थियों एवं आस-पास के क्षेत्रों के स्थानीय लोगों को यातायात की सुविधा मिल सके। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कड़ी टिप्पणी की है कि राष्ट्रीय राज मार्ग ट्रैक्टरों, ट्रालियों एवं अन्य वाहनों की पार्किंग के लिए नहीं हैं। उसने दोनों प्रदेशों को किसानों के साथ बातचीत करने के लिए एक समिति बनाने के लिए भी कहा है तथा दोनों प्रदेशों की पुलिस एवं प्रशासन को भी ये निर्देश दिए हैं कि एक निर्धारित अवधि में निर्विघ्न यातायात के लिए प्रबन्धों को पूर्ण किया जाए। हम आशा करते हैं कि देश के सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे निर्देशों के बाद इस मामले का शीघ्रातिशीघ्र कोई न कोई उचित हल ज़रूर निकाला जा सकेगा, ताकि यहां जन-जीवन को पुन: बहाल किया जा सके।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द