किसान मेलों को व्यापार और राजनीति का केन्द्र न बनाया जाए

सितम्बर किसान मेलों का महीना है। सब्ज़ इन्कलाब के बाद फसलों का उत्पादन बढ़ाने में अधिक योगदान ज़्यादा उपज देने वाली फसलों की नई किस्मों के बीज का है। सितम्बर में लगाए गए इन मेलों में किसानों को गेहूं तथा रबी की अन्य अलग-अलग फसलों के संशोधित बीज उपलब्ध करवाए जाते हैं और किसानों को ज्ञान-विज्ञान, नये कृषि अनुसंधान तथा नई कृषि सामग्री संबंधी जानकारी दी जाती है। किसान एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श करके अपने अनुभव साझा करते हैं और वैज्ञानिकों द्वारा की गई सिफारिशों की सफलता संबंधी मूल्यांकन करके वैज्ञानिकों को जानकारी देते हैं। इन मेलों में किसानों की जानकारी के लिए विभिन्न कम्पनियों तथा विक्रेताओं द्वारा स्टाल लगा कर कृषि प्रदर्शनियां भी लगाई जाती हैं। पी.ए.यू. द्वारा नागकलां जहांगीर (अमृतसर) में 3 सितम्बर को, बल्लोवाल सौंखड़ी में 6 सितम्बर को तथा फरीदकोट में 10 सितम्बर को किसान मेले लगाने के बाद दो दिवसीय मुख्य किसान मेला 13-14 सितम्बर को पी.ए.यू. कैम्पस लुधियाना में लगाया गया। मुख्य मेले में भारी संख्या में किसानों ने शिरकत की। फिर गुरदासपुर में 18 सितम्बर को किसान मेला आयोजित किया गया। इस दौरान पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन द्वारा आई.ए.आर.आई.-कोलैबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा में एक विशेष कैम्प लगा कर किसानों को बासमती की सफल किस्मों के प्लाट दिखाए गए और आई.सी.ए.आर. संस्थाओं द्वारा विकसित अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं की किस्मों के बीज वितरित किए गए। इसी क्रम में पी.ए.यू. द्वारा रौणी (पटियाला) में किसान मेला लगाया गया। पी.ए.यू. द्वारा अंतिम किसान मेला बठिंडा में 27 सितम्बर को लगाया जाएगा। 
अधिकतर किसान इन मेलों में नई किस्म के बीजों की प्राप्ति के लिए आते हैं। लुधियाना के मुख्य किसान मेले में तथा अन्य दूसरे स्थानों पर लगाए गए मेलों में पी.ए.यू. द्वारा विकसित की गई पी.बी.डब्ल्यू.-826 किस्म की मांग मुख्य रही। रखड़ा कैम्प में किसानों की अधिक मांग एच.डी.-3385, एच.डी.-3386 तथा एच.डी.-3406 गेहूं की किस्मों की रही। 
किसान मेलों के प्रबंधकों को बीज या अन्य सामग्री संबंधी व्यापक नीति नहीं अपनानी चाहिए। अब पी.ए.यू. तथा प्रमाणित संस्थाओं के अतिरिक्त अन्य निजी मेले भी लगने शुरू हो गए हैं, जिनका सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है कि बीज या कृषि सामग्री, मशीनरी आदि को बेचा जाए। इन मेलों में किसानों का वैज्ञानिकों से सम्पर्क तथा उन्हें ज्ञान-विज्ञान उपलब्ध करवाने की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। इन किसान मेलों में जो प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं, वहां सही रूप में कृषि सामग्री तथा कृषि मशीनरी की प्रदर्शनियां हों, व्यापारिक दुकानें नहीं। किसानों द्वारा मांग की जा रही है कि पी.ए.यू. के इन किसान मेलों आयोजित की गई प्रदर्शनियों में सही तथा किसान पक्षीय सामग्री बेचे जाने की ज़िम्मेदारी मेले के प्रबंधकों की होनी चाहिए। किसानों को सुरक्षित रखना पी.ए.यू. का उद्देश्य होना चाहिए और उनको लूट से बचाना पहला उद्देश्य होना चाहिए। अब प्रदर्शनियों में स्टाल बुक करवाने के लिए बहुत अधिक किराया लिया जाना लगा है, जिस कारण सिर्फ वे फर्में तथा व्यापारी ही आते हैं, जो अपना सामान बेच कर तथा अपने खर्च किए पैसे की वसूली करके वापिस लौट सकें। वे अपने उत्पाद की जानकारी देकर उन्हें फैलाए तो बेशक, परन्तु मेलों में उनके द्वारा लगाए गए स्टाल बिक्री की दुकानें नहीं बननी चाहिएं। मेलों के प्रबंधक किसानों को तकनीकी जानकारी एवं शुद्ध सामग्री उपलब्ध करवाने का साधन बनें। अनुसंधान संस्थाओं द्वारा जो नई किस्मों के बीज किसानों की बजाय कम्पनियों तथा व्यापारियों को समझौतों पर हस्ताक्षर करके लाखों में फीस लेकर दिए जाने लगे हैं, उसमें सुधार लाने की ज़रूरत है। किसान मेलों को प्रभावशाली बना कर किसानों तक नया कृषि ज्ञान एवं विज्ञान पहुंचाने के लिए भी अपेक्षित सुधार लाने की ज़रूरत है। यदि मेले आयोजित करने के लिए प्रबंधकों के पास पैसा न हो या पैसे की कमी हो तो बजट में मेलों के खर्च की व्यवस्था करके इन्हें और किसान-पक्षीय बनाया जाए। 
यह भी देखा गया है कि ये किसान मेले अब किसी सीमा तक राजनीति का केन्द्र बनते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों तथा किसानों की बजाय राजनीतिक प्रवक्ताओं की ओर प्रबंधकों का ध्यान अधिक लगा रहता है। किसान वैज्ञानिकों से सम्पर्क चाहते हैं, अपनी जानकारी में वृद्धि चाहते हैं, राजनीतिक भाषण नहीं। 

#किसान मेलों को व्यापार और राजनीति का केन्द्र न बनाया जाए