प्राकृतिक सौन्दर्य व वन्य जीवों से भरपूर डालमा वन्यजीव अभ्यारण्य

रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर उतरने के बाद मैं ऑटो से रांची बस स्टेशन पहुंचा, जोकि एयरपोर्ट से लगभग 5 किमी के फासले पर है। मुझे जमशेदपुर के लिए बस पकड़नी थी। डालमा वन्यजीव अभ्यारण्य के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं है। जमशेदपुर जाना इसलिए ज़रूरी था कि नेशनल हाईवे 33 से अभ्यारणय मात्र 10 किमी के फासले पर है। यह इस अक्तूबर के पहले सप्ताह की बात है। डालमा वन्यजीव अभ्यारणय का दौरा करने के लिए सबसे अच्छा समय अक्तूबर से मार्च तक का है। अप्रैल से सितम्बर तक डालमा वन्यजीव अभ्यारण्य में तापमान 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जिससे वहां रहना बहुत कठिन हो जाता है।  
हालांकि मुझे मालूम था कि डालमा वन्यजीव अभ्यारणय के प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुभव करने और इसके हाथियों व अन्य जीवों और वनस्पति को देखने के लिए पिंडराबेरा फारेस्ट रिज़र्व हाउस (एफआरएच) में एक रात का स्टे सबसे अच्छा है। दो कमरों वाला यह रेस्ट हाउस जंगल के केंद्र में स्थित है और दूरदराज़ का बहुत अच्छा नज़ारा पेश करता है। इसके अतिरिक्त तारों की छांव में लकड़ियों पर तैयार किये गये खाने का आनंद ही कुछ और है। याद रहे कि रेस्ट हाउस में कुक की व्यवस्था नहीं है। आप 500 रूपये प्रति दिन के हिसाब से कुक हायर कर सकते हैं और खाने पीने की चीज़ें अपने साथ ले जा सकते हैं। लेकिन मुझे रेस्ट हाउस में ठहरने का परमिट न मिल सका बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि मैं परमिट लेने के लिए जमशेदपुर में पायल टॉकीज़ के सामने रेंज फार्रेस्ट ऑफिस गया ही नहीं। 
इसलिए मेरे पास दूसरा सबसे अच्छा विकल्प मकुलाकोचा गांव के निकट बांस की झोपड़ियों में रहने का था। मज़ा आ गया। ये झोंपड़ियां सुंदर हरियाली से घिरी हुई हैं। इनमें रहते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं प्रकृति की गोद में हूं। मेरी झोपड़ी आरामदायक व सुरक्षित थी। गौरतलब है कि डालमा वन्यजीव अभ्यारणय में कैम्पिंग की अनुमति नहीं है; क्योंकि रात में जंगल में जंगली जानवरों का खतरा बढ़ जाता है। हां, आप अपना प्राइवेट वाहन भी जंगल के अंदर ले जा सकते हैं।  मकुलाकोचा में ही म्यूजियम कम इंटरप्रिटेशन सेंटर है, जहां आपको डालमा वन्यजीव अभ्यारणय के जीवों व वनस्पति की सारी जानकारी मिल जायेगी। यह केंद्र बायोलॉजिकल व ज़ूलॉजिकल शोध को प्रोत्साहित करने के लिए स्थापित किया गया है। मैं सबसे पहले इसी केंद्र में गया था ताकि अधिकतम जानकारी से लैस होकर डालमा वन्यजीव अभ्यारणय का आनंद उठा सकूं। मुझे यह जानकर दु:ख हुआ कि पिछले दो साल के दौरान यहां हाथियों की संख्या में कमी आयी है, जो इस अवधि के दौरान 105 से घटकर 85 रह गये हैं। लकड़ी की भी भयंकर तस्करी हो रही है और वन का अच्छा खासा हिस्सा उजाड़ हो गया है।  हालांकि अभ्यारणय में किसी धार्मिक स्थल का होना आश्चर्य में डालता है, लेकिन डालमा वन्यजीव अभ्यारणय में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसका स्थानीय लोगों व जमशेदपुर के निवासियों में बहुत अधिक महत्व है। महा शिवरात्रि की पूर्व संध्या पर हर समुदाय व जाति के लोग इस मंदिर में दर्शन हेतु आते हैं। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद मैं डालमा माई मंदिर भी गया, जिनके नाम पर इस अभ्यारणय का नाम रखा गया है।
एक अन्य दिलचस्पी का केंद्र ब्रिटिश युग के मझलाबांध व निचलाबांध हैं, जिनका निर्माण नील की खेती की सिंचाई करने और सोने की माइनिंग करने के लिए कराया गया था। यह बांध अब भी मज़बूती के साथ खड़े हुए हैं। इनकी वजह से छोटे-छोटे तालाब बन गये हैं, जहां हिरण व अन्य जानवरों को पानी पीते हुए देखा जा सकता है। यह इतनी मनोरम जगह है कि मुझे गर्मी से तो राहत मिली ही, साथ ही मूड इतना शायराना हो गया कि एक कविता की भी रचना कर डाली। 
डालमा वन्यजीव अभ्यारणय में सफारी की व्यवस्था नहीं है। पैदल ही घूमना पड़ता है, जोकि बहुत अच्छा है। डालमा वन्यजीव अभ्यारणय में ही पर्यटकों को पहली बार पैदल घूमने की अनुमति दी गई थी बजाय परम्परागत सफारी के। ट्रेल्स को डालमा के वन अधिकारी बहुत अच्छी तरह से मार्क करते हैं और आपको जानवरों व वनस्पति के बहुत करीब ले जाते हैं। वन गाइड के साथ वन्यजीवों के दीवाने खुलकर जंगल में घूम सकते हैं। इस तरह दुर्लभ जीव देखने का अवसर बढ़ जाता है। मुझे एक विशाल गिलहरी दिखायी दी। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर