विजय आनन्द उर्फ गोल्डी के अनसुने किस्से

अपने बड़े भाइयों देवानंद व चेतन आनंद की तरह विजय आनंद भी प्रतिभाशाली लेखक, निर्देशक व एक्टर थे। अगर गौर से देखा जाये तो गोल्डी के नाम से विख्यात विजय आनंद की अपने परिवार के प्रोडक्शन हाउस नवकेतन को सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाने और देवानंद को सदाबहार स्टार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका थी। देवानंद की अगर टॉप पांच फिल्मों की सूची बनायी जायेगी तो उनमें ‘गाइड’,‘ज्वेल थीफ’ व ‘जॉनी मेरा नाम’ को अवश्य शामिल किया जायेगा। इन तीनों ही फिल्मों का निर्देशन गोल्डी ने किया था। लेकिन 1971 में जब गोल्डी की फिल्म ‘तेरे मेरे सपने’ बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल न दिखा सकी तो उन्होंने दो विवादित निर्णय लिए, जिससे उनका करियर ही बर्बाद हो गया और फिर जिस गोल्डी के समक्ष बड़े-बड़े निर्देशक व आधुनिक निर्माता नतमस्तक होते थे कि उन्हें ‘फिल्म मेकिंग का मास्टर’ स्वीकार कर लिया था, वो कभी न उभर सके। गोल्डी का पहला विवादित निर्णय ओशो की शरण में जाकर स्वामी विजय आनंद बनना था और दूसरा यह कि उन्होंने अपनी सगी भांजी से विवाह किया, जिससे उनके परिवार में भयंकर कलह उत्पन्न हुई।
रोमांटिक, कॉमेडी, फैमिली ड्रामा, थ्रिलर आदि हर प्रकार की फिल्मों में सफलतापूर्वक हाथ आज़माने वाले विजय आनंद उर्फ गोल्डी का जन्म 22 जनवरी 1934 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था। उनके पिता वकील थे और जब वह छह बरस के हुए तो उनके सिर से उनकी मां का साया उठ गया। गोल्डी वास्तव में सिनेमा के जादूगर थे। सिनेमा के प्रति उनकी दिलचस्पी व प्रतिभा किशोरावस्था में ही ज़ाहिर हो गई थी। मात्र 16 वर्ष की आयु में गोल्डी ने अपनी पहली पटकथा लिख ली थी। चूंकि दोनों बड़े भाई फिल्मी दुनिया में स्थापित हो चुके थे, इसलिए गोल्डी को बॉलीवुड में प्रवेश करने में कोई कठिनाई न हुई। बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद के चलते ब्रेक मिलना तो आसान होता है, लेकिन अपने पैर प्रतिभा व किस्मत के दम पर ही जम सकते हैं। शोमैन राज कपूर भी अपने तीसरे बेटे राजीव कपूर का, ‘राम तेरी गंगा मैली’ जैसी सफल फिल्म बनाने के बावजूद, फिल्मी करियर बनाने में असफल रहे थे। जुबली कुमार राजेंद्र कुमार के बेटे कुमार गौरव भी ‘लव स्टोरी’ व ‘नाम’ जैसी सफल फिल्में देकर गायब हो गये। गोल्डी के पास प्रतिभा व किस्मत दोनों गुण थे। उन्होंने मात्र 21 साल की उम्र में फिल्म का निर्देशन करके बतौर लेखक-निर्देशक अपना लोहा मनवा लिया था और नवकेतन फिल्म्स से बाहर भी उनकी मांग निरंतर बढ़ती गई। मसलन, नासिर हुसैन के लिए उन्होंने ‘तीसरी मंजिल’ जैसी कामयाब सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म बनायी, जिसमें शम्मी कपूर व आशा पारिख की प्रमुख भूमिकाएं थीं। गोल्डी ने एक्टिंग के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माया, ‘कोरा क़ागज़’ आदि फिल्मों में लीड भूमिकाएं भी अदा कीं, लेकिन बतौर एक्टर उन्हें दर्शकों ने कुछ खास पसंद नहीं किया। एक्टिंग के मामले में वह अपने भाई देवानंद के पासंग भी न थे। 
ऐसा प्रतीत होता है कि 1971 में ‘तेरे मेरे सपने’ की असफलता का गोल्डी पर गहरा असर पड़ा और वह फिल्म निर्माण की जादूगरी ही भूल गये और किस्मत भी उनसे रूठ गई। वह फिल्में तो बना रहे थे- ‘ब्लैकमेल’ (1973), ‘छुपा रुस्तम’ (1973), ‘बुलेट’ (1976), लेकिन कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर रही थी। ऐसे में उन्होंने अध्यात्म की शरण में जाने का निर्णय लिया, ओशो के शिष्य बने और स्वामी विजय आनंद हो गये। अपने इस दौर में गोल्डी प्रेमनाथ के बेटे प्रेम किशन व शेखर कपूर को लेकर एक बोल्ड रोमांटिक फिल्म ‘जान हाज़िर है’ बना रहे थे। फिल्म में लवलीन थडानी हीरोइन थीं। वह भी ओशो के पुणे स्थिति आश्रम जाया करती थीं। लवलीन को गोल्डी से प्यार हो गया। लवलीन ने गोल्डी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। दोनों की शादी हो गई। चूंकि गोल्डी नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी फिल्मों में काम करे, इसलिए लवलीन ने फिल्म ‘जान हाज़िर है’ छोड़ दी। गोल्डी का भी फिल्मों से मोह भंग होता जा रहा था। लेकिन शादी के कुछ समय बाद लवलीन की इच्छा फिर से फिल्मों में काम करने की हुई। गोल्डी तो शो-बिज़ छोड़ना चाह रहे थे, ऐसे में पत्नी की फरमाइश का नतीजा घर में तनाव के रूप में निकला, जो इतना बढ़ा कि गोल्डी और लवलीन में तलाक हो गया। 
गोल्डी का ओशो से भी जल्द ही मोहभंग हो गया। वह वापस फिल्मी दुनिया में लौट आये। गोल्डी 1978 में जब ‘राम बलराम’ की शूटिंग में व्यस्त थे, तो अचानक एक सनसनी खेज़ खबर आयी कि उन्होंने अपनी बड़ी बहन की बेटी यानी सगी भांजी सुषमा कोहली से विवाह कर लिया है। इस शादी को लेकर आनंद परिवार में बखेड़ा खड़ा हो गया। बहरहाल, गोल्डी व सुषमा के एक बेटा वैभव आनंद हुआ, जो अब फिल्मी दुनिया से ही जुड़ा हुआ है। सुषमा कोहली ने 2018 के एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पति गोल्डी असल जीवन में बहुत शर्मीले थे। वह बेहद शांत स्वभाव के व्यक्ति थे और कभी गुस्सा नहीं करते थे। सुषमा ही अक्सर गुस्सा करती थीं व चिढ़ाया भी करती थीं, जबकि गोल्डी उन्हें समझाया करते थे। ‘गाइड’ के लिए दो फिल्मफेयर अवार्ड्स (निर्देशन व डायलाग) और ‘जॉनी मेरा नाम’ के लिए एक फिल्मफेयर अवार्ड (एडिटिंग) विजेता गोल्डी का 23 फरवरी, 2004 को मुंबई में निधन हो गया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर