टाइम ज़ोन किस तरह से तय हुए ?

‘दीदी, ये टाइम ज़ोन क्या होता है?’
‘टाइम ज़ोन या समय मंडल पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर वक्त का एकसा मानकीकरण कर दिया गया है। मसलन, इलाहाबाद और दिल्ली में वास्तविक समय अलग-अलग होता है, क्योंकि दोनों अलग-अलग लोंगीटियूड पर हैं, लेकिन चूंकि भारत का टाइम ज़ोन एकसा मान लिया गया है, इसलिए इन दोनों शहरों में एक ही समय माना जायेगा। सभी टाइम ज़ोन अपने स्थानीय समय को ग्रीनविच माध्य समय के अनुसार गणना करते हैं। भारत में यह समय गणना प्लस 5:30 घंटे है।’
‘यह टाइम ज़ोन तय क्यों किये गये?’
‘टाइम ज़ोन के तय होने से पहले बहुत बड़ी उलझन पेश आती थी, विशेषकर जब लोगों को रेल-रोड टाइम टेबल इस्तेमाल करने होते थे। इस उलझन को दूर करने के लिए अमरीका ने 1883 में स्टैण्डर्ड टाइम ज़ोन सिस्टम प्रयोग करना शुरू किया।’
‘फिर दुनिया के लिए टाइम ज़ोन कैसे तय हुए?’
‘वाशिंगटन डीसी में 1884 में एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया गया ताकि पूरे संसार के लिए एक सिस्टम तैयार किया जा सके।’
‘अच्छा।’
‘पृथ्वी को 24 ज़ोन में विभाजित किया गया, जिनमें से प्रत्येक 15 डिग्री लोंगीटियूड कवर करता है। यह प्राकृतिक विभाजन है क्योंकि पृथ्वी 15 डिग्री प्रति घंटा की दर से घूमती है।’
‘अब समझ में आया कि हर टाइम ज़ोन में एक-सा समय होता है।’
‘हां, और एक टाइम ज़ोन और उससे अगले टाइम ज़ोन में ठीक एक घंटे का अंतर होता है।’
‘टाइम ज़ोन की शुरुआत कहां से होती है?’
‘शुरू करने के लिए बिंदु ग्रीनविच, लंदन को चुना गया। इसलिए जब ग्रीनविच में दोपहर के 12 बजते हैं, तो पूरब की तरफ अगले ज़ोन में दोपहर का एक बजता है और पश्चिम की ओर अगले ज़ोन में सुबह के 11 बजते हैं। यह सिलसिला ऐसे ही चलता है, मसलन, ग्रीनविच से पांच ज़ोन पश्चिम में न्यूयॉर्क में सुबह के 7 बजेंगे।’
‘ओके।’
‘एक और बात। ग्रीनविच से संसार के विपरीत तरफ एक और विभाजक रेखा है, इंटरनेशनल डेट लाइन। यह लाइन लगभग 180वीं मेरीडियन है। ग्रीनविच पर जब नून होती है तो इस लाइन पर मिडनाइट होती है।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर