उमर अब्दुल्ला के समक्ष लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती

आखिरकार जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की धूप खिल ही गयी। केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर को अब निर्वाचित सरकार मिल गयी और नेशनल कान्फ्रैंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के बाद केन्द्र शासित प्रदेश में यह पहली चुनी हुई सरकार है, जो नई उम्मीदों के नये दौर का आगाज़ है। उमर अब्दुल्ला पहले भी एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उनकी यह पारी हर तरह से खास है। नई सरकार के मुखिया के तौर पर उमर अब्दुल्ला के सामने आम लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कठिन चुनौती भी है। 
जनता ने विकास और शांति की आकांक्षा के साथ दिल खोलकर मतदान किया और अपनी उम्मीदों की सरकार चुनी है। घाटी में दशकों तक अब्दुल्ला परिवार के शासन के अनुभव के मद्देनज़र घाटी के लोगों ने नेशनल कान्फ्रैंस पर भरोसा जताया। तमाम ऊहापोह, सुरक्षा चुनौतियों तथा विदेशी दखल की तमाम आशंकाओं को निर्मूल करते हुए जम्मू-कश्मीर के जनमानस ने स्पष्ट सरकार बनाने हेतु जनादेश दिया है। इस भूमिका तक पहुंचाने में भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास महत्वपूर्ण रहे हैं। कश्मीर में विकास, पर्यटन में भारी वृद्धि, शांति एवं सौहार्द का वातावरण बनना ऐसे ही प्रयासों की सार्थक निष्पत्ति है। नई सरकार को विकास की चल रही योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए आतंकमुक्त कश्मीर के संकल्प को मंज़िल तक पहुंचाना होगा।
जम्मू एवं कश्मीर में नई लोकतांत्रिक सरकार का गठन न केवल राजनीतिक दशा-दिशा स्पष्ट करेगा बल्कि राज्य के उद्योग, पर्यटन, रोज़गार, व्यापार, रक्षा, शांति आदि नीतियों तथा राज्य की पूरी जीवन शैली व भाईचारे की संस्कृति को प्रभावित करेगा। बहरहाल, ऐसे में नवनिर्वाचित सरकार और केंद्र का दायित्व है कि घाटी के लोगों ने जिस मजबूत लोकतंत्र की आकांक्षा व्यक्त की है, उसे पूरा करने में भरपूर सहयोग करें। एक समय राज्य में मतदाता डर कर मतदान करने हेतु नहीं निकलते थे। मतदान का प्रतिशत बेहद कम रहता था। इस बार मतदाता निर्भीकता के साथ मतदान करने निकले। जनता ने नेशनल कान्फ्रैंस के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के संकल्प को सकारात्मक समर्थन दिया है। 
यद्यपि लोकसभा चुनाव में नेशनल कान्फ्रैंस को कामयाबी नहीं मिल पायी थी, लेकिन जनता ने उन्हें राज्य में सरकार चलाने का स्पष्ट जनादेश दिया है। वहीं दूसरी ओर इस भारी मतदान व स्पष्ट बहुमत का एक निष्कर्ष यह भी है कि लोग घाटी में शांति, विकास, सौहार्द एवं सद्भावना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर प्रयास करना होगा कि इस क्षेत्र में शांति कायम होने के साथ विकास की नई बयार चले। जिसमें आम नागरिक खुद को सुरक्षित अनुभव करते हुए राष्ट्रीय विकास की धारा के साथ-साथ कदमताल कर सके।
निश्चित ही उमर के सामने चुनौतियां बड़ी हैं, आम लोगों को भी उनकी कठिनाइयों का अंदाज़ा है, वहीं खुद उमर ने भी व्यावहारिक नज़रिया अपनाने का संकेत दिया है। चुनाव के दौरान अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर कड़ा रुख अपनाने वाले उमर ने चुनाव नतीजे आने के बाद इस मसले पर अपना रुख नरम कर लिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं, जिनमें इस मुद्दे पर ज़ोर देने का किसी को कुछ फायदा होगा। उम्मीद बढ़ाने वाली बात यह भी है कि चुनावी कड़वाहट को पीछे छोड़ते हुए सभी पक्षों ने सहयोग का रुख अपनाने का संकेत दिया है। न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने नई सरकार के साथ मिलकर काम करने का संकेत दिया है, बल्कि खुद उमर ने भी उप-राज्यपाल से टकराव की बजाय आपसी समझ एवं सकारात्मकता से शासन करने की मंशा जतायी है, जो जहां जम्मू-कश्मीर की जनता के हित में है वही उमर की राजनीतिक सूझबूझ, परिपक्वता एवं विवेक का परिचायक है।
चाहे उप-मुख्यमंत्री पद जम्मू संभाग से चुने गए विधायक सुरिंदर चौधरी को मंत्रिमंडल में स्थान देने की बात रही हो या कांग्रेस के लिए स्थान खाली रखने की बात, उमर अब्दुल्ला यह संकेत दे रहे हैं कि वह सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। कांग्रेस ने फिलहाल सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात कही है, लेकिन इसका कारण राज्य का दर्जा न मिलने को बताया है। उमर को हर कदम सावधानी से उठाना होगा ताकि कोई भी स्थिति मंत्री पदों की संख्या का या ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों में मतभेद एवं टकराव का न बन जाए। उमर के एक-एक फैसले पर मंत्रिमंडल और उप-राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र का मामला सामने आ सकता है। ऐसे में देखना होगा कि इस सबके बीच जम्मू-कश्मीर की नई सरकार उमर के नेतृत्व में कितने सधे कदमों से आगे बढ़ती है क्योंकि सरकार को अपना दायित्व इस बात को ध्यान में रख कर निभाना होगा कि केंद्र शासित प्रदेश में उप-राज्यपाल के पास व्यापक अधिकार हैं।
केंद्र शासित प्रदेश में एक दशक बाद हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का खासा उत्साह लोकतंत्र की बुनियाद को मज़बूती दे रहा है। कहीं न कहीं जनता ने स्पष्ट संदेश भी दिया कि वह हिंसा, अस्थिरता, आतंकवाद व अलगाववाद से छुटकारा चाहती है। ज़ाहिरा तौर पर नई सरकार के सामने व्यापक जनाकांक्षाओं को पूर्ण करने की चुनौती होगी। इसलिए जम्मू-कश्मीर में नई सरकार को व्यापक जनाकांक्षाओं को पूर्ण करते हुए बदली हुई शासन व्यवस्था के साथ भी साम्य स्थापित करना है। 
इस बात का अहसास उमर अब्दुल्ला को भी है कि शासन चलाने में अब पहले जैसी स्वतंत्रता नहीं होगी। विश्वास किया जाना चाहिए कि कम से कम सीमावर्ती घाटी की संवेदनशीलता को देखते हुए इस केंद्र शासित प्रदेश में वैसा टकराव देखने को नहीं मिलेगा, जैसा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और एलजी के बीच देखने को मिलता रहा है। विश्वास करें कि नई सरकार को प्रशासनिक मामलों में नौकरशाही का पर्याप्त सहयोग मिलता रहेगा। उम्मीद की जा सकती है कि यथाशीघ्र पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की विसंगतियां दूर की जा सकेंगी।