अच्छे संकेत वाला रहा विदेश मंत्री का पाकिस्तान दौरा

विगत दिनों भारत के विदेश मंत्री जयशंकर की पाकिस्तानी दौरे की इसलिए बड़ी चर्चा रही है, क्योंकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के 9 साल पहले के इस्लामाबाद दौर के बाद वह अब वहां गये थे। दोनों देशों में पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद किसी न किसी रूप में लगातार टकराव बना रहा है। यह टकराव देश के आज़ाद होने और पाकिस्तान के अलग होने के समय 1947 से ही बना रहा है। चाहे इस लम्बे समय में अनेक बार आपसी मेलमिलाप और दोनों देशों के लोगों की सांझ बनाने की कोशिशें होती रहीं। सड़क व्यापार भी होता रहा, बड़ी हद तक अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों की भारत के साथ व्यापारिक गतिविधियां भी पाकिस्तान के माध्यम से होती रही हैं। दोनों देशों के लोग खास तौर पर पंजाबी सीमाओं के आर-पार भाषाई और सांस्कृतिक सांझ भी रखते हैं। दोनों देशों के अन्य लोग भी बड़ी हद तक और बड़े स्तर पर आपस में दोस्ती और प्यार की भावनाएं रखते हुए एक-दूसरे के साथ सम्पर्क बनाने के इच्छुक रहे हैं। दोनों देशों में स्थापित धार्मिक स्थानों की यात्रा के लिए भी श्रद्धालु यात्रियों के रूप में आते जाते रहे हैं लेकिन दोनों की दोस्ती की वार्ता से आपसी दुश्मनी की कहानी ज्यादा लम्बी है। दोनों देशों ने कई बार आपसी युद्ध भी लड़े हैं और लम्बे समय तक आपसी सम्पर्क भी तोड़े रखा है।
पाकिस्तान को यह गिला भी रहा है कि भारत ने बांग्लादेश की आज़ादी में बड़ा योगदान डाला था और उसी कारण ही पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे। पाकिस्तान समूचे कश्मीर पर भी लगातार अपना अधिकार जताता आया है।  उसने इस उद्देश्य के लिए भारत के खिलाफ अनेक प्रकार के आतंकवादी संगठनों का भी हर तरह सरंक्षण किया है, जिस कारण दोनों देशों में दुश्मनी की दास्तां लम्बी होती गई है। आज चाहे पाकिस्तान बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है, परन्तु वहां स्थापित हो चुके आतंकवादी संगठन उसके लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। बलोचिस्तान जहां अपनी आज़ादी के लिए सख्त जंग लड़ रहा है, वहीं अन्य प्रांतों की राजनीतिक तथा आर्थिक अस्थिरता ने भी देश में उथल-पुथल मचाए रखी है। दूसरी अहम बात यह भी है कि पाकिस्तान में समय-समय चाहे कोई भी सरकार बनी हो, उस पर सेना का ही गलबा रहा है। 
आज चाहे वहां के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ हैं, परन्तु उन पर भी सेना का पहरा लगा दिखाई देता है। उनके बड़े भाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भी यही चाहते रहे हैं कि भारत के साथ संबंध सुखद बनाए जाएं ताकि आर्थिक तंगी का शिकार हुआ पाकिस्तान इसमें से निकल सके। उन्होंने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के शंगाई कोऑप्रेशन सम्मेलन में शामिल होने के लिए पाकिस्तान आने पर स्वागत किया है और कहा है कि यह और भी अच्छा होता यदि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं पाकिस्तान आते। उन्होंने और कहा कि हमें अब विगत 70 वर्षों के कटु संबंधों को पीछे छोड़ कर आगामी 75 वर्षों में बेहतर रिश्ते बनाने बारे सोचना चाहिए। रिश्तों के सूत्र अब पुन: वहीं से पकड़ कर ही आगे चलना चाहिए, जहां पहले हमने छोड़े थे। परन्तु पाकिस्तान की मजबूरी यह रही है कि समय-समय पर वहां चुनावों के ज़रिये बनी सरकारों को भी अपनी नीतियां सेना की सोच के अनुसार ही बनानी पड़ती हैं। इस कारण दोनों देशों के संबंध बेहतर नहीं हो सके। अब शहबाज़ शरीफ भी अपने भाई नवाज़ शरीफ की भांति भारत के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं, परन्तु उनकी अपनी सीमाएं हैं। परन्तु उन्होंने इस्लामाबाद में हुए शंघाई कोऑप्रेशन आर्गेनाइजेशन के सम्मेलन में इस बार कश्मीर मामले का ज़िक्र नहीं किया, जबकि भारत के विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप में वहां यह संदेश दिया है कि आतंकवाद तथा आपसी व्यापार इकट्ठे नहीं चल सकते, परन्तु इसके बावजूद भारतीय विदेश मंत्री के इस दौरे को इसलिए अर्थ भरपूर कहा जा सकता है, क्योंकि इससे दोनों देशों के किसी न किसी रूप में पुन: सम्पर्क में आने की सम्भावना बनती दिखाई देती है।
आज इस बात की बड़ी ज़रूरत महसूस हो रही है कि यदि दोनों देश आपसी तनाव की अवस्था में से सहज की अवस्था में आ जाएं तो यह दोनों के लिए शुभ संकेत माना जाएगा। समय पाकर इस प्रकार के रचनात्मक संबंध क्षेत्र के विकास के साक्षी बन सकते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द