ट्रम्प की ऐतिहासिक जीत

 शक्तिशाली देश अमरीका में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुने जाने की विश्व भर में चर्चा है। अमरीका को विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र माना जाता है। लगभग सवा दो सौ वर्ष पहले 1789 में जार्ज वाशिंगटन अमरीका के पहले राष्ट्रपति बने थे। अब ट्रम्प इसके 47वें राष्ट्रपति चुने गये हैं। आज जब विश्व में दो बड़े युद्ध जारी हैं तथा अमरीका इन दोनों युद्धों के साथ जुड़ा हुआ है तो उस समय बिगड़े हुए हालात को साज़गार बनाने की उम्मीद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही है। डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार यह कहा था कि वह इन दोनों युद्धों को खत्म करने में सहायक होंगे। चाहे इस समय यह बात तो दूर की कौड़ी प्रतीत होती है परन्तु जितने साधन इस देश के पास हैं, यदि उसका प्रमुख सचेत रूप में ऐसी नीति पर चले तो इन युद्धों पर उसका प्रभाव पड़ने की उम्मीद ज़रूर उजागर होती है।
 इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अमरीका की ओर से अपनाई जाती नीतियों का विश्व भर में किसी न किसी रूप में प्रभाव ज़रूर पड़ता है। आर्थिक तौर पर वह सबसे बड़ा देश है तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर का आज भी बड़ी महत्त्व माना जाता है। अभी भी व्यापारिक लेन-देन में उसके डॉलर की चमक बनी हुई है। ट्रम्प ने ‘अमरीका फर्स्ट’ का नारा लगाये रखा है। यदि वह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अपने देश के उत्पादों को भी प्राथमिकता देने और विदेशी वस्तुओं पर अधिक टैक्स लगाने की नीति अपनाते हैं तो इससे ज्यादातर देशों की आर्थिकता पर प्रभाव पड़ेगा। इसी तरह अमरीका में सैंकड़ों वर्षों से प्रवासी आते रहे हैं। वे यहां के नागरिक बनते रहे हैं। इसीलिए आज इसमें अमरीका अफ्रीकी-अमरीकी, यूरोपियन-अमरीकी, एशियाई-अमरीकी, अरब-अमरीकी तथा मुस्लिम-अमरीकी नागरिकों का जमावड़ा है। ट्रम्प की नीति विश्व भर में किसी न किसी कारण यहां आते प्रवासियों को निरुत्साहित करने वाली है। कल को इस दिशा में बनाये जाने वाले कानूनों का भी विश्व भर में व्यापक स्तर पर प्रभाव देखा जा सकेगा। पिछले समूचे व्यवहार के दृष्टिगत ट्रम्प की सोच के संबंध में अनुमान लगा पाना कठिन है। उनके कामों एवं गतिविधियों संबंधी विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता।
 ट्रम्प का अब तक का राजनीतिक स़फर भी बेहद घटनाओं से भरपूर तथा अद्भुत रहा है। वह अमरीका के एक धनाढ्य व्यक्ति माने जाते हैं। इस क्षेत्र में वह दशकों से बेहद चर्चित नाम रहे हैं। ऐसा धन कुबेर, जन-साधारण एवं राजनीति को किस सीमा तक समझने के समर्थ हो सकते हैं, इस संबंध में अभी भी विश्वास के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता। आठ वर्ष पहले भी वह रिपब्लिकन पार्टी की ओर से देश के 45वें राष्ट्रपति बने थे। चाहे उस समय ठोस उपलब्धियों उनके हिस्से नहीं आईं, परन्तु वह बेहद चर्चा में रहे थे। आगामी राष्ट्रपति चुनाव में डैमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन से हार जाने के बाद उन्होंने एक तरह से परिणामों को नकारते हुए अपने समर्थकों  से अमरीकी संसद भवन (कैपीटल) की ओर मार्च करने की अपील की थी। संसद भवन में भी उनके समर्थकों तथा सुरक्षा बलों की झड़पें हुई थीं। उसके उपरांत ट्रम्प ने चुनाव परिणामों संबंधी अदालत में भी चुनौती दी थी। उन पर ऐसे हमले करने के आरोप भी लगते रहे हैं। किसी भी राष्ट्रपति द्वारा चुनाव हार जाने के बाद पुन: आगामी चुनाव में जीत प्राप्त करने की उदाहरण अमरीकी राजनीति में कम ही मिलती है। इससे पहले ग्रोवर क्लीवलैंड ही वर्ष 1885 से 1889 एवं फिर 1893 से 1897 तक अमरीकी राष्ट्रपति रहे थे।  ट्रम्प के मुकाबले में उतरी डैमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस ने इस दौड़ में कड़ा मुकाबला ज़रूर किया परन्तु पहले दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किए गए जो बाइडन के चुनाव अभियान में निराशाजनक कारगुज़ारी के कारण उनके स्थान पर उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस के चुनाव लड़ने हेतु की गई घोषणा के बाद उनके पास प्रचार के लिए सिर्फ 4 मास ही शेष बचे थे।
कमला हैरिस ने अपने देश को आर्थिक रूप से मज़बूत करने एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर संतुलन वाली नीतियां अपनाने की बात की थी, परन्तु ट्रम्प के ‘अमरीका फर्स्ट’ के नारे ने मतदाताओं पर चमत्कारिक प्रभाव डाला। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ट्रम्प के पहले कार्यकाल में बड़े बेहतर संबंध रहे हैं। मोदी ने इस जीत पर बधाई देते हुए यह कहा है कि उन्होंने पिछले कार्यकाल में भारत-अमरीका के बीच व्यापारिक संबंधों एवं रणनीतिक साझेदारी को जिस तरह से मजबूत किया था, भारत उनसे फिर इसी प्रकार की आशा रखेगा। आज जबकि भारत को भी अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तो ट्रम्प की जीत उनके लिए एक अच्छा सन्देश सिद्ध हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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