ट्रम्प की वापसी का भारत के लिए क्या अर्थ है ?

अमरीका के राजनीतिक इतिहास में डोनल्ड ट्रम्प ने ज़बरदस्त, ऐतिहासिक व अप्रत्याशित वापसी की है। ट्रम्प 78 वर्ष की आयु के हैं और आज तक केवल दूसरे व्यक्ति व पिछले 100 वर्षों के दौरान पहले हैं, जो दो गैर-निरन्तर कार्यकालों के लिए राष्ट्रपति चुने गये हैं। इस बात पर बहुत लिखा जा चुका है कि ट्रम्प 47वें राष्ट्रपति कैसे बने और कमला हैरिस अमरीका की पहली महिला राष्ट्रपति बनने से कैसे वंचित रह गईं? इसलिए इसे दोहराने से कोई फायदा नहीं। दिलचस्प तथ्य यह है कि रिपब्लिकन प्रत्याशी ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के लिए दोनों बार डेमोक्रेटिक पार्टी की महिला प्रत्याशियों को पराजित किया। आठ साल पहले उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को हराया था और अब कमला हैरिस को इलेक्टोरल कॉलेज में 277-224 से शिकस्त दी है। 
चूंकि रिपब्लिकन ने सीनेट पर भी कब्जा कर लिया है, हाउस ऑफ रेप्रिजेनटिव्स पर नियंत्रण बरकरार रखा है और सुप्रीम कोर्ट रूढ़िवादियों के अधीन है, इसलिए ट्रम्प व्हाइट हाउस में 20 जनवरी, 2025 को चार साल के लिए पहले (2017-2021) से अधिक मज़बूत होकर लौटेंगे। अत: यह प्रश्न प्रासंगिक है कि उनकी वापसी का विश्व और विशेषकर भारत के लिए क्या अर्थ होगा? भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रम्प को वह ‘मेरा दोस्त’ कहते हैं और चूंकि ट्रम्प 1.0 के दौरान भारत व अमरीका के बीच रणनीतिक हितों का प्रत्यक्ष सम्मिलन था, इसलिए अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भारत के लिए न सिर्फ स्वीकार्य बल्कि इच्छित प्रतीत होते हैं। लेकिन विश्व राजनीति दोधारी तलवार होती है, जिसका वार हालात व आवश्यकता पर निर्भर करता है, न कि दो देशों के नेताओं के व्यक्तिगत संबंधों पर। अत: ट्रम्प की वापसी पर न बहुत अधिक प्रसन्न होने की ज़रुरत है और न ही निराश होने की। ध्यान देने की बात यह है कि ट्रम्प मूडी भी हैं और शुद्ध व्यापारी भी, जो अपने हितों को अत्यधिक महत्व देते हैं। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में भारत के साथ व्यापार कर को बहुत अधिक बढ़ा दिया था, जिससे भारत और अमरीका के बीच व्यापार प्रभावित हुआ था।
ट्रम्प ने वापसी दो मुख्य बातों के आधार पर की है— निर्माण मोजो को पुन: हासिल करके ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ और अवैध इमीग्रेशन पर विराम लगाना। ट्रम्प के वाइट सुपरमेसी (श्वेत नस्लवाद) के झंडाबरदार समर्थक आम अमरीकियों को यह संदेश देने में सफल रहे कि उनकी खराब आर्थिक स्थिति और जॉब्स की समस्या के लिए दूसरे देशों से आने वाले लोग ज़िम्मेदार हैं। इस सिलसिले में चुनाव जीतने के बाद ट्रम्प के जो बयान आये हैं उनसे लगता है कि जो स्किल्ड वर्कर्स कानूनी तौर पर अमरीका में प्रवेश करना चाहते हैं और जो ‘डंकी रूट’ अपनाते हैं, उन दोनों के लिए और छात्रों के लिए अल्पकालीन वीज़ा पाना कठिन होने जा रहा है। ट्रम्प सीमाओं को सील करने के इच्छुक हैं। पिउ रिसर्च सेंटर के 2021 के अनुमानों के अनुसार अमरीका में जो अवैध अप्रवासी समूह हैं, उनमें तीसरा सबसे बड़ा समूह भारतीयों का है, जिसकी संख्या लगभग 7,25,000 है। अगर ट्रम्प अवैध अप्रवासियों को वापिस भेजने के अपने कार्यक्रम को अमल में ले आते हैं, जिसका संकेत उन्होंने अपने विजयी भाषण में भी दिया है, तो बड़ी संख्या में भारत के लिए वापसी की फ्लाइट पर होंगे। 
दरअसल, इस समय जो भारतीय अमरीका में हैं या जो अपनी अमरीकन ड्रीम को साकार करने के लिए वहां जाना चाहते हैं, उनमें कई कारणों से बेचैनी है। एच1बी वीज़ा नीतियां अधिक सख्त हो सकती हैं। ट्रम्प कैंप का कहना है कि कम से कम एक पैरेंट अमरीकी नागरिक या वैध रेजिडेंट होना चाहिए तभी बच्चे को स्वत: नागरिकता मिल सकती है। चूंकि एक मिलियन भारतीय ग्रीन कार्ड्स की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिए इस प्रावधान से हजारों परिवार प्रभावित हो सकते हैं। जिन भारतीयों ने डंकी रूट अपनाकर अमरीका में प्रवेश किया था, उन पर ‘घर वापसी’ की तलवार लटकी हुई है। जो भारतीय छात्र इस समय अमरीका में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, उनके सामने मुख्यत: दो समस्याएं हैं। एक, स्टेम के लिए प्रैक्टिकल ट्रेनिंग हेतु दो-वर्ष की विस्तार व्यवस्था पर विराम लगाया जा सकता है। दो, वीज़ा अवधि को कम किया जा सकता है, जिससे छात्रों का आर्थिक बोझ बढ़ जायेगा। 
बहरहाल, चीन के निरन्तर बढ़ते प्रभाव क्षेत्र को मद्देनज़र रखते हुए इतना तो तय है कि ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान नई दिल्ली और वाशिंगटन के द्विपक्षीय रक्षा समझौते अतिरिक्त मज़बूत होंगे। दोनों देश मिलकर ज्यादा कॉम्बैट एक्सरसाइज़ करेंगे, चाहे उनका फॉर्मेट दो देशों, चार देशों या अनेक देशों वाला हो। आईओआर में सुरक्षा सहयोग भी बढ़ेगा। अमरीका ने 2007 से भारत से 25 बिलियन डॉलर के रक्षा सौदे हासिल किये हैं और इस संदर्भ में उसने कुछ सालों तक तो रूस को भी पीछे छोड़ दिया था, जो लम्बे समय से भारत का मुख्य मिलिट्री सप्लायर रहा है। वैसे अब भारत सीधे ऑफ-द-शेल्फ खरीदारी की बजाय महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों व टेक्नोलॉजी के सह-उत्पादन व सह-विकास की मांग कर रहा है। देखना यह है कि ट्रम्प इस मांग को मानते हैं या नहीं। भारतीय वायु सेना भी लम्बे समय से यह मांग कर रही है कि 114 नये 4.5 जनरेशन मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) विदेशी सहयोग से भारत में निर्मित किये जाएं।  इन मांगों की स्वीकृति से ही मालूम हो सकेगा कि ट्रम्प अपने ‘दोस्त’ मोदी को कितना महत्व देते हैं। 
ट्रम्प की वजह से ग्लोबली दो चीज़ें बहुत बुरी तरह से प्रभावित होंगी—ट्रेड और क्लाइमेट चेंज। अपने पहले टर्म में वह मिस्टर टैरिफ थे, इस बार वह मास्टर टैरिफ बनना चाहते हैं और आयात पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाना चाहते हैं। क्लाइमेट चेंज के सिलसिले में जितनी भी प्रगति हुई है, वह अगर ट्रम्प के कार्यकाल में पीछे हट जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनका सिद्धांत ‘ड्रिल बेबी, ड्रिल’ का है। ट्रम्प का कहना है कि वह युद्ध शुरू नहीं करेंगे बल्कि उसे रोकेंगे। वह यूक्रेन को नाटो में शामिल करने के पक्षधर नहीं हैं और न ही मुफ्त में उसे हथियार देना चाहते हैं, फिर उनके व्लादिमीर पुतिन से भी अच्छे संबंध हैं, जिससे रूस-यूक्रेन युद्ध के तो जल्द रुकने की संभावना प्रबल है, लेकिन यही बात मध्य पूर्व के युद्ध के बारे में नहीं कही जा सकती क्योंकि ट्रम्प येरुशलम को इज़राइल की राजधानी बनाने के पक्ष में हैं और अमरीका में चुनाव की सबसे बड़ी फाइनेंसर यहूदी लॉबी है, जिसके दम पर ट्रम्प प्रति वोट 16.6 डॉलर खर्च कर सके।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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