लोगों की परेशानी बढ़ा रहे सड़कों पर लगते जाम
रोड टैक्स अदा किये बिना यदि आप सड़क पर अपना वाहन चलाते हुये पकड़े गये तो आपका चालान/जुर्माना होना निश्चित है। अब तो जगह-जगह सड़कों पर लगे टोल वसूली बैरियर्स पर हर लेन में मोटे अक्षरों में लिख दिया गया है कि ‘टोल दिये बिना भागने वाले से दस गुना टोल वसूली की जायेगी’। इसी तरह इन्शोरेन्स के बिना या कार सीट बेल्ट लगाये बगैर या दुपहिया वाहन हैलमेट लगाए बिना आप चलते हैं तो भी चालान को दावत दे रहे हैं। गोया, आपके वाहन में किसी भी कागज़ की कमी है फिर तो आपका सड़क पर निकलना चालान/जुर्माना भरने को दावत देना है। यहां तक कि यदि किसी मजबूरीवश कोई वाहन स्वामी समय पर टैक्स नहीं दे सका तो सरकार उससे जुर्माने के साथ टैक्स वसूल करती है? परन्तु सवाल यह है कि टोल व मार्ग टैक्स व कमेटी टैक्स आदि के नाम पर धन वसूली करने वाली सरकार इस वसूली के बदले में जनता को क्या देती है?
जब हम सड़क पर वाहन चलाते हैं तो हमें पता चलता है कि सड़कों पर कहीं गड्ढे हैं तो कहीं टोल पर लम्बी लाइनें। सड़कों पर कई-कई घंटों के लम्बे जाम हैं तो उसी जाम में धूल,धुएं और प्रदूषण भरी घुटन। क्या इसी दुर्व्यवस्था के बदले सरकार आम लोगों से वाहन व उसके नाम पर अन्य टैक्स वसूलती है? सबसे बड़ी बात यह कि सरकार की गलत व पूंजीवाद पक्षीय नीतियों का खमियाज़ आखिर जनता क्यों भुगते? उदाहरण के तौर पर गत एक वर्ष से पंजाब-हरियाणा के शम्भू बॉर्डर पर दिल्ली-अमृतसर मुख्य मार्ग पर किसान धरने पर बैठे हैं, परन्तु हरियाणा की भाजपा सरकार उन्हें दिल्ली जाने के लिये हरियाणा में प्रवेश नहीं करने दे रही। केन्द्र सरकार का फरमान है कि किसान दिल्ली से दूर रहें। हरियाणा सरकार उसी आदेश पर अमल करते हुये किसानों को बलपूर्वक शम्भू बॉर्डर पर रोका हुआ है। धरने के कारण सरकार ने देश का सबसे व्यस्ततम मार्ग को रोक रखा है जिस कारण आम लोगों को बहुत परेशानी हो रही है। वाहन टैक्स भरने वाले आम लोगों को तो बिना बाधा के सुचारु रूप से चलने वाला राजमार्ग चाहिये जो उन्हें सरकार नहीं दे पा रही है। नतीजतन अमृतसर-बटिंडा-जम्मू कश्मीर तक का वह ट्रैफिक जो राजपुरा-शम्भू-अम्बाला से होकर दिल्ली की ओर निकल जाता था अब उसे राजपुरा-ज़ीरकपुर से वाया चंडीगढ़-डेराबसी-अम्बाला से होकर गुज़रना पड़ रहा है। इस मार्ग परिवर्तन के चलते चंडीगढ़-अम्बाला मार्ग लगभग 24 घंटे बाधित रहता है। और टोल पर भी लम्बी कतारें लगी रहती हैं।
समय-समय पर सरकारों द्वारा अपनी पीठ थपथपाने के विज्ञापन दिये जाते हैं कि देश में सड़कों का रिकार्ड निर्माण हो रहा है, सड़कों का जाल बिछ रहा है। यदि ऐसा है तो जाम की स्थिति क्यों? कुछ समय से सरकार ने प्रदूषण कम करने के नाम पर 10-15 वर्ष पुराने वाहनों का चलन बंद करने का निर्णय लिया है। दिल्ली में तो इनका प्रवेश पूर्णतय: वर्जित है। इस नीति की आलोचना करने वालों का विचार है कि यह नियम पूंजीपतियों के मुनाफे की खातिर बनाये गए हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा वाहन बिक सकें। उधर जगह-जगह फाइनेंसर भी वाहनों के लिए लोन देने के लिए तैयार बैठे हैं। ऐसे में सड़कों पर उधार की चमचमाती हुई नई गाड़ियों की कतार बढ़ना भी स्वभाविक है।
सड़कों पर लगने वाले इन दमघोंटू और जानलेवा जाम का प्रभाव केवल यही नहीं होता कि जाम में फंसे लोग 2-4 घण्टों के जाम के बाद अपने घरों को पहुंच जाते हैं। जी नहीं, इन्हीं जाम में फंसी बसों में अनेक यात्री ऐसे होते हैं जो चंडीगढ़, हिमाचल या अन्य क्षेत्रों से बसों में बैठकर अम्बाला छावनी जाते हैं जहां से उन्हें यूपी-बिहार या अन्य राज्यों की लम्बी दूरी की ट्रेन पकड़नी होती है। परन्तु रोज़ाना के इस जाम में घंटों तक फंसी होने वाली बसों के अनेक यात्रियों की ट्रेन छूट जाती है। ज़रा सोचिये कि मुश्किल से महीनों पहले कराया गया आरक्षित टिकट होने के बावजूद लम्बी यात्रा करने वालों की ट्रेन छूटने पर उस यात्री व उसके परिवार को इस जाम की क्या कीमत चुकानी पड़ती होगी? कम से कम सत्ता का सुख भोग रहे नेताओं को तो शायद इस बात का बिल्कुल नहीं पता? इसी जाम में कभी एम्बुलेंस फंस जाती है, तो कोई अपनी परीक्षा या साक्षात्कार से हाथ धो बैठता है। खांसी दमे के अन्य गम्भीर मरीज़ों के लिये तो यह जाम कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो जाता है। मगर सरकार के पास आम लोगों की इन परेशानियों का कोई समाधान नहीं। केवल एक चंडीगढ़-अम्बाला राजमार्ग ही नहीं बल्कि कहीं भी चले जाइये पहाड़ी क्षेत्रों में चंडीगढ़-शिमला मार्ग हो या कुल्लू-मनाली मार्ग, एनसीआर में क्या गाज़ियाबाद तो क्या दिल्ली गुड़गांव या दिल्ली के चारों तरफ का करीब 50 किलोमीटर का इलाका, यहां लगभग सारा दिन जाम लगा ही रहता है। इसी तरह देश के अन्य नगरों विशेषकर महानगरों में भी जानलेवा जाम लगे दिखाई देते हैं। कुल मिलाकर देश का कोई भी अहम मार्ग ऐसा नहीं जहां जाम न लगते हों।
टैक्स भरने के बावजूद भी यदि जनता को इसी तरह के जाम का सामने करना पड़े तो इसका ज़िम्मेदार कौन है? जाम के कारण जिन लाखों लोगों को रोज़ाना भारी नुकसान व परेशानियां उठानी पड़ती हैं, वे अपनी फरियाद लेकर किसके पास जाएं जाये? सरकार जनता से किसी न किसी बहाने टैक्स तो वसूल कर लेती है परन्तु उसके बदले में जनता को वह सुविधा मुहैय्या नहीं करा पाती जिसके लिये टैक्स वसूला गया है। अत: निश्चित रूप से यह केवल सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को जानलेवा होते जा रहे सड़क जाम से मुक्ति दिलाये।