देश की आर्थिकता को बल देता ‘मन की बात’ कार्यक्रम
‘मन की बात’ कार्यक्रम ने पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के कला-कौशल, उत्पाद एवं क्षेत्रीय विशेषताओं आदि को नए आयाम दिए हैं। अब इससे लोकल भी ग्लोबल होते जा रहे हैं। अब यह कार्यक्रम जन संवाद का लोकप्रिय पटल बन चुका है। ‘मन की बात’ कार्यक्रम की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज यह कार्यक्रम भारत की 22 भाषाओं के साथ-साथ लगभग 11 विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित हो रहा है।
आम व्यक्ति की स्थिति, उसके विचार एवं उसकी उपलब्धियां ‘मन की बात’ को आकार देती हैं। सामान्य व्यक्ति के जीवन पर विविध आयामी प्रभाव इसकी व्यापकता को निरन्तर बढ़ा रहा है। प्रत्येक महीने के अंतिम रविवार के दिन विभिन्न आयु एवं कार्य व्यवसायों के लोग इस कार्यक्रम का इंतज़ार करते हैं। इंडियन इंस्टिच्यूट ऑफ मैनेजमेंट रोहतक के 2023 के एक सर्वे के अनुसार 100 करोड़ से अधिक लोग ‘मन की बात’ को सुन चुके हैं और कार्यक्रम के प्रत्येक प्रसारण को कम से कम 23 करोड़ लोग ज़रूर सुनते हैं। नागरिक किसी भी समाज एवं राष्ट्र के विकास का मूल केन्द्र होते हैं। आज ‘मन की बात’ शोध एवं व्यापक चर्चा का विषय बन चुकी है। क्योंकि यह आरंभ से ही भिन्न-भिन्न रूपों में मानस निर्माण करते हुए राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर है। ‘मन की बात’ देश की आर्थिकता को भी बल दे रही है। कृषि, संस्कृति, पर्यटन, तीर्थाटन, योग, आयुर्वेद, हस्त-कौशल, मोटे अनाज, ऑर्गेनिक खेती आदि अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें प्रतिदिन अनेक नए-नए स्टार्टअप खड़े हो रहे हैं। वोकल फार लोकल का मंत्र व्यापक हो रहा है। सुदूर क्षेत्र में बने छोटे-छोटे उत्पाद आज वैश्विक हो रहे हैं। कला-कौशल से जुड़े हुए अनेक लोग जो हाशिये पर थे, ‘मन की बात’ में उनकी चर्चा होते ही वे वैश्विक होते जा रहे हैं। जन माध्यम रेडियो के ज़रिए ‘मन की बात’ से पीएम मुद्रा, पीएम स्वनिधि, सुकन्या समृद्धि, जनधन खाते आदि आर्थिक बदलावों से जुड़े कार्यक्रम एवं अनेक योजनाओं की जानकारी मिलने के कारण उन्हें प्रोत्साहन मिल रहा है। एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी जिस किसी योजना का ज़िक्र ‘मन की बात’ में करते हैं उस योजना का गूगल सर्च बढ़ जाता है और वह सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैलता है।
3 अक्तूबर 2014 के ‘मन की बात’ के पहले ही प्रसारण में प्रधानमंत्री ने खादी का आह्वान किया था। हम जब महात्मा गांधी की बात करते हैं तो खादी की बात बहुत स्वाभाविक ध्यान में आती है। आपके परिवार में अनेक प्रकार के वस्त्र होंगे, अनेक प्रकार के फैब्रिक होंगे, अनेक कम्पनियों के प्रोडक्ट्स होंगे, क्या उसमें एक खादी का नहीं हो सकता। इसी प्रकार सितम्बर 2015 के प्रसारण में उन्होंने कहा—एक समय था, खादी फॉर नेशन। क्या समय का तकाजा नहीं है कि खादी फार फैशन बने। आंकड़ों की बात करें तो वित्त वर्ष 2013-14 में खादी की बिक्री 31,154 करोड़ थी। वहीं यह वित्त वर्ष 2023-24 में लगभग 5 गुना बढ़कर 1.55 लाख करोड़ पहुंच चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि इससे ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है। ग्रामीण इलाकों में 10.7 लाख नए रोज़गार पैदा हुए हैं। इसी प्रकार सुकन्या समृद्धि योजना का मन की बात में ज़िक्र होने से इसके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा। परिणाम स्वरुप इस योजना में लगभग 4 करोड़ खाते खुल चुके हैं। इन खातों में लाखों करोड़ रुपये जमा है, जिससे ढांचागत और मूलभूत सुविधाएं तैयार की जा रही हैं।
रेहड़ी-पटरी और छोटे कार्य व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों के लिए सरकारी योजनाएं तो होती हैं, लेकिन उन तक जानकारी नहीं पहुंच पाती। फरवरी 2020 के प्रसारण में प्रधानमंत्री ने पीएम सम्मान निधि योजना का ज़िक्र किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अब लगभग 66 लाख रेहड़ी-पटरी वाले इस योजना के माध्यम से लोन का लाभ उठा चुके हैं। एक समय था जब हमारे हस्त कला-कौशल से जुड़े कारीगर लकड़ी, मिट्टी आदि के स्वदेशी खिलौने बनाकर अपनी आजीविका चलाते थे लेकिन भूमंडलीकरण, औद्योगिक क्रांति और मशीनीकरण ने उनका रोज़गार छीन लिया। परिणामतस्वरूप खिलौना उद्योग का बड़ा बाज़ार चीन के पास चला गया। कुछ वर्ष पहले तक अकेले भारत-चीन से लगभग 20 हज़ार करोड़ के खिलौने आयात करता था। ‘मन की बात’ में स्वदेशी का विचार एवं आत्मनिर्भरता की संकल्पना पर विस्तार से बात हुई, जिससे मानस बदला, स्वदेशी की मांग तेज़ी से बढ़ी। भारत में खिलौनों का घरेलू बाज़ार अब लगभग 124.73 अरब रुपये का हो गया है। साथ ही भारत से खिलौनों के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में 16.81 अरब के खिलौने निर्यात होते थे, जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 27.08 अरब डालर हो गया है। कार्य व्यवसाय को सरल बनाने के लिए सरकार अनेक प्रयास करती है लेकिन जब प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में ईज ऑफ डूइंग को बहुत सरल ढंग से समझाते हैं तो उद्योग एवं व्यवसाय से जुड़े छोटे-बड़े सभी लोग उससे जुड़कर अधिकाधिक उत्पादन, निर्यात एवं विदेशी बाज़ार तक पहुंच रहे हैं। आज छोटे-बड़े लगभग सभी व्यवसायी डिजिटल तकनीक से जुड़ रहे हैं। देश में 100 से ज्यादा यूनिकॉर्न बन चुके हैं तो वहीं 58000 से ज्यादा स्टार्टअप की संख्या हो चुकी है। ‘मन की बात’ ने आयुर्वेद की राष्ट्रीय और वैश्विक स्वीकार्यता को बढ़ाया है। प्रधानमंत्री मन की बात के अनेक कार्यक्रमों में आयुर्वेद के फायदे बताते हैं। विभिन्न औषधियां जो भारत में उपलब्ध हैं, उनकी जानकारी देते हैं। परिणाम स्वरूप आज वर्ष 2013-14 की तुलना में आयुर्वेद का बाज़ार लगभग आठ गुना बढ़कर 3.20 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। आयुष मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में 53 हज़ार से अधिक लघु और मझौली इकाइयां आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादन में लगी हैं। इस क्षेत्र में 900 से अधिक स्टार्टअप भी खुल चुके हैं। ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ऐसे स्वयं सहायता समूहों से जुड़े हुए लोगों से जब बात करते हैं तो उनके उत्पाद की चर्चा करते हैं। इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलती है। (युवराज)