धारा-370 की पुनर्बहाली : सपना हो सकता है, सच्चाई नहीं

राजनीति में आमतौर पर राजनेता जो कुछ कहते हैं, उस पर अमल नहीं करते और जो कुछ नहीं कहते, उस पर अमल करने की फिराक में रहते हैं। इसे ही कथनी और करनी का फर्क कहते हैं। जम्मू-कश्मीर के मौजूदा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मीडिया से कहा था कि वह उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करेंगे। साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान लगभग दो दर्जन अलग अलग मीडिया संस्थानों को दिये गये साक्षात्कार में भी उन्होंने एक बार भी नहीं कहा था कि अगर वह प्रदेश में मुख्यमंत्री बने तो पहले सप्ताह में ही धारा-370 की पुनर्बहाली का प्रस्ताव ले आएंगे। लेकिन 4 नवम्बर, 2024 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा का सत्र शुरु होता है और तीसरे दिन ही वह विधानसभा में धारा-370 की पुनर्बहाली का प्रस्ताव ले आते हैं। 
जबकि 11 दिसम्बर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजाें वाली पीठ, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ कर रहे थे, ने सर्वसम्मति से धारा-370 को हटाने के लिए दायर 23 अर्जियों पर फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को धार-370 को हटाये जाने को वैध माना था। इस पीठ ने जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे। 4 साल 4 महीने और 6 दिन के बाद सुनाये गये अपने फैसले में कहा था, ‘राष्ट्रपति को धारा-370 के हटाने का हक है। साथ ही धारा-370 हटाने का फैसला संवैधानिक तौर पर सही था।  संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होते हैं। ये फैसला जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए था। धारा-370 हटाने में कोई दुर्भावना नहीं थी। जम्मू-कश्मीर में जल्द चुनाव के लिए कदम उठाएं। 30 सितम्बर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव हों। जम्मू-कश्मीर को जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि लद्दाख को अलग करने का फैसला वैध था।’
इसी तरह मौजूदा विधानसभा के लिए जब जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने जब चुनाव लड़ने का निश्चय किया, तब तक उन्हें बिल्कुल स्पष्ट था कि संविधान की धारा-370 को हटाया जाना संवैधानिक था और हर वह राजनीतिक पार्टी तथा व्यक्तिगत रूप से राजनेता जो चुनाव लड़ने के लिए नामांकन करता है, वह अपने हलफनामे में भारतीय संविधान को मानने की स्वीकृति देता है। 
गत 7 नवम्बर को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायक खुर्शीद अहमद शेख ने धारा-370 की वापसी का बैनर लहराया, जिस पर लिखा था, ‘हम धारा-370  और 35ए की बहाली तथा सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई चाहते हैं।’ गौरतलब है कि खुर्शीद अहमद शेख उन्हीं इंजीनियर राशिद के भाई हैं, जिन्होंने जेल में रहते हुए बारामूला लोकसभा क्षेत्र से उमर अब्दुल्ला को हराया था और जिन्हें 2016 में जम्मू-कश्मीर में आतंकी फंडिंग के आरोप में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। राशिद 2019 से दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में बंद हैं। खुर्शीद अहमद शेख के इस तरह धारा-370 के पक्ष में बैनर लहराये जाने के कारण सदन में भाजपा के विधायक और विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने इसका ज़ोरदार विरोध किया, जिसके विरोध में विपक्षी सदस्य नारेबाजी करने लगे। जब इस मामले में माहौल और ज्यादा गर्माया तो भाजपाई विधायक खुर्शीद अहमद शेख के पास पहुंचे और उनके हाथ से बैनर छीन लिया। इस पर सज्जाद लोन, वहीद पारा और नेशनल कॉन्फ्रैंस के कुछ विधायक खुर्शीद अहमद के समर्थन में आगे आकर भाजपा विधायकों से भिड़ गये। दोनों ही पक्षों की तरफ से पहले जबरदस्त धक्का मुक्की हुई और फिर हाथापाई शुरु हो गई जिस कारण भाजपा के आर.एस. पठानिया सहित तीन विधायक घायल हो गये। यह देखते हुए स्पीकर ने सदन में मार्शलों को बुला लिया और वे भाजपाई विधायकों को सदन से खींचकर बाहर ले गए। भाजपा के विधायक इस पूरे हंगामे के दौरान लगातार यही कह रहे थे कि धारा-370 की वापसी का प्रस्ताव भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट का अपमान है। 
 हैरानी की बात तो यह है कि जो उमर अब्दुल्ला चुनाव के दौरान लगातार यह कह रहे थे कि धारा-370  की वापसी का वायदा करना आसान नहीं है और यह भी वह बार-बार कह रहे थे कि जिन्होंने इस धारा को संविधान से हटाया है, कम से कम उनसे तो इसकी मांग की नहीं जा सकती। लेकिन वही उमर अब्दुल्ला ने अपने तेवर बदलते हुए 7 नवम्बर 2024 को कहा, ‘हमने अपने घोषणापत्र में बहाली के इस प्रयास का वायदा किया था और हमने वह कर दिखाया।’
कांग्रेस ने उमर सरकार मेें शामिल होकर भूमिका निभाने की बजाय उसे बाहर से समर्थन देना तय किया। शायद कांग्रेस जानती थी कि वह अगर इस सरकार में शामिल हुई तो धारा-370  को हटाने संबंधी किसी भी प्रयास का नकारात्मक ठीकरा उसके भी सिर पर फूटेगा जबकि कांग्रेस नेशनल कॉन्फ्रैंस के साथ शामिल होकर भी न तो बातों से और न ही अपनी गतिविधियों से ऐसा कोई उपक्रम करते हुए दिखना चाहती है कि देश को यह संदेशा जाए कि कांग्रेस धारा-370 की बहाली के पक्ष में है।
यही वजह है कि 7 नवम्बर को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में मारपीट और हंगामा होने के बाद भी कांग्रेस ने एक बार भी यह नहीं कहा कि वह धारा-370 को हटाये जाने की मांग कर रही है। वह बार-बार सिर्फ जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग कर रही है और इस पर केंद्र सरकार ने भी ऐसा नहीं कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का पूर्ण दर्जा नहीं मिलेगा लेकिन लगता है कि जम्मू-कश्मीर की कुछ अलगाववादी ताकतें चुनाव लड़ कर अब यह प्रदेश की अवाम और प्रदेश के बाहर बैठे अलगाववादी शुभचिंतकों को संदेश देना चाहती हैं कि वह धारा-370 को फिर से बहाल करवाने की प्रयास में जुटी हुई हैं, इसलिए यह सब खेल होता दिख रहा है लेकिन प्रदेश की अलगाववादी पार्टियों और प्रदेश व देश के बाहर उन्हें उकसाने वाले आकाओं को यह बात बहुत अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि उनका यह सपना तो हो सकता है, मगर यह सच्चाई कभी नहीं होगी। अब कभी धारा-370 की बहाली नहीं हो सकती।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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