ट्रम्प की जीत के भारत पर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे ?
जब ताज की अदला बदली हो
तो नियम पुराने भी बदलें,
कुछ फर्क तो ़खुद पर पड़ता है
कुछ असर ज़माना सहता है।
यह ठीक है कि अमरीकी चुनावों में डैमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस की हार एवं रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दोबारा हुई जीत एक लिहाज़ से अमरीका का आंतरिक मामला है, परन्तु वैश्विक राजनीति में तथा विश्व स्तर पर जो स्थान अमरीका के पास है, उस कारण इस सत्ता-परिवर्तन का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ेगा। हमारी चिन्ता सिर्फ इतनी है कि इस बदलाव का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा या वहां रहते पंजाबी एवं सिख समुदाय पर पड़ने वाला प्रभाव भी हमारे लिए विशेष महत्व रखता है। परन्तु यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि चाहे अमरीका के राष्ट्रपति को विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है, परन्तु अमरीका का राजनीतिक ढांचा इतना मज़बूत तथा जटिल है कि राष्ट्रपति की मज़र्ी भी प्रत्येक जगह नहीं चल सकती। फिर अमरीका में एक ‘डीप स्टेट’ जैसी अदृश्य ताकत की भी देश की नीतियां बनाने में अहम भूमिका सदैव चर्चा में रही है। किसी भी देश की नीतियों में बदलाव देश के हितों के अनुसार ही किया जा सकता है। हमारे सामने है कि ब्रिटेन में जुलाई में लेबर पार्टी कंज़र्वेटिव पार्टी को हरा कर सत्ता में आई, परन्तु ब्रिटेन की विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया।
वैसे भी यह समझा जा रहा है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प वही डोनाल्ड ट्रम्प नहीं होंगे जो पिछली सरकार के समय थे। अब उनके पास जहां 4 वर्ष शासन चलाने का अनुभव है, वहीं 4 वर्ष विपक्ष के नेता के रूप में विचरण करने का अनुभव भी है। सो, हम अमरीका की विदेश नीति में किसी बहुत बड़े बदलाव की आशा नहीं कर सकते। फिर भी ट्रम्प की ‘अमरीका फर्स्ट’ नीति के कारण यह आशा की जा सकती है कि वह रूस के साथ टकराव खत्म करने के लिए तथा अमरीका के विश्व राजनीति में किये जा रहे खर्च को कम करने की ओर ध्यान देंगे। इस ‘अमरीका फर्स्ट’ सोच के साथ भारत पर भी कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की सम्भावना अवश्य है। विशेषकर भारत जो अमरीका को 77.52 बिलियन डालर का सामान भेजता है और 42.2 बिलियन डालर का सामान मंगवाता है, इस बारे हाल ही में ट्रम्प द्वारा कही गई बात कि ये लोग (भारत) पिछड़े हुए नहीं, अपितु चालाक हैं। भारत निर्यात के मामले में शीर्ष पर है और इसका इस्तेमाल वह हमारे खिलाफ करता है, से अनुमान लगाया जा सकता है कि वह भारतीय प्रधानमंत्री के साथ मित्रता के बावजूद भारतीय निर्यात के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। विशेषकर यदि ट्रम्प जैसे कि वह चुनावों के दौरान वादा करते रहे हैं, रूस के साथ संबंध सुधार न सके तो वह भारत तथा रूस से संबंधों तथा ब्रिक्स में भारत की अमरीका विरोधी नीति के कारण भारतीय वस्तुओं पर आयात कर (कस्टम ड्यूटी) भी बढ़ा सकते हैं और राजनीतिक दबाव भी बढ़ाया जा सकता है। हां, उसकी चीन विरोधी आर्थिक नीति भारत के लिए एक अवसर भी प्रदान कर सकती है। इस बीच भारतीयों को अमरीका में वीज़ा कम मिलने तथा नौकरियों से हाथ धोने की स्थिति का डर भी अवश्य रहेगा। ट्रम्प द्वारा वहां अवैध रूप में रह रहे भारतीयों को डिपोर्ट करने का अभियान भी तेज़ किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि अमरीका में अवैध रूप में दाखिल हुए 90415 लोग तो पिछले सिर्फ एक वर्ष में ही पकड़े गए हैं। पाठकों के लिए शायद यह हैरानी की बात होगी कि इनमें से आधे से ज़्यादा सिर्फ गुजराती थे, पंजाबी नहीं। यहां विदेशों में रहते तथा अच्छी तरह स्थापित हुए पंजाबियों को लिए एक निहोरा भी है कि चीनी, फिलिपाइनी, मैक्सिकन, गुजराती तथा अन्य कई देशों तथा राज्यों के लोग अमरीका या कनाडा में आए अपने भाइचारे के कानूनी या गैर-कानूनी प्रवासियों के पक्के होने के लिये हर सम्भव यत्न करते हैं, परन्तु पंजाबी चाहे सभी नहीं, परन्तु कई पंजाबी तो वहां आए पंजाबियों की मदद तो क्या अपितु उनका शोषण तक करते हैं, परन्तु बातें पंजाबियत की करते हैं। एक और बात कि ट्रम्प ने जैसे बांग्लदेश के तख्ता-पलट के समय वहां हिन्दू अल्पसंख्यक लोगों पर हो रहे हमलों की निन्दा की है, उससे आशा की जा सकती है कि वह प्रत्येक जगह अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे बुरे व्यवहार के खिलाफ खड़े होंगे। इसके अतिरिक्त भारत तथा अमरीका में रक्षा संबंधी व्यापारिक सहयोग बढ़ सकता है, परन्तु यह भारत-रूस संबंधों तथा रूस के साथ अमरीका की चल रही अप्रत्यक्ष जंग पर निर्भर है। इस बीच यह बात भी देखनेयोग्य होगी कि कनाडा द्वारा भारत को दुश्मन देशों की सूची में डाले जाने तथा अमरीका में गुरपतवंत सिंह पन्नू को भारतीय एजेंसियों द्वारा कत्ल करने की, की गई साज़िश संबंधी चल रही जांच संबंधी क्या स्टैंड लेते हैं।
हालांकि ट्रम्प की जीत अमरीकी सिखों के लिए थोड़ी चिन्ता की बात समझी जाती है, क्योंकि अमरीकी सिख लॉबी का वहां की राजनीति में अधिक प्रभाव नहीं है। स्थानीय सिख नेतृत्व ने ट्रम्प की जीत पर खुले दिल से बधाई देकर तथा जश्न मना कर बुद्धिमानी से काम लिया है, परन्तु देखने वाली बात यह है कि अमरीका में रहते भारतीयों की संख्या चाहे लगभग 1 प्रतिशत ही है, परन्तु वे वहां 6 प्रतिशत टैक्स देते हैं, जो उनके प्रभाव को दर्शाता है। अमरीका में लगभग 20 लाख हिन्दू आबादी है और सिख आबादी करीब 5 से 6 लाख है, इस बार अमरीका के हाऊस ऑफ रिप्रीज़ेंटेटिव के लिए भारतीय मूल के 6 व्यक्ति चुने गये हैं जिनमें 5 हिन्दू तथा एक इसाई है, चाहे राष्ट्रपति चुनाव हारने वाली कमला हैरिस भी हिन्दू मूल की ही है, परन्तु सिख एक भी नहीं जो स्पष्ट करता है कि अमरीकी राजनीति में सिख लॉबी बहुत कमज़ोर है। अमरीकी सिखों को विश्व के सबसे ताकतवर देश की राजनीति में अपनी भागीदारी मज़बूत करने बारे अवश्य कोई बड़े प्रयास करने चाहिएं।
रात तो वक्त की पाबंद है, ढल जाएगी,
देखना ये है चिऱागों का स़फर कितना है।
-वसीम बरेलवी
कनाडा की निन्दनीय घटना
यह ठीक है कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती, ब्रैम्पटन स्थित मंदिर में खालिस्तानी समर्थकों तथा हिन्दू समुदाय के कुछ लोगों में हुई धक्का-मुक्की तथा मारपीट की घटना को प्रत्येक सूझवान बुरा ही कहेगा। मंदिर की प्रबंधक कमेटी हिन्दू सभा द्वारा मंदिर के पुजारी को, श्रद्धालुओं को हिंसक प्रचार के लिए भड़काने के आरोप में निलम्बित भी किया जा चुका है और दूसरी ओर ओंटारियो सिख्स एवं गुरुद्वारा कौंसिल भी इस घटना की खुल कर निन्दा कर चुकी है। सो, यह स्पष्ट हो चुका है कि सिखों तथा हिन्दुओं में विवाद मंदिर के पुजारी के हिंसक प्रचार ने पैदा करवाया, परन्तु खालिस्तानी समर्थकों को भी तो भारतीय कौंसुलेट के खिलाफ प्रदर्शन करते समय मंदिर के सामने का स्थान चुनने से बचना चाहिए था। वे अन्य स्थान भी चुन सकते थे, परन्तु अफसोस है कि भारतीय मीडिया इस घटना को सिखों को ‘डिफैंसिव’ करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। वहां पुजारी के उत्तेजक बयानों बारे कोई बात नहीं की जा रही। हम समझते हैं कि कनाडा की मुख्य धारा के नेतृत्व को भी और सचेत होने की ज़रूरत है।
सब ने पढ़ रखा था सच जीत होती है मगर,
था भरोसा किस को सच पर,
सच को सच कहता तो कौन?
-इहतराम इस्लान
धान का उत्पादन घटेगा
इस बार पंजाब में 185 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य हासिल होने की कोई उम्मीद नहीं है जिससे पंजाब को करोड़ों रुपये का नुकसान होगा। इसका कारण एक ओर नरमा बैल्ट में धान का उत्पादन कम होना है, और दूसरी ओर इस बार गत माह बारिश न होने तथा ऊपर से मंडियों में धान की खरीद में देरी होने से नमी की कमी बताई जा रही है। पिछली बार आमतौर पर 17 प्रतिशत नमी की अनुमति के बावजूद 19-20 प्रतिशत नमी वाला धान तुला था, परन्तु इस बार कई स्थानों पर 16 प्रतिशत नमी भी देखी गई है। परन्तु जहां नमी वाला धान खरीद कर उस धान का उठान 8-10 दिन लेट हुआ है, वहां बोरियों में पड़े धान का वज़न भी कम हो रहा है जिसे शैलर मालिक उठाने के लिए तैयार नहीं। वे आढ़ती को पूरा करने के लिए कहते हैं और आढ़ती इसकी काट किसान को अपनी जेब से देने के लिए कहता है जिससे आढ़ती-किसान रिश्ते में दरार बढ़ रही है, परन्तु कई स्थानों पर आढ़ती, शैलर मालिक तथा एजेंसियों की मिलीभगत से यह काट किसानों से वसूल करके उनके साथ धक्का भी किया जा रहा है।
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