जन्मदिन का डबल केक

मेरे इरादे हैं नेक। मैं सबको समान रूप से देखता हूं छोटा हो या बड़ा प्रत्येक। फिर भी कुछ लोगों को लगता होगा कि कमबख्त व्यंग्यकार है उल्टा व्यार बहाना या उल्टी गंगा बहाना इसका अधिकार है। मैं स्पष्ट कर दूं मुझे सबसे एक समान प्यार है। इस बात से नहीं इंकार है। सबके दिलों में मेरा एक समान व्यवहार है।
आज मेरे पड़ोस के भाई टीचर जहमतलाल के पोते का बर्थडे का बहार है। क्योंकि इस बर्थडे पर ऐसा सुना गया है कि डबल कटेगा केक। इसलिए इसमें दो तरह का आहार है। तब सुनकर अनायास निकल गया- ‘बर्थडे मना रहे हैं या बकवास। गरीब लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था घर में और बड़े लोगों का होटल में व्यवस्था रखा गया है खास।’
जब मैंने ऐसा सुना, सुनकर खूब नाक धुना। ये हमारे दूर के रिश्तेदारी में से हैं। एक ही जगह रहना होता था, नौकरी होते ही मैं वहां से निकल गया। वह झारखंड के जमशेदपुर में रहते हैं और मैं नाशिक में। साल में एक बार आना-जाना होता है, क्योंकि मेरा सारा परिवार जमशेदपुर में रहता है।
मेरे बस्ती में कुछ लोग हैं जो इस तरह के हरकतों से अपनी करिश्मा दिखाते रहते हैं। जब-जब ऐसा करते थे उस दिन मैं नाक धुनता और साथ में रोता भी।
आज पोते के बर्थडे पर टीचर दादा का फटिचर व्यवहार देखकर भीतर से ऐसा बदला मेरा विचार कि मैं कुछ क्षण के लिए लाचार हो गया। इस तरह के सलूक या लिच्चड़ व्यवहार से समाज दलदल व कीचड़ से भर जाएगा। जो इस तरह के गजब फार्मूला इजाद कर व्यवहार में लाते देखकर अक्सर समाज में हो-हल्ला होते रहता था।
इसके पहले भी बस्ती में कई बार इस तरह के करतूतों को प्रस्तुत किया जा चुका है। ऐसे करतूत रूपी नाव पर सवार होकर समाज का कश्ती डुबोकर, मस्ती मारने वाले दो-चार महानुभाव, अपने मुंछ पर ताव देकर बड़े चाव से बताते गर्व महसूस करते हैं। उसमें से एक का नाम है- राम प्रसाद! दंगा फसाद करने-कराने में इनका कोई तोड़ नहीं। अपने आप में एक संस्था, परंपरा तोड़ने में बेजोड़ हैं। ये अपने बेटे के शादी में खिलाने-पिलाने में अधिक बर्बादी न हो इसलिए निमंत्रण कार्ड देते समय बेबाक लहजे में कह देते थे- ‘आदमी फूल और औरत नील। यानी आदमी का निमंत्रण है औरत का नहीं।
निमंत्रण कार्ड वितरित करते समय कोई-कोई व्यक्ति कार्ड पर यहां तक लिखवा देता था- ‘परिवार के मुखिया रमेश का निमंत्रण है छोटा भाई रामचरण का नहीं।
क्योंकि जब वह खाने बैठता है तो खाना परोसने वाले को जिस पात्र में खाद्य सामग्री होता था उसको अपने पास छोड़कर जाने के लिए कहता है। क्योंकि बार-बार मांगने से तौहीन होती है।
कुछ मुंहफट बेलज्जत महाशय इतना तक कह देते- ‘लिफाफे में भरेगा सौ और भोजन करेगा दस आदमी के बराबर।’
ऐसा लगता है ये प्रीति भोज नहीं बल्कि बिजनेस बना लिया है।
जिस परिवार में दस लोग हैं वहां वे कार्ड पर लिख देते थे- केवल दो व्यक्तियों के लिए।
उसके बाद से जब इस तरह के कारोबार फैलने लगा तो संकुचित विचार को लिंक मिलते ही स्पीड पकड़ लिया। तब मुझे लगा कि भाई जहमतलाल टीचर ऐसे लोगों के साथ-साथ रहते, फटीचर हो गए। और इस तरह का काम कोई आदमी नहीं लिच्चड़ ही कर सकता है।

-मो. 8329680650

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