उल्लू के परम भक्त उलूकमल
उलूकमल अपने क्षेत्र के बहुत बड़े नेता हैं। और इस बार तो जीत कर सांसद भी बन गए हैं। उलूक मल उल्लूओ का बहुत सम्मान करते हैं। वह उनकी पूजा, अर्चना, आराधना करते हैं। उन्होंने बाकायदा अपने बंगले में उल्लू की मूर्ति की स्थापना की हुई है। घर से निकलते और घर में घुसते समय सर्वप्रथम उस मूर्ति की प्रार्थना और पूजा करते हैं।
एक दिन उनकी पत्नी लाली लिपस्टिक बोली, ‘अरे नेताजी अब तो आपको मंत्री बन गए हैं... और आप अभी तक उल्लू की पूजा कर रहे हैं?’।
नेताजी की आंखें उल्लू के जैसे चमकने लगी और वह बोले- ‘धर्मपत्नी जी मुझ जैसा इंसान यहां तक पहुंचा है, तो यह सब उल्लू देव की ही कृपा है, वरना तो मेरे पिताजी कहते थे... नालायक तू इस धरती पर बोझ है तेरा इस धरती पर कुछ नहीं हो सकता है... (और अपनी कॉलर ऊंची करते हुए बोले) लेकिन देख लीजिए अब मैं अपने क्षेत्र की जनता के भावनाओं का भार उठाकर चलूंगा और यह सब इन उल्लू महाराज की ही मेहरबानी है’।
पत्नी बड़ी असमंजस में होकर बोली- ‘आप अपनी जीत का सारा श्रेय उल्लू को क्यों देते हैं! उनकी पूजा आराधना क्यों करते हैं आखिर क्या कारण है?’।
नेताजी बोले- ‘भाग्यवान तुम नहीं समझोगी यह उल्लू ही हमारे आराध्य है और अगर यह उल्लू नहीं होते तो आज हम कहीं के नहीं रहते इस उल्लू ने ही मुझे इस जगत में मान-सम्मान नाम सबकुछ दिलाया है। मैं उल्लू की आराधना इसलिए करता हूं क्योंकि उल्लू ही लक्ष्मी जी को लेकर पूरे संसार में घूमता रहता है और उल्लू जहां रुकता है वहां लक्ष्मी जी को भी उतरना पड़ता है। इसीलिए मैं लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के बजाय उल्लू को प्रसन्न करता हूं... ताकि लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहे और यह उल्लू की ही कृपा है की लक्ष्मी जी को हमारे घर तक लाया और फलस्वरूप मैं चुनाव जीत गया ..अब हर तरफ से माल मालामाल ही है और इतना है कि अब गिनना भी बवाल है और दूसरे हमारी उल्लू जनता है जो हमको चुनी है। वरना तो हमारे पिताजी कह चुके थे कि हम किसी काम के नहीं... तो बताओ हम क्यों नहीं उल्लू की पूजा करें?’।
धर्मपत्नी जी ने जब इतना सुना तो वह तुरंत उल्लू के चरणों में झुक कर शीश नवाने लगी। आखिर उल्लू की कृपा से तो उनको भी इतने साधन और संसाधन उपलब्ध हुए हैं। वरना वह भी अपने गांव में गाय और भैंस चराती थी। और आज गोष्ठियों में सम्मान पूर्वक बुलाया जाता है।
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