कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर
सूर्य रथ के रूप में निर्मित उड़ीसा के सागर तट के समीप स्थित कोणार्क मंदिर भारतीय संस्कृति, स्थापत्य कला तथा आस्था का बेजोड़ प्रतीक है। विश्व धरोधर के रूप में प्रतिष्ठित कोणार्क अपने कलात्मक सौंदर्य और विशालता के कारण एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है।
बारहवीं शताब्दी के दौरान गंगवंश के राजा नरसिंह देव के शासन में हजार से अधिक शिल्पकारों तथा श्रमिकों के द्वारा इस विशाल मंदिर के निर्माण से संबंधित अनेक प्रकार की किंवदंतियां प्रचलित हैं। ऐसी मान्यता है कि राजा के पुत्र सांबा को युवावस्था में कुष्ठ रोग हो गया। किसी संत ने रोग से छुटकारा पाने के लिए उस सागर जल के साथ सूर्य उपासना की विधि बताई। इस अभ्यास से उसका रोग दूर को गया और तब उसके पुत्र ने सूर्य के प्रति आस्था अभिव्यक्त करने के लिए इस विशाल मंदिर का निर्माण कराया था।
काले तथा भूरे के ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित इस विशाल मंदिर की परिकल्पना सूर्य रथ के रूप में की गई थी। चौबीस चक्कों पर स्थित इस रथ को सात अश्वों के द्वारा खींचा जा रहा है, सूर्य भगवान विराजमान हैं। कहा जाता है कि आस्थावान शिल्पकारों में मंदिर के गर्भगृह में गोलाकार रूप में सूर्यमूर्ति को बिना किसी आधार के चुंबकीय आकर्षण से लटका रखा था। किन्तु कालक्रम से टूट से टूट कर यह क्षत-विक्षत हो गिर पड़ा जिसका अवशेष लंदन के संग्रहालय में रखा है।
मूर्तिभंजक आक्रमणकारियों के अलावा इस कलात्मक निर्माण को सागर की लवणयुक्त हवा तथा पानी ने भी काफी नुकसान पहुंचाया है। कोणार्क मंदिर परिसर के निकट से प्रवाहित नदी धारा चंद्रभागा से भी मिट्टी का कटाव होता रहा है। प्रमुख मंदिर का शिखर (विमान) टूट कर अलग हो चुका है। मंदिर का प्रमुख द्वार पूरब दिशा में है।
प्रवेश द्वार से अंदर आते ही विशाल नट-मंदिर (नाट्यशाला) है जिसकी दीवारों पर कलिंग शैली में अनेक कलात्मक प्रतिमाएं निर्मित हैं। इसके बाद गर्भगृह में प्रवेश के पहले जगमोहन है जिसकी छतें टूट गई हैं। यहां भी दीवारों पर सुंदर और कलात्मक मूर्तियां हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग ने और इंजीनियरों ने मुख्य मंदिर को महत्त्वपूर्ण धरोहर के रूप में सुरक्षित रखने के लिए मुख्य मंदिर के दरवाजे को बंद लोहे की छड़ कर रखा है। कोणार्क मंदिर से टूटें प्रस्तर खंडों को भी निकट में एक संग्रहालय में रखा गया है।
कोणार्क मंदिर की दीवारों तथा प्रस्तर खंडों पर अनेक प्रकार की कलापूर्ण मूर्तियां निर्मित हैं। कलिंग शैली में बनाई गई कई प्रतिमाएं मैथुनरत मुद्रा में हैं जो खजुराहों को शिल्पकला से समानता रखती हैं। यहां गायकों, कलाकारों, सैनिकों तथा नायिकाओं की मूर्तियां इस प्रकार से बनाई गई हैं कि कोई भी दर्शक देखकर चकित हो जाता है। यहां हाथी, अश्व, सूअर तथा अन्य कई प्रकार के पशु-पक्षियों को भी दर्शाया गया है, जिन्हें देखकर अधिक जानकारी प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है। भगवान सूर्य के इस विशाल रथ को खींचने के लिए जन अश्व- प्रतिमाओं को बनाया गया है- उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वे अभी चलायमान हो जाएंगे।
कैसे पहुंचें, कहां ठहरें?
भारत के सात आश्चर्यजनक धरोहरों में से एक कोणार्क मंदिर पहुंचने के लिए अनेक रास्ते हैं। कोलकाता, विशाखापटनम रेल लाइन पर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर है। यहां हवाई अड्डा भी है और दिल्ली-पुरी रेल लाइन का जंक्शन है। भुवनेश्वर और पुरी से कोणार्क मंदिर तक पक्की सड़क है, जहां एक घंटे में बस अथवा मोटर कार द्वारा पहुंचा जा सकता है। कोणार्क को भारत तथा राज्य सरकार के द्वारा उएक महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। (उर्वशी)