देश-विदेश में सावधानी से विचरण करें पंजाबी

विगत दिनों से कनाडा से बेहद चिन्ताजनक समाचार आ रहे हैं। ताज़ा घटनाक्रम का सिलसिला 3 नवम्बर को ब्रैम्पटन के हिन्दू सभा मंदिर के बाहर स्वयं को खालिस्तानी समर्थक कहने वालों द्वारा प्रदर्शन करने से शुरू हुआ और यह प्रदर्शन टकराव का रूप धारण कर गया। सिख प्रदर्शनकारियों तथा हिन्दू समुदाय के कुछ लोगों के बीच झड़पें भी हुईं, एक-दूसरे को गाली-गलौच भी किया गया। इसकी वीडियोस पूरी दुनिया में वायरल हुईं। बात यहीं समाप्त नहीं हुई, इसके बाद हिन्दू समुदाय के नाम पर विचरण करने वाले कुछ लोगों द्वारा मिसीसागा के गुरुद्वारा साहिब के बाहर भी  प्रदर्शन किया गया और वाहनों की तोड़-फोड़ की गई। इससे एक दिन बाद हिन्दू सभा मंदिर ब्रैम्पटन के बाहर भी हिन्दू समुदाय से संबंधित लोगों द्वारा खालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ एक और प्रदर्शन किया गया। हिन्दू सभा मंदिर के बाहर पहले हुए प्रदर्शन के संबंध में पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया है। इस पूरे घटनाक्रम ने कनाडा में बड़ी संख्या में रहते सिख समुदाय के लोगों में भी तथा हिन्दू समुदाय के संजीदा क्षेत्रों में भी चिन्ता पैदा की है। कनाडा की कुछ गुरुद्वारा कमेटियों तथा अन्य लोगों द्वारा भी घटित हो रहे ऐसे घटनाक्रम की आलोचना की गई है। एक ओर कनाडा सरकार तथा भारत सरकार के बीच अलग-अलग मुद्दों को लेकर टकराव बढ़ रहा है और दूसरी ओर कनाडा में रहते भारतीय समुदाय के अलग-अलग वर्गों के बीच इस प्रकार के टकराव का बढ़ना बेहद गम्भीर बात है। 
हमारा विचार है कि दोनों समुदायों की खामोश बहुसंख्या को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और अपने-अपने समुदायों के प्रदर्शनों तथा विरोधी प्रदर्शनों में लगे लोगों को रोकना चाहिए। यह अच्छी बात है कि हिन्दू सभा मंदिर ब्रैम्पटन के बाहर प्रदर्शन वाले दिन मंदिर की प्रबंधकीय कमेटी ने मंदिर के पुजारी राजिन्दर प्रसाद की उत्तेजक भूमिका संबंधी वीडियो वायरल होने के बाद उसे निलम्बित कर दिया है। यह मिसाली कार्रवाई टकराव कम करने वाली है। कनाडा विगत कई दशकों से भारतीयों तथा विशेषकर पंजाबियों का प्रवास के लिए पसंदीदा देश रहा है। बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग वहां जाकर बसे हुए हैं। 2023 के आंकड़ों के अनुसार कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की कुल संख्या लगभग 18 लाख, 60 हज़ार है, जो वहां की आबादी का 5 प्रतिशत हिस्सा बनते हैं। इस में से लगभग 8 लाख लोग सिख समुदाय से संबंधित हैं। कनाडा एक ऐसा साझी संस्कृति वाला देश है, जहां विगत लम्बे समय से विश्व भर के प्रवासियों का स्वागत किया जाता रहा है। नि:संदेह ऐसे प्रवासियों ने कनाडा के विकास में भी बहुत योगदान डाला है। कनाडा की राजधानी में भी भारतीय मूल तथा विशेषकर पंजाबियों का बहुत दबदबा बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष लाखों भारतीय विद्यार्थी, जिनमें भारी संख्या पंजाबी युवकों की भी होती है, वहां शिक्षा हासिल करने तथा शिक्षा पूर्ण करने के बाद स्थायी रूप में वहां बसने की मंशा से कनाडा जाते हैं। चाहे पिछले कुछ समय से कनाडा तथा भारत के संबंधों में तनाव पैदा होने के कारण तथा कुछ कनाडा की आंतरिक परिस्थितियों के कारण कनाडा जाने वाले विदेशी विद्यार्थियों की संख्या वहां की सरकार द्वारा कम की जा रही है, परन्तु अभी भी लाखों विद्यार्थी वहां जा रहे हैं और शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। कुछ विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वहां वर्क परमिट पर काम भी कर रहे हैं और वहां स्थायी वास (पी.आर.) हासिल करने के लिए भी यत्नशील हैं। 
इस समूचे संदर्भ में हमारा यह विचार है कि विदेशों में पंजाबियों तथा विशेषकर सिख समुदाय के लोगों को अपने राजनीतिक तथा आर्थिक हितों के प्रति पूरी तरह से सावधान रहते हुए विचरण करना चाहिए। विदेशों में लम्बे समय से कुछ ऐसी देशी-विदेशी ताकतें सक्रिय हैं, जो पंजाबियों, विशेषकर सिख समुदाय को अपने स्वार्थी हितों के लिए इस्तेमाल करना चाहती हैं। इन ताकतों की ओर से पंजाबी एवं सिख समुदाय में से ही कुछ लोगों को सब्ज़बाग दिखा कर या लोभ-लालच देकर अपने साथ मिलाया जाता है और फिर उनसे ही ऐसे कार्य करवाए जाते हैं, जिनसे न सिर्फ विदेशों में, अपितु भारत में भी पंजाबियों तथा सिख समुदाय की छवि धूमिल होती है। वैसे भारत में भी तथा विदेशों में भी पंजाबी समुदाय तथा विशेषकर सिख समुदाय की अनेक शिकायतें एवं समस्याएं हो सकती हैं। उनके लिए उन्हें देश के भीतर तथा बाहर भी समय-समय पर शांतिपूर्ण एवं लोकतांत्रिक ढंग से संघर्ष भी करने पड़ सकते हैं। ऐसे संघर्ष होते भी हैं 
और अंतर्राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जगत में उनका नोटिस भी लिया जाता है, उन्हें मान्यता भी दी जाती है। अलग-अलग देशों की लोकतांत्रिक सरकारें ऐसी शिकायतों को दूर करने का यत्न भी करती हैं। विदेशों में सिख समुदाय ने अपने ककारों की रक्षा के लिए, नस्लीय भेदभाव के खिलाफ तथा पंजाबी ज़ुबान एवं संस्कृति को वहां बनता स्थान दिलाने के लिए अनेक बार अपनी आवाज़ बुलंद की है। इसके परिणामस्वरूप कई देशों में सिख समुदाय के ककारों को सम्मान एवं मान्यता मिली है और कई देशों की सेनाओं एवं पुलिस बलों में भी दस्तारधारी सिखों को सेवाएं देने के अवसर मिले हैं। कनाडा सहित कई देशों में पंजाबी ज़ुबान एवं संस्कृति को भी उचित मान्यता मिली है। पंजाबियों तथा विशेषकर सिख समुदाय के लोगों ने विदेशों में जहां आर्थिक एवं व्यापारिक पक्ष से बुलंदियां छुई हैं, वहीं राजनीतिक क्षेत्रों में भी अपनी बड़ी पहचान बनाई है। कनाडा में विशेषकर अलग-अलग प्रांतों से लेकर वहां की संघीय सरकार में दर्जनों पंजाबी तथा सिख समुदाय के लोग असैम्बली सदस्य, संसद सदस्य तथा मंत्री भी बने हैं, परन्तु बहुत-सी देशी-विदेशी ताकतों को विदेशों में पंजाबियों की ऐसी चढ़त पच नहीं रही, वे समुदाय के कुछ लोगों से ही भारतीय दूतावासों तथा हिन्दू समुदाय के धार्मिक स्थानों के खिलाफ कई बार ऐसे प्रदर्शन या ऐसी कार्रवाइयां करवाते हैं, जिनसे विदेशों में भी तथा भारत में भी सिख समुदाय की छवि बार-बार धूमिल होती है और हिन्दू समुदाय एवं सिख समुदाय के बीच दूरियां बढ़ती हैं। आस्ट्रेलिया के एक राज्य की पुलिस द्वारा ब्रिसबेन और मैलबर्न में मंदिरों के बाहर आपत्तिजनक नारे लिखने की घटनाओं की जांच करवाई गई थी। जांच से यह बात सामने आई है कि ऐसा कुछ करने वाले सिख नहीं थे, बल्कि हिन्दू भाईचारे से ही संबंधित कुछ लोग थे। उनको यह काम किसने सौंपा था, यह जांच का विषय है पर इससे यह ज़रूर स्पष्ट हो जाता है कि विदेशों में कुछ ताकतों को सिख भाईचारे की तरक्की स्वीकार नहीं है। वहां की सरकारें और वहां के लोग सिखों को बदनाम करना चाहते हैं। बहुसंख्यक पंजाबी और सिख भाईचारे के लोग बहादुर हैं, मेहनती हैं और सरबत दे भले में यकीन रखते हैं। इसी कारण देश में भी और विदेशों में भी उनकी विशेष पहचान बनी है। प्रत्येक कुदरती, गैर-कुदरती आपदा के समय सिख भाईचारा देश-विदेश में लंगर और अन्य तरीकों से पीड़ितों की मदद करने के लिए आगे आता है।
यदि भारत के इतिहास की बात करें तो म़ुगल शासन के समय गुरु साहिबान की अगुवाई और प्रेरणा से म़ुगलों के अत्याचार के खिलाफ और हिन्दू भाईचारे के धार्मिक और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सिख भाईचारे ने बड़ी कुर्बानियां दी थीं। इतिहास में यह कुर्बानियां सुनहरी अक्षरों में दर्ज हुई हैं। इसी प्रकार देश में अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ 100 वर्षों तक चले आज़ादी के संघर्ष में पंजाबियों और विशेष तौर पर सिख भाईचारे के लोगों ने सबसे अधिक कुर्बानियां और शहीदियां दी हैं। जब देश का विभाजन हुआ तो पहले सिख भाईचारे ने इस विभाजन को टालने के प्रयत्न किए, लेकिन जब इसमें उनको सफलता मिलती नज़र नहीं आई तो उन्होंने पंजाब का विभाजन करवा कर पंजाब का एक बड़ा हिस्सा भारत में शामिल करवाने में सफलता हासिल की थी। पंजाब के इसी हिस्से का जब पंजाबी प्रदेश के आंदोलन के समय पुनर्गठन हुआ तो इसमें से ही पूर्वी पंजाब और हरियाणा आदि अस्तित्व में आए। उस समय के पंजाब के कुछ पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल में भी शामिल किए गए थे। यह कहा जा सकता है कि पूर्वी पंजाब और हरियाणा सहित चंडीगढ़, यह सभी क्षेत्र यदि आज भारत में हैं तो इनको भारत में शामिल करवाने में सिख भाईचारे का बड़ा योगदान रहा है। 
उस समय सिख भाईचारे के नेतृत्व ने एक धर्म आधारित राज्य पाकिस्तान का हिस्सा बनने के स्थान पर लोकतांत्रिक भारत का हिस्सा बनने को अच्छा समझा था। पाकिस्तान में आज जो अल्पसंख्यकों की हालत है, उसने उस समय के सिख नेतृत्व द्वारा लिए गए फैसलों के सही होने की पुष्टि भी की है। यह अलग बात है कि आज़ाद भारत में कांग्रेस ने आज़ादी के समय सिख भाईचारे के साथ किए गए बहुत सारे वायदे पूरे नहीं किए। पंजाब प्रदेश सहित अनेक मांगों और मामलों के लिए सिख भाईचारे के लोगों को संघर्ष करने पड़े हैं, पंजाबी प्रदेश भी पंजाबियों को आधा अधूरा ही मिला है और भी बहुत से मामले अभी सुलझाने बाकी हैं। आज के केन्द्रीय शासकों के खिलाफ भी सिख भाईचारा अपनी मांगों और मामलों के लिए संघर्ष कर रहा है। इसी प्रकार पंजाबी भाईचारे के और हितधारक किसान, मज़दूर, व्यापारी और उद्योगपति भी समय-समय केन्द्रीय शासकों की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं या बातचीत करके उनके सामने अपनी मांगें रखते हैं।
हमारे कहने का भाव यह है कि सिख भाईचारे सहित समूह पंजाबियों को देश के अन्य लोगों की तरह ही अपनी मांगों और मामलों के लिए संघर्ष करने का लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन उनको इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए कि देश में भी और विदेश में भी उनको देश-विदेशी स्वार्थी ताकतें समूचे देश के साथ टकराव की और धकेलने में सफल न हो जाएं। हम देश की सरकारों के साथ लोकतांत्रिक ढंग के साथ लड़ सकते हैं और लड़ना हमारा अधिकार है, लेकिन हम यदि देश के साथ लड़ने की गलती करेंगे या देश को तोड़ने की कोशिशों में शामिल होंगे या विदेश में भी ऐसी कारवाई करेंगे, जिससे हमारे देश के प्रति निष्ठा पर सवाल उठने और विदेशों में रहते हिन्दुओं या भारतीय मूल के अन्य लोगों के साथ हमारे टकराव और लड़ाई-झगड़े बढ़ेंगे, तो ऐसी कारवाईयां न देश में और न ही विदेशों में हमारे हित में होंगी। ऐसी कारवाईयों से हम देश-विदेश में अलग-थलग हो जाएंगे और हमारे विरोधियों को हमें नुकसान पहुंचाने के पूरे-पूरे मौके मिलेंगे। इस संदंर्भ में ही हम समूह पंजाबियों और विशेष तौर पर सिख भाईचारे को अपनी यह राय देना चाहते हैं कि उनको देश-विदेश में बहुत सोच-समझ कर रहना चाहिए, ताकि उनकी विरोधी शक्तियां उनकी कारवाईयों का किसी भी ढंग से लाभ न उठा सकें।.   

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