सत्तारूढ़ पार्टियों को चुनाव जीतने में होती है आसानी 

महाराष्ट्र और झारखंड दोनों जगह सत्तारूढ़ गठबंधन चुनाव जीत गए। इससे पहले हरियाणा में भी सत्तारूढ़ भाजपा ने जीत हासिल की थी। इसका मतलब है कि जो सरकार में रहता है, वह अगर ठीक ढंग से चीज़ों को नियंत्रित करे तो चुनाव जीत सकता है। भाजपा को इस बात का अंदाज़ा रहा होगा, तभी उसने पहले शिव सेना को तोड़ा और एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना कर सरकार बनाई और बाद में एनसीपी को तोड़ कर अजित पवार को भी उप-मुख्यमंत्री बनाया। सरकार में होने का फायदा उसे यह मिला कि उसने ढेर सारी लोक-लुभावन घोषणाएं कीं, लोगों के खातों में सीधे पैसे डालने शुरू किए और प्रशासन का बेहतर ढंग से भरपूर इस्तेमाल किया। अगर वहां उद्धव ठाकरे की सरकार होती तो यह काम वह सरकार करती। इसी तरह झारखंड में हेमंत सोरेन ने भी सरकार में होने का पूरा फायदा उठाया। उन्होंने सत्ता विरोधी लहर पैदा नहीं होने दी। हेमंत की सरकार ने चुनाव से पहले मइया सम्मान योजना शुरू की, जिसके तहत महिलाओं के खाते में हर महीने 1100 रुपये भेजने की शुरुआत की। चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने बिजली के बिल माफ  कर दिए। हेमंत सरकार ने हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ राहत देने वाली योजना चलाई। उनकी सभी योजनाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में प्रशासन ने बड़ी भूमिका निभाई। भाजपा की प्रचार की गलतियां और रणनीतिक भूल अपनी जगह है, लेकिन हेमंत सोरेन की जीत मे सबसे बड़ा योगदान उनकी लोक-लुभावन योजनाओं का रहा।
झारखंड में भी धार्मिक स्थानों पर भाजपा हारी
भाजपा को धर्म की राजनीति का चैंपियन माना जाता है, जो कि वह है भी लेकिन जिस तरह लोकसभा चुनाव में उसे फैजाबाद-अयोध्या सीट पर हार का सामना करना पडा था, उसी तरह झारखंड में भी वह लगभग देवघर सहित सभी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों वाली सीटों पर चुनाव हार गई। लोकसभा चुनाव में अयोध्या वाली फैजाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने भाजपा के लल्लू सिंह को हराया था। झारखंड में देवघर ज्योतिर्लिंग का शहर है। वहां बाबा बैद्यनाथ का मंदिर है। चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह रात में देवघर रुके भी थे। देवघर में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष विमान खराब हो गया था और उन्हें दो घंटे तक जहाज़ में ही बैठे रहना पड़ा था। बहरहाल, देवघर विधानसभा सीट पर राजद के सुरेश पासवान ने भाजपा के नारायण दास को बड़े अंतर से हरा दिया। दूसरा अहम तीर्थ रजरप्पा में स्थित महाविद्या छिन्नमस्ता देवी का है। वह रामगढ़ विधानसभा सीट में आता है और वहां भी कांग्रेस की ममता देवी ने भाजपा की सहयोगी आजसू की उम्मीदवार सुनीता चौधरी को हरा दिया। तीसरा महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल मां देवी दुर्गा के देउड़ी मंदिर का है, जो तमाड़ विधानसभा सीट के अधीन आता है। वहां भाजपा के सहयोगी जनता दल (यू) के उम्मीदवार राजा पीटर को झारखंड मुक्ति मोर्चा के विकास मुंडा ने हरा दिया। चौथा धार्मिक स्थल गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र में पार्श्वनाथ (सम्मेत शिखर) का है, जो जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ है। वहां भाजपा के उम्मीदवार निर्भय शाहाबादी को झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुदिव्य कुमार सोनू ने हरा दिया।
‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द पर खतरा
संविधान अंगीकार किए जाने के 75 साल पूरे होने के मौके पर दिल्ली में बड़ा आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनकी पार्टी के सभी नेताओं ने संविधान के प्रति श्रद्धा दिखाई और अपने को संविधान रक्षा का चैंपियन बताया, लेकिन उसी समय भाजपा की ओडिशा सरकार ने संविधान दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द के बगैर संविधान की प्रस्तावना पेश की और उसका पाठ किया। जब इस पर सवाल उठा तो कहा गया कि यह मूल संविधान की प्रस्तावना है। यानी 26 नवम्बर 1949 की प्रस्तावना है। गौरतलब है कि संविधान में ये दोनों शब्द 1975 में इमरजेंसी लगाए जाने के बाद संविधान के 42वें संशोधन के जरिए प्रस्तावना में जोड़े गए थे। अब सवाल है कि मौजूदा संविधान में जब ये दोनों शब्द हैं तो उस प्रस्तावना को पढ़ने की बजाय मूल संविधान की प्रस्तावना पढ़ने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि भाजपा कहीं न कहीं इस कोशिश में है कि ये दोनों शब्द संविधान की प्रस्तावना से हटा दिए जाएं क्योंकि ये दोनों शब्द भाजपा की विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं और ऊपर से इन्हें इंदिरा गांधी ने संविधान में जोड़ा था। इसे लेकर भाजपा के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी और अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं, इसलिए इसे नहीं हटाया जा सकता है।
मुश्किलों से घिरते जा रहे हैं अडानी 
विवादों में घिरे उद्योगपति गौतम अडानी का भारत में भले ही कुछ नहीं बिगड़े लेकिन अमरीका की अदालत में रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी का आरोपी बनाए जाने के बाद से वह एक के बाद एक मुश्किलों से घिरते जा रहे हैं। जिस दिन अमरीकी अदालत ने समन जारी करके 21 दिन में जवाब देने को कहा, उसके अगले ही दिन केन्या ने अडानी समूह के साथ अपने सारे सौदे रद्द कर दिए। अब खबर है कि श्रीलंका और बांग्लादेश में भी समस्या बढ़ने वाली है। श्रीलंका में उनके बिजली प्रोजेक्ट को लेकर समीक्षा हुई है और मंत्रिमंडल को उसके बारे में फैसला करने के लिए अधिकृत किया गया है। गौरतलब है कि श्रीलंका में कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुरा दिसानायके की सरकार है। बांग्लादेश की सरकार ने भी अडानी समूह से बिजली खरीद के सौदे की समीक्षा करने के लिए एक कमेटी बनाई है। इस कमेटी की सिफारिशों पर सरकार आगे फैसला करेगी। उधर फ्रांस की बड़ी पावर कम्पनी टोटल एनर्जीज़ ने भी नया रुख अपनाया है। उसने अडानी समूह में अपना निवेश रोकने का फैसला किया है। कम्पनी ने कहा है कि जब तक रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के मामले का निपटारा नहीं होता, तब तक वह निवेश नहीं करेगी। अडानी समूह में निवेश करने वाली विदेशी कम्पनियां एक-एक करके पैर पीछे खींच रही हैं। उन्होंने शेयर बाज़ार में से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया है। एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की रिपोर्ट है कि अडानी समूह को अब विदेशी निवेश मिलना लगभग नामुमकिन हो गया है।
पंजाब से कांग्रेस को सीखना चाहिए 
हालांकि कांग्रेस पार्टी का रिकॉर्ड रहा है कि उसने अपनी गलतियों से कभी कोई सबक नहीं सीखा है, लेकिन पंजाब में हुए उप-चुनाव के नतीजों से उसे ज़रूर सबक सीखना चाहिए। कांग्रेस ने जिस तरह से उप-चुनाव में दो सीटों पर अपने दो सांसदों की पत्नियों को उम्मीदवार बनाया यह फैसला गलत साबित हुआ। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग सांसद बन गए तो उनकी खाली की हुई गिद्दड़बहा सीट पर उनकी पत्नी को और सुखजिंदर सिंह रंधावा सांसद बने तो डेरा बाबा नानक सीट पर उनकी पत्नी को उम्मीदवार बना दिया। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव हार गई। उम्मीदवारों का चयन करने वाले कांग्रेस नेताओं ने दिमाग लगाने की ज़रुरत ही नहीं समझी। पुराने नेताओं या कार्यकर्ताओं में से किसी को टिकट देने के बारे में सोचा ही नहीं गया और दोनों सांसदों की पत्नियों को उम्मीदवार बना दिया। नतीजा यह हुआ है कि गिद्दड़बहा की सीट पर त्रिकोणा मुकाबला होने के बावजूद आम आदमी पार्टी के हरदीप सिंह डिम्पी ने कांग्रेस की अमृता वड़िंग को 15 हज़ार से ज्यादा वोट से हरा दिया। उधर डेरा बाबा नानक सीट पर भी आम आदमी पार्टी के गुरदीप सिंह रंधावा ने कांग्रेस की जतिंदर कौर रंधावा को साढ़े पांच हज़ार से ज्यादा वोट से हरा दिया। ये दोनों सीटें आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से छीनी और तीसरे स्थान पर भाजपा रही। कांग्रेस को इन नतीजों से कुछ सबक सीखना चाहिए।

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