प्रयासों के बावजूद थम नहीं रही महंगाई
देश में खुदरा वस्तुओं के कीमत में पिछली तिमाही में काफी इजाफा हुआ है। सरकार के कीमत नियंत्रण के तमाम उपाय धरे रह जाते हैं लेकिन महंगाई थमने का नाम नहीं लेती। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की कोशिश है कि खुदरा महंगाई को चार फीसदी से नीचे लाकर स्थिर किया जा सके, मगर सभी कोशिशों के बावजूद इस पर काबू पाना कठिन बना हुआ है। महंगाई के रुख को देखते हुए ही एक बार फिर से रिज़र्व बैंक रेपो दर में बदलाव नहीं किया है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की ताज़ा घोषणा में रेपो रेट को लगातार 11वीं बार 6.50 प्रतिशत पर स्थिर रखने का निर्णय लिया गया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थितियां चुनौतीपूर्ण बनी हुई हैं। आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस फैसले को कीमत स्थिरता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रतिबद्धता बताया था। रेपो दर को स्थिर रखने और कैश रिज़र्व रेशो (सीआरआर) में कटौती जैसे कदम यह दर्शाते हैं कि आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखते हुए आर्थिक विकास को गति देने की रणनीति पर काम कर रहा है। दरअसल सरकार ने आरबीआई को खुदरा महंगाई 2 फीसदी घटने-बढ़ने के साथ 4 फीसदी पर रखने का जिम्मा दे रखा है। आरबीआई के लिए चिंता की सबसे बड़ी बात खाद्य मुद्रास्फीति है, जो पिछले कई महीनों से नीचे आने का नाम नहीं ले रही है। यही वजह है कि आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती से अभी के लिए परहेज़ किया। अक्तूबर में खुदरा महंगाई 6.21 फीसदी पहुंच गई यानी आरबीआई की सहनशक्ति के बाहर है। वर्तमान में महंगाई दर को संतुलित बनाए रखना आरबीआई की प्राथमिकता है। एमपीसी ने अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में महंगाई दर 5.7 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.5 प्रतिशत रहेगी। ऐसे में रेपो रेट को स्थिर रखने से महंगाई के दवाव को कम करने में मदद मिल सकती है। वैश्विक अनिश्चितताओं और आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधानों के बीच आर्थिक स्थिरता बनाए रखना आवश्यक है। रेपो रेट स्थिर रहने से बाज़ार में अनावश्यक अस्थिरता नहीं आएगी। दास ने यह भी कहा था कि कीमत स्थिरता क्रय शक्ति को प्रभावित करती है। रेपो रेट में बदलाव न करके आरबीआई यह सुनिश्चित कर रहा है कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों को वित्तीय स्थिरता का लाभ मिले। सीआरआर वह प्रतिशत है, जो बैंकों को अपनी कुल जमा का एक हिस्सा आरबीआई के पास रिज़र्व के रूप में रखना होता है।
इस बार आरबीआई ने सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 4 प्रतिशत कर दिया है। सीआरआर में कटौती से बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी, जिससे वे अधिक ऋण प्रदान कर सकेंगे। लिक्विडिटी बढ़ने से बैंकों को उपभोक्ताओं और व्यवसायों को कज़र् देने में आसानी होगी, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा। छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को कज़र् सुलभ होगा, जो रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। आरबीआई की अन्य घोषणाओं में स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) को 6.25 प्रतिशत पर स्थिर रखना और बैंक रेट व मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) को 6.75 प्रतिशत पर बनाए रखना शामिल है। ये घोषणाएं मौद्रिक नीति की स्थिरता और विकास के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। चालू वित्त वर्ष में महंगाई दर 5 प्रतिशत से नीचे रहने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए यह लिए यह अनुमान 4 प्रतिशत के करीच रखा गया है। यह दिखाता है कि आरबीआई का लक्ष्य है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहे और आम जनता पर इसका दबाव कम हो। शक्तिकांत दास ने कहा था कि सस्टेनेबल प्राइस स्टेबिलिटी आर्थिक विकास की नींव को मजबूत कर सकती है। यह दृष्टिकोण दीर्घकालिक विकास के लिए आवश्यक है। आरबीआई की मौद्रिक नीति वर्तमान में ‘स्थिरता और संतुलन’ की ओर उन्मुख है। वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव, तेल की कीमतों में अस्थिरता, और मुद्रा बाज़ार की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, आरबीआई अपनी नीतियों को संतुलित कर रहा है। रेपो दर स्थिर रखने और सीआरआर में कटौती जैसे कदम अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाते हैं। रेपो दर स्थिर रहने से होम लोन और अन्य ऋणों की ईएमआई पर कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा, जो उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है। सीआरआर में कटौती से बैंकों को अधिक लिक्विडिटी मिलेगी, जिससे कज़र् सुलभता में वृद्धि होगी। छोटे और मध्यम उद्यम (एसएमई) को कज़र् मिलने में आसानी होगी, जिससे रोज़गार सृजन और आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा।
एचएसबपीसी रिसर्च रिपोर्ट के अध्ययन से पता चलता है कि 5 प्रतिशत अर्थव्यवस्था सकारात्मक गति से बढ़ रही है। भारत की विकास दर अब अधिक स्थायी लेकिन मजबूत स्तर पर सामान्य हो रही है। महंगाई दर अभी ऊंची है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही इसमें नरमी आयेगी। मार्च तक 5 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी। लगातार बाहरी अनिश्चितता के कारण फरवरी से शुरू होने वाले रेपो दर कटौती चक्र में कमी आ सकती है। दास ने कहा था कि चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2025 में स्थिर रहेगा।
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