ट्रम्प प्रशासन में कानूनदान हरमीत कौर ढिल्लों की नियुक्ति की चर्चा

तू तो नफरत भी न कर पायेगा 
इस शिद्दत के साथ,
जिस बला का प्यार तुझ से
 बे-़खबर मैंने किया।
वसीम बरेलवी का यह शे’अर आज उस समय याद आ गया जब अमरीका के नये चुने गये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा एक सिख कानूनदान हरमीत कौर ढिल्लों को अमरीका के न्याय विभाग में सहायक अटार्नी जनरल (नागरिक अधिकार) बनाने की घोषणा करने के बाद भारतीय मेन स्ट्रीम के मीडिया में उनके खिलाफ एक प्रकार ऩफरत की लहर जैसी चला दी गई और उन्हें भारत-दुश्मन तथा खालिस्तान-समर्थक करार दिया जा रहा है। किसी को यह एहसास नहीं कि जितना प्यार इस देश को सिख करते हैं, और कोई भी नहीं कर सकता। जितनी कुर्बानियां इस  देश की आज़ादी के लिए सिखों ने दी हैं, उतनी शिद्दत से तो किसी से सिखों के साथ नफरत भी नहीं हो सकेगी। 
उल्लेखनीय है कि हरमीत कौर ढिल्लों वही शख्सियत हैं जो पहले भी अमरीका में मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाती रही हैं। हां, उन्होंने मानवाधिकारों की बात करते हुए उत्तरी अमरीका में हुए सिख खाड़कुओं के संहार के बारे में कटु टिप्पणियां भी की थीं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने स्वयं कहा है कि हरमीत कौर देश (अमरीका) की शीर्ष वकील हैं। ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा कि वह धार्मिक आज़ादी की वकालत करने तथा कार्पोरेट भेदभाव का विरोध करने सहित नागरिक आज़ादी की रक्षा के लिए ढिल्लों (हरमीत) द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा करते हैं। 
हैरानी की बात है कि जब ट्रम्प तीन अन्य भारतीय मूल के व्यक्तियों काश पटेल, विवेक रामास्वामी तथा डा. भट्टाचार्य को अमरीकी प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त करते हैं, तो यही भारतीय मीडिया इसका स्वागत करते नहीं थकता। हां, यह ठीक है कि अमरीकी राजनीति में विशेषकर रिपब्लिकन पार्टी में सिख लॉबी को काफी कमज़ोर माना जाता था और यह कोई सोचता भी नहीं था कि ट्रम्प किसी सिख को इतना बड़ा पद देकर नवाज़ देंगे, जो विश्व भर में राजनीतिज्ञों द्वारा खेले जा रहे नफरत के खेल तथा मानावधिकारों के शोषण के खिलाफ बोलने के समर्थ होगा, परन्तु इस नियुक्ति ने भारतीय मीडिया, जो साफ तौर पर साम्प्रदायिक राह पर नफरत का अभियान चला रहा है, के लिए यह चिन्ता की बात है कि भारतीय मूल की कोई सिख, मानवाधिकारों के अमरीका के इस बड़े पद पर बैठ गई हैं। परन्तु हमें हरमीत कौर ढिल्लों की इस नियुक्ति पर उतना ही गर्व है, जितना हमें पहले ट्रम्प द्वारा नियुक्त किए गये तीन भारतीय मूल के व्यक्तियों की नियुक्ति पर एक भारतीय के तौर पर हुआ था। उल्लेखनीय है कि हरमीत वह पहली सिख व्यक्तित्व हैं जिन्होंने ट्रम्प पर हुए जानलेवा हमले में बच जाने पर मिलवाकी (अमरीका) की रिपब्लिकन पार्टी के समारोह में ट्रम्प के बच जाने के शुक्राने के तौर पर मंच से सिख अरदास की थी। हालांकि इस अरदास के मामले पर भी जो विरोध की आवाज़ें उठी थीं, उन्हें भी भारतीय मेन स्ट्रीम के मीडिया ने विशेष स्थान ही दिया था। 
कौन है हरमीत कौर ढिल्लों?
55 वर्षीय हरमीत कौर ढिल्लों का जन्म चंडीगढ़ में हुआ था। वह दो वर्ष की आयु में ही अपने पिता तेजपाल सिंह तथा माता परमिन्दर कौर के साथ अमरीका चली गई थीं। उन्होंने डार्टमाऊथ कालेज से पहले क्लासीकल साहित्य में ग्रेजुएशन की और फिर वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई पूरी की। सबसे पहले वह अमरीकी अपील अदालत में जज पाल वी. नीमेयर की सहायक बनीं। 2006 में अनुभव मिलने के बाद उन्होंने सानफ्रांसिस्को में अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की थी। इसी दौरान वह राजनीति में सक्रिय हुई थीं और कैलिफोर्निया रिपब्लिकन पार्टी की उपाध्यक्ष बन गई थीं। बाद में वह रिपब्लिकन राष्ट्रीय समिति की सदस्य भी बनीं। 2016 में उन्हें पहली अमरीकी भारतीय महिला के रूप में रिपब्लिकन पार्टी की जी.ओ.पी. में शामिल होने का अवसर मिला। वह वूमैन फार ट्रम्प संस्था की को-चेयरपर्सन भी बनीं। 2022 में उन्होंने रिपब्लिकन नैशनल कमेटी की चेयरपर्सन के रूप में अपनी दावेदारी पेश की। यहां भी उन्हें सिख होने के कारण एक कानाफूसी विरोध-अभियान का सामना करना पड़ा था। चाहे वह यह चुनाव हार गई थीं, परन्तु उनका कद रिपब्लिकन पार्टी में काफी ऊंचा हो गया था। अब उनकी नई नियुक्ति पर प्रत्येक भारतीय को आम तौर पर तथा प्रत्येक सिख को खास तौर पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी में सिख लॉबी को इससे विशेष मज़बूती मिली है। 
दुआ ़गो हूं तुम्हारी शान में हर दिन इज़़ाफा हो,
तुम्हारी शान अहल-ए-कौम की भी शान हो जाये।
नहीं होगी शिरोमणि कमेटी के प्रस्ताव की पुष्टि?
वैसे तो श्री अकाल तख्त साहिब पर 2 दिसम्बर, 2024 को जो घटनाक्रम सिंह साहिबान के फैसले के समय घटित होते दिखाई दिया था, उससे एक नई तथा अलग आशा की किरण दिखाई दी थी, परन्तु उसके बाद घटित हुई घटनाओं ने कौम को एक बार फिर ‘हन्ने हन्ने दी मीरी’ की लड़ाई की ओर धकेल रही प्रतीत होती हैं। इस स्थिति ने सिख राजनीति में एक नई दुविधा पैदा कर दी है। अभी हम इस बारे कुछ भी विस्तार में लिखने के समर्थ नहीं हैं क्योंकि बहुत सी हकीकतों का सच अभी सामने नहीं आया। बेशक अकाली दल के अध्यक्ष तथा उनके विरोधी श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा लगाई सज़ा (तन्खाह) को पूरी सिदक-दिली से निभा रहे हैं, परन्तु यह अभी भी स्पष्ट नहीं कि आगामी दिनों में राजनीतिक तौर पर वे क्या कदम उठाते हैं? वे श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा बनाई गई सात सदस्यीय समिति को मान्यता देते हैं या नहीं? इस स्थिति में पंजाब तथा विशेषकर सिख राजनीति किस ओर झुकती है, अभी कुछ भी कहना सम्भव नहीं, परन्तु इस बीच सुखबीर सिंह बादल पर गोली चलाने वाले नारायण सिंह चौड़ा को सिख पंथ से निकालने के लिए शिरोमणि कमेटी द्वारा श्री अकाल तख्त साहिब को प्रस्ताव पारित करके भेजने के मामले पर बहस बहुत तीव्र हो गई है। हालांकि कौम के पक्ष में तो यह बात थी कि बहस के केन्द्र में श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से दो दिसम्बर को किये गये फैसले रहते, अभिप्राय यह कि इन फैसलों को अधिक महत्व मिलता। 
परन्तु जो ‘सरगोशियां’ हमें सुनाई दे रही हैं, उनके अनुसार इन परिस्थितियों में शिरोमणि कमेटी अब चौड़ा के बारे में पारित किये गये प्रस्ताव को अप्रत्यक्ष रूप में अधिक महत्व न देने के संबंध में विचार कर रही है। इसके लिए बहुत आसान तरीका यह है कि शिरोमणि कमेटी के विधान के अनुसार यदि पहली बैठक में पारित प्रस्ताव की शिरोमणि कमेटी की आगामी बैठक में पुष्टि नहीं की जाती तो वह प्रस्ताव अपने-आप ही रद्द हो जाता है। हमें मिली सूचनाओं के अनुसार इस बात की बहुत सम्भावना है कि इस प्रस्ताव की भी पुष्टि नहीं की जाएगी। 
क्या मोदी-शाह में कोई कटुता है?
इस समय दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में तथा लाखों सबस्क्राइबरों वाले सोशल मीडिया चैनलों पर एक सवाल आम उठाया जा रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह के बीच कोई तनाव या टकराव वाली स्थिति बन रही है? ऐसे सवाल उठाने का आधार प्रधानमंत्री द्वारा अमित शाह के विरोधी माने जाते भाजपा नेताओं को अब दिये जा रहे महत्व को बनाया जा रहा है। जैसे अमित शाह तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में 36 का आंकड़ा सबके सामने है, परन्तु आजकल योगी भी प्रधानमंत्री के निकट होते जा रहे हैं और उन्हें उत्तर प्रदेश का डी.जी.पी. अपनी मज़र्ी का बनाने के मार्ग भी दिये जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का लटकता मामला जिसे भाजपा तथा आर.एस.एस. की बीच मतभेदों का परिणाम समझा जा रहा था, अब इस मामले को भी मोदी-शाह में सहमति न होने से जोड़ा जाने लगा है। इसी प्रकार अब भाजपा नेता वसुंधरा राजे सिंधिया भी प्रधानमंत्री का गुणगान करने लग पड़ी हैं जबकि उनकी अमित शाह से कितनी निकटता है, यह सब को पता है। फिर शिवराज सिंह चौहान को सभी केन्द्रीय मंत्रालयों के कामकाज की समीक्षा करने के लिए बनाई गई समिति का प्रमुख बनाना तथा नितिन गडकरी को अधिक महत्व देना भी इस संबंधी चर्चा के कारणों में शामिल है।   
परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार ये सभी कारण प्रधानमंत्री मोदी तथा अमित शाह के बीच किसी खटास के कारण नहीं हैं अपितु इन नेताओं को प्रधानमंत्री द्वारा अधिक महत्व देना उनकी मजबूरी है क्योंकि इसके  बारे में आर.एस.एस. का दबाव है, जिसे अब प्रधानमंत्री दृष्टिविगत नहीं कर सकते क्योंकि लोकसभा चुनाव में आर.एस.एस. के थोड़ा पीछे हटने का परिणाम वह देख चुके हैं और अब हरियाणा तथा महाराष्ट्र में आर.एस.एस. के सक्रिय समर्थन का प्रभाव भी सभी के सामने है।
झुकाना सीखना पड़ता है सर लोगों के कदमों में,
यूं ही जम्हूरियत में हाथ सरदारी नहीं आती।

-मो. 92168-60000

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