क्या भाजपा के निजी हमलों का लाभ ‘आप’ को होगा ?

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं पर भाजपा नेताओं के निजी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। चुनाव से पहले इस तरह के निजी हमलों से भाजपा को नुकसान हो सकता है। अरविंद केजरीवाल के ‘शीशमहल’ को लेकर राजनीतिक हमला तो ठीक है, लेकिन उनके परिवार को निशाना बनाना, मुख्यमंत्री आतिशी पर निम्न स्तरीय निजी हमले करना भाजपा को महंगा पड़ सकता है। आतिशी पर निजी हमला करके कालकाजी से भाजपा के उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी अपने जीतने की संभावना लगभग खत्म कर चुके हैं।
 भले ही वह कितने भी मज़बूत हों और तीन बार सांसद रहे हों, लेकिन जिस तरह से उन्होंने आतिशी को अपना उपनाम बदल कर मार्लेना से सिंह करने पर कहा कि उन्होंने अपना पिता बदल लिया, उसका बड़ा नुकसान हुआ है। इसीलिए कांग्रेस की उम्मीदवार अलका लांबा ने कहना शुरू कर दिया है कि कालकाजी सीट पर लड़ाई आतिशी बनाम अलका लांबा है। हालांकि ऐसा नहीं है, आतिशी की लड़ाई बिधूड़ी से ही होगी और उसमें नुकसान में बिधूड़ी रहेंगे। पिता के नाम पर आंसू बहा कर आतिशी ने बढ़त बना ली है। इस बीच भाजपा के एक अन्य बड़े नेता योगेंद्र चंदोलिया ने भी उनके पिता पर हमला किया और कहा कि उन्होंने अफजल गुरू को बचाने की कोशिश की थी। इससे भी आतिशी को फायदा ही होगा। केजरीवाल की राजनीति के कारण अगर कुछ मुस्लिम वोट कांग्रेस की ओर जाने वाले होंगे, तो वे भी कालकाजी में आतिशी को ही मिलेंगे। 
नाम बदलने का जुनून
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के सिर पर इन दिनों छोटे-छोटे गांवों के नाम बदलने का भूत सवार है। वह हर उस गांव का नाम बदल देना चाहते हैं जिसका मौजूदा नाम उर्दू भाषा का है या मुस्लिम पहचान से जुड़ा है। इसी सिलसिले में उन्होंने हाल ही में मौलाना नामक एक गांव का नाम बदल कर नया नाम विक्रम नगर रखा है। इस मौलाना गांव के नाम की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यह गांव उज्जैन ज़िले की बडनगर तहसील के अंतर्गत आता है। करीब 15 हज़ार की आबादी वाले इस गांव में ट्रैक्टर-ट्रॉली बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है। इस गांव का भू-जल बहुत खारा है। मालवी भाषा में किसी वस्तु के खारेपन को मौलापन कहा जाता है तो गांव का पानी खारा यानी मौला होने की वजह से इस गांव का नाम कई दशकों पहले मौलाना पड़ गया था यानी किसी मौलाना के नाम से इस गांव के नाम का कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने बडनगर में आयोजित एक कार्यक्रम में गांव का नाम बदलने का ऐलान करते हुए कहा कि मौलाना गांव का नाम लिखने पर कलम अटक जाती है, इसलिए वह इसका नाम बदल रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह गांव मुख्यमंत्री के ही गृह ज़िले में ही आता है, लेकिन न तो उन्हें इस गांव के नाम की पृष्ठभूमि पता है और न ही भाजपा के किसी स्थानीय नेता या ज़िले में पदस्थ किसी सरकारी अधिकारी ने इस बारे में मुख्यमंत्री को बताने की हिम्मत नहीं दिखाई। इसे सांप्रदायिक नफरत की इंतहा ही कहा जा सकता है।
सोरोस को सर्वोच्च सम्मान
दिलचस्प है कि एक तरफ अमरीका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने शपथ समारोह का न्योता नहीं दिया है, तो दूसरी ओर निवृत्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन ने कथित भारत विरोधी जॉर्ज सोरोस को अमरीका का सर्वोच्च सम्मान दे दिया है। भारत में गूगल की सर्च हिस्ट्री में कई अभिनेता या अभिनेत्री के सर्च की खबरें साल के अंत में आई थीं, लेकिन पूरी सूची सामने आती तो पता चलता कि कहीं न कहीं अमरीकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस भी उस सूची में बहुत आगे हैं। असल में भाजपा ने सोरोस को सबसे बड़ा खलनायक बना कर पेश किया।
 उनके बारे में पार्टी के प्रवक्ताओं से लेकर केंद्रीय मंत्रियों और संसद के अंदर पार्टी के वक्ताओं की ओर से कहा गया कि सोरोस भारत विरोधी व्यक्ति है। भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा कि सोरोस दुनिया भर की ऐसी संस्थाओं की मदद करते है, जो भारत विरोधी गतिविधियां चलाती हैं। उन्हें पहले नरेंद्र मोदी का विरोधी कहा गया और फिर भारत विरोधी ठहराया गया। इसके पीछे एक कारण यह था कि ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) नामक संस्था को सोरोस की कम्पनी की ओर से फंड मिलता है और इस संस्था ने पेगासस से भारत में जासूसी और शेयर बाज़ार में अडानी की हेराफेरी का खुलासा किया था। बहरहाल, जिन जॉर्ज सोरोस को भाजपा और केद्र सरकार के मंत्रियों ने खलनायक बनाया उन्हें अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की ओर से अमरीका के सर्वोच्च सम्मान ‘प्रेजिडेंट मेडल ऑफ  फ्रीडम’ के लिए चुना गया है। 
मोदी के निशाने पर ‘आप’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के प्रचार अभियान का आगाज़ करते हुए तीन जनवरी को जिस तरह का भाषण दिया उससे 10 साल पहले दिए उनके भाषण की याद आ गई। दस साल पहले जनवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के अभियान की शुरुआत करते हुए मोदी ने रामलीला मैदान में भाषण दिया था और केजरीवाल पर बड़ा हमला बोला था। जिस तरह अभी उन्होंने आम आदमी पार्टी की सरकार को ‘आपदा सरकार’ कहा, उसी तरह 2015 के पहले भाषण में केजरीवाल को नक्सली बताया था। उस चुनाव का नतीजा सबको पता है। भाजपा को 70 सदस्यों की विधानसभा में सिर्फ  तीन सीटें मिली थीं जबकि उससे पहले के चुनाव यानी दिसम्बर 2013 के चुनाव में भाजपा 32 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और केजरीवाल की पार्टी को 28 और कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं।  इस बार भी प्रधानमंत्री का निशाना सिर्फ  आम आदमी पार्टी और केजरीवाल पर है। उन्होंने कांग्रेस को किसी गिनती में नहीं रखा जबकि कांग्रेस 10 साल के बाद लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी है और दिल्ली में बहुत ताकत से लड़ रही है। दिल्ली में भाजपा के लिए तभी कोई अवसर बनेगा, जब कांग्रेस मुकाबले में आएगी। कांग्रेस का वोट प्रतिशत अगर दो अंकों में हुआ, तब भाजपा जीत भी सकती है। लेकिन यह तभी होगा, जब लगे कि कांग्रेस भी लड़ रही है। प्रधानमंत्री के पहले भाषण से तो नहीं लगा कि दिल्ली में कांग्रेस लड़ाई में है। आगे देखते हैं कि भाजपा क्या रणनीति अपनाती है। 

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