बेहतर समाज के सृजन हेतु पूरा जीवन सक्रिय रहे मा. बलवंत सिंह
समाज में कुछ ऐसे सजग और संघर्षशील व्यक्ति होते हैं जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इंसानियत की भावना रखते हुए समाज में जन-पक्षीय बदलाव लाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं। तर्कशील सोसायटी हरियाणा के संस्थापक मास्टर बलवंत सिंह ऐसे ही प्रसिद्ध नेता थे, जिन्होंने न केवल समाज से अंधविश्वास, भ्रम, रूढ़ीवादी मान्यताओं, डेरावाद, नशाखोरी, मानसिक समस्याओं, अथित चमत्कारों और सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए वैज्ञानिक चेतना का प्रचार-प्रसार करने के लिए निरंतर कार्य किया। डेरा सिरसा के प्रमुख के खिलाफ हत्या के एक मामले में गवाही देकर उन्होंने अपने साहस का परिचय भी दिया। उनका जन्म 3 फरवरी, 1955 को कुरुक्षेत्र ज़िले के संघोली (पिहोवा) गांव में हुआ था। 1981 में मास्टर बलवंत सिंह छह महीने के लिए अस्थायी रूप में पंजाबी शिक्षक नियुक्त हुए, परन्तु इस दौरान ज्ञानी और स्नातकोत्तर की परीक्षा पास करके वह स्थायी रूप में शिक्षक बन गए। सन् 1988 में तर्कशील सोसायटी हरियाणा की स्थापना करने और उसका दायरा विस्तृत करने में संस्थापक सदस्य के रूप में उन्होंने लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें इस बात का बेहद अफसोस था कि पढ़ाई-लिखाई, ज्ञान, तर्क एवं वैज्ञानिक सोच से वंचित लोग ही नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी पाखंडी बाबाओं, तांत्रिकों और ज्योतिषियों के चंगुल में फंसकर अपनी लूट करवाते हैं।
उन्होंने अपने जीवन के साढ़े तीन दशक पाखंडी बाबाओं, ज्योतिषियों, तांत्रिकों और कथित चमत्कारों का पर्दाफाश करने, मानसिक समस्याओं से पीड़ित लोगों को वैज्ञानिक दिशा देने और हिंदी तर्कशील पथ पत्रिका के सम्पादक के रूप में तर्कशील साहित्य का प्रकाशन और अनुवाद करने के लिए समर्पित किए। इस दौरान उन्होंने तर्कशील सोसायटी हरियाणा में कई वर्षों तक लगातार प्रदेश सचिव, अध्यक्ष और वित्त सचिव के रूप में ज़िम्मेदारी निभाते हुए स्कूलों, कॉलेजों, गांवों, कस्बों, कारखानों और समाज के सभी वर्गों में फैले अंधविश्वास और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने तर्कशील लहर का दायरा विशाल करते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और कई अन्य राज्यों में वैज्ञानिक चेतना के कार्यक्रम प्रस्तुत किए। अपने अंतिम समय में भी वह हिंदी तर्कशील पत्रिका के संपादक की ज़िम्मेदारी निभाते रहे।
मास्टर बलवंत सिंह ने अपने फार्म हाऊस पर मानसिक चेतना परामर्श केंद्र चलाते हुए अंधविश्वास, भूत-प्रेत और विभिन्न मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हज़ारों रोगियों को मुफ्त वैज्ञानिक काऊंसलिंग के माध्यम से स्वस्थ किया और उन्हें तर्कशील साहित्य पढ़ने और जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया।
मास्टर बलवंत सिंह की ज़िंदगी की सबसे अहम उपलब्धि यह थी कि उन्होंने डेरा सिरसा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ चल रहे साध्वियों से दुष्कर्म और रंजीत सिंह हत्या केस में उसके खिलाफ पूरी निडरता से गवाही दी, जिस कारण डेरा प्रमुख को पंचकूला की सीबीआई अदालत ने वर्ष 2017 में उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी।
10 जुलाई, 2002 को जब रंजीत सिंह की हत्या की गई, उसके तुरंत बाद हत्यारों ने मास्टर बलवंत सिंह को मारने की योजना बनाई थी, लेकिन घर पर न मिलने के कारण उनकी जान बच गई। उन्हें गवाही देने से रोकने के लिए करोड़ों रुपये का लालच दिया गया और जान से मारने की धमकियां देने तथा झूठे मुकद्दमें दर्ज करवाने के अतिरिक्त उन पर कई बार जानलेवा हमले भी करवाए गए। अपनी जान की परवाह किए बिना वह बीस वर्षों तक अदालतों और थानों में पेशियां भुगतते रहे और एक ताकतवर अपराधी को सज़ा दिलाने के लिए पूरी निडरता से एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का फज़र् निभाया।
हरियाणा में अस्थायी और बेरोज़गार शिक्षक संघ को सक्रिय करने में मास्टर बलवंत सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी अथक सेवाओं और समर्पित भावना के कारण वह अस्थायी शिक्षक संघ के महासचिव और फिर कुरुक्षेत्र इकाई के सचिव चुने गए। बेरोज़गार शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के लिए 1985 में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा भी थे।
मास्टर बलवंत सिंह ने 1991 में हरियाणा साक्षरता अभियान में भी सक्रिय भूमिका निभाई और शिक्षक साथियों एवं कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए अनेक संघर्ष किए। वह 28 फरवरी, 2013 को मुख्याध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए। तर्कशील लहर में साढ़े तीन दशकों के महत्वपूर्ण योगदान और डेरा प्रमुख के खिलाफ निर्भीक होकर गवाही देने के कारण उन्हें तर्कशील सोसायटी पंजाब सहित कई अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया। मास्टर बलवंत सिंह 31 जनवरी, 2024 को ब्रेन हैमरेज के कारण सदा के लिए हमें छोड़ कर चले गए। उनकी ओर से हरियाणा की राष्ट्रीय तर्कशील लहर के विकास में डाले गए योगदान को सदैव याद किया जाता रहेगा।
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