बजट में सबका ख्याल, लेकिन चुनौतियां बरकरार
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम वर्ग को आयकर में बड़ी राहत दी है। मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता की बागडोर संभालने के समय अढ़ाई लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं था। इस बार इसे बढ़ा कर 12 लाख रुपये कर दिया गया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025-26 बजट में हर वर्ग, खासतौर पर गरीब, युवाओं और महिलाओं के लिए कई योजनाओं की घोषणा की है, जो उनकी उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेंगे। इस बजट में कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, और सामाजिक कल्याण पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं, जो खासकर आम नागरिक, किसानों, युवाओं और छोटे व्यवसायों के लिए सकारात्मक बदलाव लाएंगे। वित्त मंत्री ने जिस तरह से सामाजिक कल्याण, बुनियादी ढांचा और आर्थिक समावेशन पर ज़ोर दिया है, उससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार का उद्देश्य केवल आर्थिक वृद्धि नहीं, बल्कि समग्र समृद्धि है। आयकर में सुधार, कृषि क्षेत्र में निवेश, और स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी योजनाओं के ज़रिए सरकार ने आम आदमी की उम्मीदों को नई दिशा दी है। इस बजट में भारत अपनी दीर्घकालिक विकास की यात्रा में और मजबूत कदम उठाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आम बजट को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि यह हर भारतीय के सपनों को पूरा करेगा ‘विकसित भारत’ के मिशन को आगे ले जाएगा और साथ ही विकास, निवेश और उपभोग को कई गुणा बढ़ेगा।
हालांकि विपक्ष द्वारा बजट को लेकर जो प्रतिक्रियाएं आई हैं, वह स्वाभाविक है। क्योंकि विपक्ष अगर विरोध दर्ज नहीं कराएगा तो वह विपक्ष कैसा। बहरहाल वित्त मंत्री सभी को साधने वाले बजट से अर्थव्यवस्था को न केवल बल मिलना चाहिए, बल्कि वह अधिक तेज़ गति से बढ़नी चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि आर्थिक सर्वे जहां यह कह रहा है कि आगामी वित्त वर्ष में आर्थिक विकास की दर 6.3 से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है, वहीं देश को विकसित बनाने के लिए कम से कम एक दशक तक 8 प्रतिशत विकास दर की आवश्यकता है। आखिर यह आवश्यकता कैसे पूरी होगी? लोक लुभावन बजट के बाद भारत में कृषि, बेरोज़गारी, कुपोषण, जल, महंगाई जैसी चुनौतियां अभी भी बरकरार है। जब तक हमारे उद्योग-धंधे वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम नहीं बनते। उन्हें इस प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए उत्कृष्टता भी हासिल करनी होगी, क्योंकि वे तभी वैश्विक बाजार की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे। बजट में यह प्रविधान किया गया है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों को कहीं आसानी से ज्यादा कज़र् मिल सकेगा, लेकिन उनकी समस्या कज़र् नहीं, वह तकनीक है, जिसके अभाव में उनके उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपना स्थान नहीं बना पा रहे हैं। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों के सशक्त होने से केवल देश को आत्मनिर्भर बनाने में ही सहायता नहीं मिलेगी, बल्कि रोज़गार के कठिन सवाल को हल करने में भी आसानी होगी। बजट में सामाजिक विकास की योजनाओं पर धन का आवंटन बढ़ाना समय की मांग थी, लेकिन अच्छा होता कि बजट यह संदेश देता कि जब लोग आत्मनिर्भर बनेंगे, तभी देश भी आत्मनिर्भर होगा।
टैक्स छूट से अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, लेकिन कितना, यह आने वाला समय बताएगा, क्योंकि टैक्स छूट से जनता के पास करीब एक लाख करोड़ रुपये ही आएगा। बजट में सरकार अपनी नीतियों के ज़रिये भविष्य की रणनीति भी सामने रखती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं लगा कि सरकार बजट के माध्यम से किसी बड़े बुनियादी बदलाव की ओर बढ़ रही है। कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रम आदि क्षेत्र में केंद्र की नीतियों पर सही ढंग से अमल राज्यों के सक्रिय सहयोग से ही हो पाता है। इस मामले में डबल इंजन सरकारें अर्थात भाजपा शासित राज्य सरकारों को तो लाभ मिलता है, लेकिन कई बार गैर-भाजपा शासित राज्यों में केंद्र की नीतियों को लागू करने में अड़चन आती है। यही नहीं बजट से पहले आए आर्थिक सर्वे की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। इस सर्वे में स्वास्थ्य पर अतिरिक्त ध्यान और उद्योगों को महंगी बिजली ज़िक्र हुआ था। यानि मुफ्त या सस्ती बिजली देने के कारण भी उद्योगों को दी जाने वाली बिजली महंगी हो रही है। अधिकांश राज्यों के बिजली बोर्ड घाटे में चल रहे हैं। बजट यह संकेत दे रहा है कि सरकार देश में जो आर्थिक सुस्ती दिख रही है, उसे दूर करने के लिए प्रयत्नशील है। वह इसमें सफल हो सकती है, क्योंकि आयकर में छूट देने के साथ उसने कुछ समय पहले आठवें वेतन आयोग के गठन की भी घोषणा की है, लेकिन इसमें संदेह है कि बजट उन चुनौतियों का समाधान करने में भी सक्षम होगा, जो विकसित भारत के लक्ष्य को पाने में आड़े आ रही हैं।
बजट यह संकेत नहीं करता कि सरकार चीन की ओर से पेश की जा रही आर्थिक चुनौती का सामना करने को तत्पर है। भारत को चीन के विकल्प के रूप में विकसित करने की जो बातें होती थीं, उनके अनुरूप बजट में कोई घोषणा नहीं की गई। निजी सेक्टर बजट से उत्साहित नहीं लग रहा, इसका पता शेयर बाज़ार के रूझान से चला है। यदि निजी सेक्टर चीन की चुनौती का सामना करने में सक्षम नहीं हुआ तो 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करना कठिन होगा। यदि यह लक्ष्य कठिन बना रहा तो फिर ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को पाना भी मुश्किल हो जाएगा।