सितारों से आगे
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और नई उपलब्धि प्राप्त कर ली है। उसने अपना 100वां सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज दिया है। इसे आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केन्द्र से जी.एस.एल.वी.एफ. 15 रॉकेट द्वारा छोड़ा गया है। पहले इस सिलसिले की शुरुआत 1979 में उस समय के वैज्ञानिक सतीश धवन के नेतृत्व में की गई थी, जिसके उस समय के प्रोजैक्ट डायरैक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम थे। सतीश धवन से पहले अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने की थी। उस समय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंतरिक्ष अनुसंधान के शुरू किए इस कार्यक्रम को बड़ा उत्साह दिया था। अंत तक वह इस भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ जुड़े रहे थे। भारत की ओर से अपना 100वां मिशन पूरा कर लेने पर इसरो बधाई का पात्र है। यह भी कि भारत की आर्थिकता को देखते हुए इसकी ओर से अंतरिक्ष कार्यक्रमों में विश्व भर के देशों से कहीं कम पूंजी लगाई गई है, इसलिए भी कि अपनी सीमाओं के बावजूद इससे जुड़ रहे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत ने इस कार्यक्रम को यहां तक पहुंचा दिया है।
आज हमारा अंतरिक्ष अनुसंधान विश्व के बड़े विकसित देशों अमरीका, रूस और चीन से प्रतिस्पर्धा में खड़ा दिखाई देता है। बात यहीं खत्म नहीं होती, इसरो ने अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए थे, वे बेहद सराहनीय हैं। इसने चांद तक अपनी पहुंच बना ली है। इसरो के चेयरमैन वी. नारायण ने कहा कि साइकिलों और बैल गाड़ियों पर रॉकेट के पुर्जे लाने के युग से लेकर इसरो ने चाँद तक पहुंचने का सफर तय करके इतिहास रचा है। चाहे इस 100वें मिशन तक पहुंचने में उसे 46 वर्ष का समय लगा, परन्तु अगला शतक वह आगामी 5 वर्षों में ही पूरा कर लेगा। छोड़े जा रहे इन सैटेलाइटों द्वारा भारत को देश में किसी भी स्थान की सही स्थिति, गति और डिज़ीटल प्रक्रिया संबंधी अब किसी विदेशी टैक्नोलॉजी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। छोड़े गए सैटेलाइट का नाम नाविक (नेवीगेशन विद इंडियन कंसटेलेशन) अर्थात (एन.ए.वी.आई.सी.) रखा गया है, यह संयुक्त राज्य अमरीका के ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस.), चीन के बाइडू, यूरोप के गैलीलियो और रूस के ग्लोनास के समान काम करेगा। इससे पहले इसरो की ओर से अपने रॉकेट द्वारा सवा चार सौ से भी अधिक विदेशी सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे जा चुके हैं। इस क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों में चंद्रयान मिशन, आदित्य, एल-1 मिशन आदि आते हैं।
इसरो अब चंद्रमा की हर प्रकार से जांच करने के लिए अपने आगामी कार्यक्रम गगनयान पर काम कर रहा है, जिसमें पहला मानव रहित सैटेलाइट भेजने के बाद आगामी कार्यक्रम चंद्रयान-4 तथा चंद्रयान-5 मिशन पर काम करना शामिल होगा। इससे पहले भारत ने सूर्य की अनेक पक्षों से खोज करने के लिए भी अपना सैटेलाइट अंतरिक्ष में स्थापित किया हुआ है। इसी 16 जनवरी को इसरो ने अंतरिक्ष में पहली बार दो यानों (सैटेलाइटों) को सफलतापूर्वक जोड़ कर बड़ी सफलता हासिल की थी। अब 29 जनवरी को छोड़े गए 100वें रॉकेट द्वारा नए अंतरिक्ष परीक्षण किए जाएंगे। इस तरह इसरो की सफलता बड़े देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों से कदम मिला रही है, जिसके लिए इसरो के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द