कला भवन के आंगन में महोत्सव का आगाज़
पंजाब कला परिषद् द्वारा प्रत्येक वर्ष आयोजित किए जाते रंधावा उत्सव के साथ पंजाबी के लोकप्रिय कवि सुरजीत पातर की यादों एवं मातृ भाषा पंजाबी को दरपेश कठिनाइयों को जोड़ कर इसका दायरा तथा समय इतना लम्बा कर दिया गया है कि इसे उत्सव के स्थान पर महोत्सव कहना ही उचित है। पंजाब के 9 बड़े शहरों में 2 फरवरी से 29 मार्च तक योजनाबद्ध किए गए अलग-अलग कार्यक्रमों में साहित्य, संगीत तथा कला ही नहीं, अपितु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशयल इंटैलीजैंस) भी चर्चा का विषय रही थी। इस कला उत्सव को पंजाब के चार विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश की सैंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ धर्मशाला तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ कैम्पस भी सहयोग दे रहा है। प्रमुखता का श्रेय पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के उप कुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल को जाता है, जिन्होंने इस महोत्सव का आगाज़ महिन्द्र सिंह रंधावा यादगारी भाषण से किया। इसकी बात भी होगी पहले यह बता दें कि इस क्रम में कृषि विश्वविद्यालय ने 25 फरवरी को अपने परिसर में सुरजीत पातर कला उत्सव को भी निवाजना है। ‘जीवे जवानी’ नामक इस उत्सव में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा तैयार कीं नाटक तथा कला प्रदर्शनियों के साथ-साथ जन-प्रस्तुतियां भी दर्शकों को मंत्र-मुग्ध करेंगी। अमृतसर तथा बठिंडा स्थित विश्वविद्यालयों के कार्यक्रम में भी संगीत नाटक प्रस्तुतियों के अतिरिक्त कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लाभ पर प्रकाश जाला जाएगा। इस दो माह चलने वाले महोत्सव का समापन पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के परिसर में चार दिवसीय कार्यक्रम से होगा, जिसमें पंजाब के मुख्यमंत्री भी उपस्थित होंगे।
इन प्रस्तुतियों एवं कार्यक्रमों का रूप एवं अदाकारी कैसी होगी, इसका अनुमान प्रोफैसर कर्मजीत सिंह उप कुलपति गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के उद्घाटनी शब्दों एवं एन.एफ. एल. के पूर्व सी.एम.डी. निरलेप सिंह के प्रधानगी भाषण से स्पष्ट था। और पूछते हो तो बाद दोपहर कला भवन के खुले आंगन की लोक-प्रस्तुतियों ने ऐसा रंग बिखेरा कि सभी दर्शक एवं श्रोता प्रसन्न हो गए। वैसे तो ये प्रस्तुतियां हम अपने घरों के रेडियो तथा टीवी पर प्रतिदिन देखते हैं, परन्तु खुले आंगन वाली कलाकारी, फुर्ती एवं सादगी का कोई जवाब नहीं। विशेषकर हरफनमौला प्रीतम सिंह रूपाल के निर्देशन वाले मलवई गिद्दे तथा युवतियों का नाच का। चाहे विगत वर्षों में पुरुषों का गिद्दा ऐसे नाचों में प्रमुख रहा है, परन्तु चंडीगढ़ के इंटरज़ोन मुकाबले में पहला स्थान प्राप्त करने के बाद युवतियों का नाच भी उतना ही लोकप्रिय हो गया है। इस बार के महोत्सव में धमाल की आमद ने इन नाचों की प्रशंसा हासिल करके इसमें सूफियाना सोच, दिशा तथा साधन भर दिए हैं।
इन तीनों तरह के नाच की प्रशंसा यह थी कि इनमें पंजाब के लोक साज़ों को आधार बना कर महोत्सव को विरासती रंग में रंगा गया। इन नाचों को दर्शकों द्वारा मिली स्वीकृति देख कर प्रबंधकों ने यह भी घोषणा की कि इन्हें प्रचलित रखने के प्रयत्न भविष्य में भी जारी रहेंगे ताकि पंजाब के सांस्कृतिक नव-सृजन का सपना सही रूप में साकार हो सके।
कृषि एवं खेतों की महक के समाप्त हो जाने की चिंता व्यक्त करने का काम डा. गोसल के भाषण ने किया। इसमें पंजाबी किसान की उपलब्धियों की बात करने के बाद उनकी त्रुटियों का ज़िक्र भी है, जो पंजाब के भविष्य का बड़ा क्षरण कर सकती हैं।
डा. गोसल के शब्दों में गेहूं-धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कृषि ने नव-रचना एवं नये यत्नों के पांवों में बेड़ियां डाल रखी हैं। हम कृषि विभिन्नता की राह नहीं अपना रहे। हमें फल, सब्ज़ियों तथा सरसों की कृषि की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे भू-जल की बचत हो और उपज एवं आय बढ़े। बढ़ी हुई आय का बड़ा लाभ पंजाब की जवानी को विदेश की ओर भागने से रोकने का कार्य करेगा। नई पर्यावरण ज़रूरतों के दृष्टिगत पौष्टिक तथा पकने में कम समय लेने वाली फसलें तैयार करने की ज़रूरत है जो कृषि विभिन्नता, स्पीड ब्रीडिंग तथा जैविक खाद, कीटनाशकों तथा सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के बिना संभव नहीं। समय आ गया है कि हमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता के इस्तेमाल से डिजिटल कृषि अनुसंधान यंत्रों के उपयोग की ओर भी हौसले वाले कदम उठाने चाहिएं। असल मुद्दा अध्यापक, अनुसंधान एवं संचार के पहियों में व्यापार का पहिया जोड़ने का है, जिससे धरती को दरपेश खतरे कम होंगे।
उद्घाटन सत्र का सारांश गेहूं एवं धान की कृषि की बजाय सरसों तथा तारामीरा आदि तेल वाले बीजों की काश्त के लिए प्रेरणा थी जो सरसों के तेल की उपज बढ़ा कर डावांडोल हुई कृषि को पुन: पांव पर खड़ी कर सकती है। राष्ट्रीय खादों के बड़े मामले से निपटने वाले निरलेप ने एक गांव के निवासियों को संयुक्त कृषि का माडल अपनाने हेतु प्रेरित किया। उनका विचार है कि आज के दिन गांववासियों को अपने मतभेद भुला कर संयुक्त प्रयास करने की ज़रूरत है। संयुक्त कृषि के मार्ग पर चलते हुए एक गांव की कुल भूमि के लिए ट्रैक्टरों की संख्या कम हो जाएगी एवं फसलों की उपज बढ़ जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप पंजाब की नौजवानी विदेश को भागने की बजाय अपनी जन्म भूमि पर रह कर जीवन-यापन कर सकती है। 2 फरवरी को पंजाब कला परिषद् के आंगन से चला आठ सप्ताह का यह काफिला पंजाब की जवानी के लिए अच्छे सपने लेकर आया है।
अंतिका
(सुरजीत पातर)
जदों मिलिया सी हाण दा सी सावरा जिहा,
जदों जुदा होया तुर गिया खुदा बणके।