मणिपुर की चुनौती

मणिपुर देश के उत्तर-पूर्व का एक छोटे भूगोलिक क्षेत्र वाला राज्य है। नागालैंड, मिज़ोरम और असम इसके पड़ोसी राज्य हैं। इसमें विधानसभा की 60 सीटें हैं। एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा यहां प्रशासन चला रही है। एन. बीरेन द्वारा इस्तीफा देने के बाद अब पार्टी द्वारा किसी दूसरे मुख्यमंत्री की तलाश की जाएगी। पिछले लगभग 2 साल से यहां आरक्षण के मामले को लेकर दो कबिलों में खूनी झड़पें चलती रही हैं। अब तक इसमें 250 के करीब लोग मारे जा चुके हैं और हज़ारों ही अपने घर-बार गंवा कर टैंटों में रहने के लिए मज़बूर हैं। 
यहां मैतेई कबीले के लोगों की बहुसंख्या है और यहां के पहाड़ों में कूकी कबीले के लोग रहते हैं, जिनको कई प्रकार के आरक्षण की सुविधाएं मिली हुई हैं। राज्य की हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण में मैतेई कबीले के लोगों को शामिल करने के फैसले के बाद यहां अचानक दंगे शुरू हो गये। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पैदा हुई इस गम्भीर स्थिति को संभालने में असमर्थ रहे, जिसके कारण पिछले डेढ़ साल से उनको बदलने की मांग की जाती रही, परन्तु भाजपा की केन्द्र सरकार ने इस संबंधी कोई फैसला नहीं लिया और न ही राज्य की स्थिति को सुधारने के लिए कोई बड़ा प्रभावशाली कदम ही उठाया, जिसके कारण वहां आज भी हालात बेहद गम्भीर बने हुए हैं। परन्तु समय अनुसार लगातार एन. बीरेन सिंह की हालत पतली होती गई। यह आपसी खूनी झड़प मई, 2023 को शुरू हुई थी, जो लगातार गम्भीर होती गई। उसी समय भाजपा से संबंधित कूकी कबीले के 7 विधायकों ने सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद वहां पार्टी में लगातार बड़ी दरारें पैदा होनी शुरू हो गईं, परन्तु भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व लगातार एन. बीरेन सिंह के समर्थन में खड़ा रहा। इस दौरान चाहे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो मणिपुर के दौरे करते रहे, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार भी मणिपुर का दौरा नहीं किया और न ही वहां के लोगों को अपने तौर पर विश्वास में लिया। इस संबंधी उनकी लगातार हर तरफ से आलोचना होती रही। विपक्षी पार्टियां भी प्रधानमंत्री द्वारा धारण किए ऐसे रवैये के खिलाफ लगातार बोलती रहीं, परन्तु प्रधानमंत्री द्वारा ऐसी दिखाई जाती हिचकिचाहट की समझ आनी मुश्किल थी। अब जबकि पार्टी के बहुत-से अन्य विधायक भी मुख्यमंत्री के खिलाफ सक्रिय होना शुरू हो गए और उनकी सरकार का तख्त डोलना शुरू हो गया है तभी बीरेन सिंह को अपना इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
नि:संदेह मणिपुर के इस घटनाक्रम ने केन्द्र सरकार तथा प्रधानमंत्री की छवि को कुछ धूमिल किया है। इसमें संदेह नहीं कि देश के इन उत्तर-पूर्वी राज्यों में बहुत बार लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं, कुछ कबीलों ने सशस्त्र संगठन भी बना रखे हैं। इममें से अधिकतर ने पड़ोसी देश म्यांमार में भी अपने ठिकाने मज़बूत किए हुए हैं। ऐसे बागी कबीले लगातार सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बने रहते हैं। केन्द्र सरकार के लिए भी यहां अक्सर पैदा होने वाली गम्भीर स्थिति चिंता का कारण बनी रहती है। ऐसी स्थिति में एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा इस जटिल मामले का समाधान तो नहीं है, परन्तु नये प्रशासन द्वारा मैतेई तथा कूकी कबीलों के बीच टकराव का समाधान करने के लिए की जाने वाली सम्भावित पहल से स्थिति में सुधार होने की सम्भावना अवश्य बन सकती है।  

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

#मणिपुर की चुनौती