चुनाव के समय मुफ्त की योजनाएं घातक हो सकती हैं
कायदे के अनुसार लोकतंत्र लोगों का है। लोगों के हित को सामने रखने वाला, परन्तु इसकी ताकत वोट मिलने पर निर्भर करती है। जिस नेता और पार्टी को जितने अधिक वोट मिलते हैं, उस नेता और पार्टी को शक्तिशाली माना जाता है, इसलिए अधिक से अधिक वोट प्राप्त करने के लिए हर सम्भव झूठे वायदे और लालच देने की कोशिश में रहते हैं। दिल्ली चुनाव में हाल ही में जो कुछ हुआ सभी के सामने है। कांग्रेस जो चुनाव से पहले तक आम आदमी पार्टी के हमकदम समझी जाती थी, आम आदमी पार्टी के विरोध में खड़ी है।
आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस पर आरोप लगा रही है। दोनों भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं। व्यंग्य कर रहे हैं और भाजपा नेता इन दोनों पर कटाक्ष करने का अवसर नहीं छोड़ रहे। यहीं नहीं जनता को यह मुफ्त, वह मुफ्त देने की होड़ लगी है, जिसका मतलब साफ है कि आप कुछ सुविधाओं का प्रलोभन देकर वोट खरीदना चाहते हैं। सच्चे लोकतंत्र के लिए यह बहुत घातक है। आर्थिक सुविधाएं देकर वोट खरीदने का मतलब यह है कि आप एक अलग तरीके से लोगों को गुलाम बना कर उन पर शासन चलाना चाहते हैं। दिल्ली में इन पिछले दिनों में यमुना के पानी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं।
केन बेतवा परियोजना के शिलान्यास पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कई परियोजनाओं का कांग्रेस काल में भूमि पूजन हुआ लेकिन चालीस साल में उनमें एक ईंट भी नहीं लगी। अटल जी की 100वीं जयंती के मौके पर नदी जोड़ो परियोजना के बहाने इन कुछ पहलुओं पर विचार करने की ज़रूरत बनी हुई है।
वर्ष 1970 में तत्कालीन केन्द्रीय सिंचाई मंत्री डा. के.एल. राव ने ज्यादा पानी वाली नदियों से कमी वाले इलाकों में पानी ट्रांसफर की योजना की नींव रखी थी। उसके 10 साल बाद सिंचाई मंत्रालय ने पानी के इंटर बेसिन ट्रांसफर के लिए राष्ट्रीय योजना का निर्माण किया। 1995 में केन बेतवा प्रोजैक्ट का अध्ययन किया गया। 2008 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित हुई। परियोजना की दो सुरंगों के लिए जारी निविदाओं में कम्पनियों ने रुचि नहीं दिखाई। 45 हज़ार करोड़ की इस परियोजना से 82 लाख लोगों को पेयजल और 10 लाख हैक्टेयर भूमि की सिंचाई की सुविधा मिलनी थी जो नहीं मिली।
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि सीवरेज के कारण गंगा नदी का पानी पीने और आचमन के योग्य नहीं रहा। नदियों को निर्मल और अवरिल करने के बड़े प्रयास के बावजूद महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं को न्यौता दिया गया है। दिल्ली में झाग वाली यमुना में छठ से पहले स्नान में भाजपा नेता सचदेवा को अस्पताल भर्ती होना पड़ा था। केजरीवाल ने यमुना में नहाने की चुनौती स्वीकार नहीं की और अब बोतलों में यमुना का पानी भर कर भाजपा नेता और कांग्रेस के नेताओं को पीकर दिखाने की चुनौती दे रहे हैं। दिल्ली को यमुना नदी को जल्द साफ करने के वायदे पहले भी खोखले साबित हुए और फिर होने वाले हैं। असल में मुश्किलों को हल करने की ज़िम्मेदारी वहन करने की क्षमता में भारी कमी देखी गई है। घोषणा करना एक बात है काम करना दूसरी बात है।
सुप्रीम कोर्ट, एन.जी.टी. और कैग की रिपोर्टों से साफ है कि नदियों की सफाई का अभियान लाल फीता शाही और भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। हर घर जल और सार्वजनिक शौचालय जैसी योजनाएं पानी की कमी के कारण असफल हो रही हैं। खाली खज़ाने से रेवड़ी बांटने और खोखली योजनाओं के वायदे से वोट हासिल करने की अटूट कोशिशों के खिलाफ खड़े होने का वक्त आ गया है। लोकतंत्र को नारों से नहीं स्वच्छ, साफ, सच्ची जन भागीदारी से ही बचाया जा सकता है।