केजरीवाल की हठधर्मिता ने डुबोई ‘आप’ की नैय्या

दिल्ली की 70 सदस्यों की विधान सभा हेतु हुए 2015 के चुनाव में 70 में से 67 सीटें तथा 2019 में दिल्ली की सातवीं विधानसभा चुनाव में 62 सीटें जीतकर ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) पिछले दिनों दिल्ली चुनाव की जंग हार गयी। भारतीय जनता पार्टी को जहां पूर्ण बहुमत के साथ जहां 48 सीटें हासिल हुई वहीं ‘आप’ को केवल 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। ‘आप’ के लिये सबसे बड़ा झटका यह भी रहा कि सत्ता गंवाने के साथ ही उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल सहित पार्टी के और भी कई दिग्गज नेता चुनाव हार गये। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पराजय से पार्टी के अंत की शुरुआत हो चुकी है। यदि ऐसा है तो वास्तव में इसका ज़िम्मेदार कौन है? क्या वजह थी कि  दिल्ली विधानसभा चुनाव में 43.57 प्रतिशत मत प्राप्त होने के बावजूद ‘आप’ को केवल 22 विधानसभा सीटों पर ही जीत हासिल हुई जबकि भाजपा ने मात्र दो प्रतिशत अधिक यानी 45.56 प्रतिशत मत प्राप्त कर 48 सीटों पर जीत दर्ज की। नतीजों से साफ है कि भाजपा ने त्रिकोणीय संघर्ष का लाभ उठाकर ही ‘आप’ से 26 सीटें अधिक हासिल कीं और दिल्ली की सत्ता ‘आप’ के हाथों से झटक ली। हालांकि हार के बावजूद ‘आप’ के इस तर्क को भी नकारा नहीं जा सकता कि बावजूद इसके कि भाजपा के साथ प्रोपेगंडा, सरकार की सारी मशीनरी, मीडिया, धनबल व बाहुबल सब कुछ थे, फिर भी उसे ‘आप’ से मात्र दो प्रतिशत ही ज़्यादा वोट मिले हैं। 
सवाल यह है कि 2011 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद  26 नवम्बर 2012 को देश के अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा अरविन्द केजरीवाल के राष्ट्रीय संयोजकत्व में स्थापित की गयी आम आदमी पार्टी जोकि न केवल दिल्ली में सत्ता में थी, बल्कि वर्तमान समय में पंजाब में भी सत्तारूढ़ है, वही नया नवेला राजनीतिक दल आखिर किन वजहों से और किन परिस्थितियों में इस अंजाम तक जा पहुंचा कि आज ‘आप’ के अंत पर चर्चा छिड़ गयी है? सच पूछिये तो दिल्ली में भाजपा की संभावित फतेह की सुगबुगाहट तो दरअसल उसी समय शुरू हो गयी थी जबकि ‘आप’ ने विगत अक्तूबर 2024 को हरियाणा में हुये विधानसभा चुनाव में ‘इण्डिया’ गठबंधन घटक का सदस्य होने के बावजूद राज्य की 89 सीटों पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस को हरियाणा की सत्ता में वापसी से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गौरतलब है कि कांग्रेस हरियाणा में 90 में 7 सीटें ‘आप’ के लिये छोड़ने को तैयार थी, परन्तु केजरीवाल की ज़िद थी कि कांग्रेस उसे 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने दे। इस बात पर दोनों दलों में समझौता नहीं हो सका और ‘आप’ने 89 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिये। नतीजतन ‘आप’ को राज्य भर में केवल 1.53 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए, जिन्होंने कांग्रेस को हराने व भाजपा को जिताने में अहम भूमिका निभाई। 2024 में ‘आप’ द्वारा 10 सीटें तब मांगीं जा रही थीं जबकि 2019 में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर नोटा से भी काफी कम था। इसी हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद ही दिल्ली में भी इसी तरह के चुनाव परिणाम की उम्मीद की जाने लगी थी। इसके अलावा ‘आप’ के गठन के तुरंत बाद ही जिस तरह पार्टी के संस्थापक लोगों व अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ, उसका भी मुख्य कारण केजरीवाल का ज़िद्दीपन व उनकी हठधर्मिता ही था। 
अब सत्ता से हटते ही भाजपा ने केजरीवाल को राजनीतिक रूप से समाप्त करने का प्लान तैयार कर लिया है। जहां भाजपा की गिद्ध दृष्टि अब पंजाब की ‘आप’ सरकार पर जा टिकी है वहीं भाजपा ने एमसीडी के भी फिलहाल तीन ‘आप’ पार्षद झटक लिये हैं। साथ ही केंद्रीय सतर्कता आयोग ने केजरीवाल के 6 फ्लैग स्टाफ बंगले के नवीनीकरण पर हुए बेतहाशा खर्च की जांच का आदेश भी दे दिया है। भाजपा द्वारा केजरीवाल के इस सरकारी आवास को श्शीश महल’ का नाम दिया गया था तथा इसे उनके विरुद्ध चुनावी मुद्दा बनाया गया था। 

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