अवैध प्रवासियों को लेकर सरकार को कड़ा रुख अपनाना चाहिए

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को गैरकानूनी इमिग्रेशन को रोकने के सख्त निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार से कहा है कि वह अवैध ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करे और पंजाब से अमरीका तक डंकी रूट से हो रही अवैध इमिग्रेशन को रोकने के लिए एक महीने के भीतर ठोस उपाय शुरू करे। अमरीका से बड़ी संख्या में पंजाब के लोगों के डिपोर्टेशन पर एडवोकेट कंवल पहुल सिंह ने एक याचिका दायर की थी, जिस पर मुख्य न्यायाधीश शील नागु और न्यायमूर्ति हरमीत सिंह ग्रेवाल ने ये आदेश दिए हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी है कि वह अपनी शिकायत पंजाब सरकार को भेजे और कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह 30 दिनों के भीतर इस पर क्या फैसला लिया इसकी जानकारी दे। याचिका में पंजाब के हर ज़िले में इमिग्रेशन चेक पोस्ट की मांग भी रखी गई है ताकि विदेश जाने की प्रक्रिया सही तरीके से हो और लोग धोखाधड़ी का शिकार न हों।
वैसे तो अवैध प्रवासियों के अमरीका से अमृतसर में पहले जहाज के उतरने के बाद ही फर्जी एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्यवाई का माहौल बन गया है, लेकिन दूसरे जहाज के आने के बाद अब जो चीजें निकलकर बाहर आ रही हैं, उनसे लग रहा है कि जितनी आशंका है, वास्तव में हकीकत उससे कहीं ज्यादा भयावह है। केंद्र सरकार के वकील धीरज जैन के मुताबिक जिन लोगों को अमरीका से डिपोर्ट किया गया है, उनमें से कई यूरोप पढ़ाई करने या टूरिस्ट वीजा पर घूमने गये थे, फिर वहां से ये अवैध तरीके से अमरीका पहुंचे। कहने का मतलब यह है कि अवैध प्रवासियों का चक्रव्यूह बहुत ही जटिल है और इसकी मौजूदगी भारत में ही नहीं, दुनिया के कई कोनों में मौजूद है। वास्तव में इमिग्रेशन सिक्योरिटी सिर्फ उन लोगों पर लागू होती है, जो वर्क वीजा पर विदेश जाते हैं। जब लोग कहीं घूमने या पढ़ने के लिए जाएं और वहां से डंडी मारकर कहीं दूसरी जगह निकल जाएं या वहीं गुम हो जाएं तो एक तरह से ऐसे लोग किसी भी तरह की न केवल सुरक्षा छतरी से बाहर हो जाते हैं बल्कि उन्हें कहीं पर भी वैध शिकायत दर्ज कराने की कानूनी हैसियत नहीं रहती। डंकी रूट से कई बार इन्हें खतरनाक जंगलों, जानलेवा रेगिस्तानों, भयानक समुद्री रास्तों से होकर उस देश में पहुंचना होता है, जहां ये लोग बेहतर जीवन और रोज़गार की उम्मीद करते हैं लेकिन जितने लोग भी डंकी रूट से अवैध तरीके से विदेश जाने की कोशिश में पकड़े गये हैं या विदेश से बाहर वापस भेजे गये हैं, उनमें से कोई ऐसा शख्स नहीं है, जिसने अमूमन 40 से 45 लाख रुपये खर्च करके इस नारकीय रूट के जरिये विदेश जाने की कोशिश न की हो।
इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि ये गरीब और मजबूर लोग थे, न ही यह कि इस सबके लिए पूरी तरह से सरकार जिम्मेदार है। सच तो यह है कि ऐसे लोग चाहते तो जितने पैसों में डंकी रूट से बाहर जाने की कोशिश की थी, उतने में भारत में बहुत अच्छे तरीके से कोई न कोई अपना रोजगार जमा सकते थे। इसलिए देखा जाए तो आमतौर पर ये लोग अपने लालच के लिए ही यह रास्ता अपनाया था। हालांकि इनके पकड़े जाने और इस तरह डिपोर्ट किये जाने से सिर्फ इनकी ही सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल नहीं हुई बल्कि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में देश की छवि को भी बट्टा लगा है। लेकिन इस बात के लिए तो राज्य और केंद्र के शासन प्रशासन को कटघरे में खड़ा ही किया जा सकता है कि आखिर फर्जी एजेंटों, कबूतरबाजों को, पुलिस और प्रशासन का संरक्षण क्यों कर प्राप्त हुआ, जिसके चलते इतने धड़ल्ले और इतनी बड़ी संख्या में लोग बाहर जा सके? हालांकि इस संबंधी वास्तविक तथ्य नहीं हैं कि आखिर कितने भारतीय अवैध प्रवासियों के रूप में दुनिया के अलग-अलग देशों में रह रहे हैं।
एक सर्वे के मुताबिक जो अमरीका में प्यू रिसर्च संस्थान द्वारा किया गया है, अमरीका में 7.25 लाख भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं। इतनी तो नहीं लेकिन काफी बड़ी संख्या में ऐसे ही ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ साथ मध्य पूर्व के भी कुछ देशों में रह रहे हैं। अगर विभिन्न निष्कर्षों का एक साझा अनुमान लगाया जाए तो करीब 15 से 20 लाख भारतीय दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अवैध प्रवासियों के रूप में रह रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में अवैध तरीके से लोगों को विदेश भेजने का कितना सघन जाल बिछा है और इस अपराध से कितने बड़े पैमाने पर कमाई हो रही होगी। हालांकि अमरीका से बार-बार आ रहे अवैध प्रवासियों के जहाज हमारे सम्मान को तार-तार कर रहे हैं, मगर यही मौका है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस समस्या का संज्ञान लेकर कबूतरबाजी के इस व्यापक नेटवर्क को ध्वस्त करें। क्योंकि अमरीका से अवैध प्रवासियों को बाहर खदेड़ने से अपमान का जो सिलसिला शुरु हुआ है, वह यहीं नहीं रूकने वाला। बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासियों की धड़-पकड़ ब्रिटेन में भी शुरु हो चुकी है और अगर विभिन्न मीडिया अनुमानों पर भरोसा किया जाए तो अब तक 100 से ज्यादा ऐसे भारतीय पकड़े जा चुके हैं और उन्हें जेलों में या जेलों जैसी दूसरी व्यवस्थाओं में रखा जा रहा है और आशंका है कि जल्द ही यूरोप से भी वहां अवैध घुसपैठ करके गये भारतीयों की खेपें पहुंचेंगी।
शायद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान इसी आशंका से अमरीका से आये डिपोर्टेशन के दूसरे जहाज के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को अमृतसर को अवैध प्रवासियों के भारत वापसी का अड्डा नहीं बनाना चाहिए। हालांकि यह राजनीतिक टिप्पणी है, लेकिन इन अवैध प्रवासियों की बड़ी संख्या के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि बहुत कलंकित हो रही है। इसकी वजह यह भी है कि अवैध प्रवासन का मुद्दा सिर्फ अवैध प्रवासन तक ही नहीं सीमित बल्कि मानव तस्करी, सीमा सुरक्षा, आतंकी गतिविधियां भी इनके साथ जुड़ी जाती हैं, इस कारण भारत की प्रतिष्ठा तार तार हो रही है। यह साधारण बात नहीं है कि अवैध होने के कारण और नैतिक रूप से देश का सिर झुका होने के कारण ही भारत अमरीका से जोरदार तरीके से प्रवासियों के साथ किये गये उसके दुर्व्यवहार पर सख्त आलोचना नहीं कर सका। हम वास्तव में पूरे आत्मविश्वास से अपने ऐसे लोगों की सुरक्षा कहीं भी नहीं कर सकते, जो गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त पाये गये हों। इसीलिये अमरीका ने हमारा राजनयिक स्तर पर अपमान करने के लिए जो कर सकता था किया। विपक्ष जोर देकर कह रहा है कि हमारी सरकार ने इस मामले में भारत के अवैध प्रवासियों का बचाव नहीं किया और उनके लिए खड़ी नहीं हुई पर क्या कोई सरकार गैर कानूनी गतिविधियों में संलिप्त लोगों के लिए नैतिक साहस के साथ खड़ी हो सकती है? यह ठीक है कि भारत में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी है और लोगों को बेहतर जीवन की तलाश के लिए बाहर जाने का हक है, लेकिन लोग बाहर जाने के पहले यह तो तय कर लें कि वैध तरीके से जाएं। आज इन अवैध प्रवासियों के ही नाम और चेहरे पर भारत के बारे में धारणाएं बनाना, बहुत आसान है कि भारत गरीबों और भुखमरों का देश है। यह भी निश्चित बात है कि कोई अवैध प्रवासी, तब तक अवैध प्रवासी नहीं बन सकता, जब तक कि वह अपने ही देश से षड़यंत्र करके बाहर न निकले। सरकार को इस मामले में सख्त रूख अपनाना ही चाहिए कि प्रवासियों के बाहर जाने की गहन और ईमानदारी से जांच पड़ताल हो ताकि फर्जीवाड़ा के चलते कोई बाहर न जाए। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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