वैनिटी वैन का किस्सा
जब से बी.पी.एस.सी. में धांधली हुई है। और छात्र नेता प्रशांत किशोर जी धरने पर बैठे हुए हैं। तो सत्ता में काबिज और विपक्षियों की नींद उड़ी हुई है। सब लोग गाय को सरापने लगे हैं। लेकिन सरापने से गाय थोड़ी ही मरती है। यहां ये बताने की भी ज़रूरत है कि जो गाय है दरअसल वो गाय नहीं है। हर खाल में भेंडिया बैठा हुआ है। और जो कौआ आप देख रहे हैं। वो कौआ नहीं है। जो गाय को सराप रहा है। बल्कि वो रंगा हुआ सियार है। प्रसिद्ध कहावत है ना कि ‘बरबादे गुलिस्तां करने को एक ही उल्लू काफी है। अंजामे गुलिस्ता क्या होगा जब हर शाख पर उल्लू बैठे हैं।’ तो यहां हर कोई कौआ है। माफ कीजियेगा गिद्ध है। सब जनता को नोंच खाना चाहते हैं। गाय सिर्फ जनता है। ये नया दौर है सोशल इंजीनियरिंग का। समाज और उसके लोगों के मानस को पढ़ने का। कुछ नया किया जाये। यह कहकर लोगों को बरगलाया जा रहा है। स्थितियां जस की तस हैं। सब लोग सब्ज बाग दिखा रहें हैं। हर राजनीतिक चेहरे के पीछे भेंडिया छिपा है। सब भेंडों को ठंडी में कंबल मिलना है। उनके ही ऊन से।
खैर, यहां बात धांधली पर नहीं हो रही है। लेकिन धांधली की बात कोई नहीं करना चाहता। धांधली से बड़े-बड़े मुद्दे इस देश में हैं। बाबड़ी और कुंए हैं। देश में जो रिफाइन और आटा महंगा हो रहा है। इसकी बात लोग नहीं करते। डाटा भी महंगा हो रहा है। आटा के बिना जैसे लोग नहीं रह सकते। वैसे ही लोग अब डाटा के बिना नहीं रह सकते। लोग आटा, डाटा, तेल, रिफाइन और कॉपी-पेंसिल से आगे सोच ही नहीं पा रहा है। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद अब डाटा भी आदमी की ज़रूरत बन गयी है। लेकिन सरकार के पास इसका कोई डाटा नहीं है। कि कितने लोगों को रोज़गार किस साल मिला। किसान ने भरपेट खाया या नहीं। आखिर आम-आदमी इतना तनावग्रस्त क्यों है?
इलीट होना इधर एक तरह से गुनाह सा हो गया है। जनता के ऊपर ये बात लागू नहीं होती। जनता की हालत तो कुछ ऐसी है कि बेचारी ‘नहायेगी क्या और निचोड़ेगी क्या?’। निचोड़ तो नेताजी और उनकी राजनीति रही है। सारी बातें जो लागू होती हैं। वो राजनीति में रंगे हुए सियारों के ऊपर लागू होती है। जो कौआ की शक्ल में गिद्ध हैं। गाय के भेष में लोमड़ी हैं। इलीट सब हैं। लेकिन इलीट होने या दिखना कोई नहीं चाहता। इलीट होना गर्मागर्म गुलाब जामुन को खाने सरीखा है। खाना सब चाहते हैं। लेकिन गर्म होने के चलते निगलने में परेशानी हो रही है। एक इलीटिया दूसरे इलीटिया पर यह आरोप लगा रहा हैं कि तुम इलीट तो तुम इलीट। अभी इलीट होने का इल्जाम गांधी मैदान पर अनशन में जुटे लोगों पर लगाया जा रहा है। जो विद्यार्थी हैं। जो लालटेन में अपना भविष्य फोड़ रहे हैं।
तुम इलीट की तुम इलीट। ये चारों दल के इलीटिया प्रवक्ता अपने-अपने दल का बचाव कर रहें है। कोई कहता है कि जो वैनिटी वैन है। वो चार करोड़ की है। कोई कहता है कि वैनिटी वैन का किराया पच्चीस हजार का है। जनता इनसे जानना चाहती है कि आपके कथनी और करनी में आखिर इतना फर्क क्यों है? चुनावों में जो आपका जो स्टेज बनता है, वो कितने में बनता है, पच्चीस हजार में। आप जो चौपर में घूमते हैं। क्या वो फोकट में बन जाता है। ये बात अलग है कि जिसने आपको सोशल इंजीनियरिंग करके राजनीति के पाठ सिखाये। वो आज आपके गले में हड्डी बन गया है। राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा। कहा नहीं जा सकता। राजनीति का गुर जिसको सिखाया। वही उनको काटने को दौड़ा रहा है। कल तक जिसके गलबहियां डाले आप थकते नहीं थे। उससे उनकी सौतनडाह है। मीडिया भांड बनी वैनिटी वैन का दाम जानना चाहती है। उसको इस बात की जानकारी चाहिए कि वैनिटी वैन में क्या है? मीडिया के छिछोरे लोग आम लोगों की ज़रूरत, परेशानियियों को टी.वी. पर नहीं दिखाते। छात्रों की समस्याओं से उनको कोई मतलब नहीं है। सब लोग सत्ता की चाटुकारिता में लगे हैं। उनके एजेंड़े में कुंए और बावड़ियां हैं।