‘वुमन ऑफ द ईयर-2025’ की सूची में शामिल हुई डॉ. पूर्णिमा बर्मन
भारतीय जीव विज्ञानी और वन्यजीव संरक्षणवादी डा. पूर्णिमा देवी बर्मन को टाइम पत्रिका की ‘वुमन ऑफ द ईयर-2025’ सूची में शामिल किया गया है। असम की निवासी डॉ. बर्मन इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल होने वाली अब तक की एकमात्र भारतीय महिला हैं, जिन्हें उन्हें असाधारण वन्यजीव संरक्षण कार्य के लिए सम्मानित किया गया है। डा. बर्मन ने ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क (हर्गिला) के संरक्षण के लिए ‘हर्गिला आर्मी’ नामक एक महिला केंद्रित आंदोलन की शुरुआत की जिसने स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाते हुए इस दुर्लभ पक्षी की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि की है। उनके प्रयासों से असम में सारस पक्षी की इस विशेष जाति की संख्या पिछले कुछ सालों में 450 से बढ़कर अब 1800 से ज्यादा हो गई है। उनके नेतृत्व में महिलाओं की हर्गिला आर्मी ने न केवल पक्षी संरक्षण में योगदान दिया है बल्कि महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से भी सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। क्योंकि उनकी इस पहल के कारण महिलाएं हर्गिला के चित्रों वाले वस्त्र बनाकर बड़ी आसानी से अपनी अजीविका कमा रही हैं।
गौरतलब है कि डा. बर्मन को साल 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनपीई) द्वारा ‘चैंपियन ऑफ द अर्थ’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, जो पर्यावरण के क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार समझा जाता है। बहरहाल डॉ. पूर्णिमा देवी बर्मन के टाइम वुमन ऑफ द ईयर-2025 की सूची में शामिल होने पर असम के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा भी उन्हें बधाई दी गई है और उन्हें एक प्रेरणा स्रोत के रूप में सराहा गया है। डा. पूर्णिमा देवी बर्मन का समर्पण और प्रयास न केवल वन्यजीव संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है बल्कि सामाजिक परिवर्तन और महिला सशक्तिकरण के मामले में भी वह एक मिसाल कायम कर रहा है। मालूम हो कि साल 2020 में टाइम मैगजीन द्वारा ‘वुमन ऑफ द ईयर’ सूची की शुरुआत की गयी, जिसमें हर साल दुनियाभर की 12 विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही सर्वोच्च महिलाएं चुनी जाती हैं।
असम के कामरूप क्षेत्र में जन्मीं पूर्णिमा देवी बर्मन ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पर्यावरण विज्ञान और वन्यजीव विज्ञान में विशेषज्ञता के साथ जियोलोजी में मास्टर डिग्री की है, साल 2007 में अपने पीएचडी शोध के दौरान उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति ने एक पेड़ से ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क (हर्गिला) का घोंसला काटकर गिरा दिया, तब उन्होंने पाया कि यह पक्षी अपनी बनावट और मांसाहारी प्रकृति के कारण बुरा लगता है। यह देखकर पूर्णिमा देवी ने अपनी पीएचडी छोड़कर स्थानीय लोगों को इस पक्षी के पर्यावरणीय महत्व के बारे में समझाना शुरु किया और लगातार कई सालों तक किये गये अपने विनम्र प्रयास के कारण आज यहां के लोगों का इस विशेष सारस प्रजाति के प्रति बेहद खास लगाव पैदा हो गया है, जिस कारण अब ये यहां बेफिक्र होकर उड़ते हैं। अब इनकी संख्या में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। पूर्णिमा देवी ने पहले कुछ लोगों को इस पक्षी के पर्यावरणीय महत्व को समझाया और फिर उन लोगों को भी इसके बचाव अभियान में शामिल कर लिया। इस तरह वह लगातार लोगों को इस अभियान के साथ जोड़ती रहीं, जिन्हें हर्गिला आर्मी के नाम से जाना जाता है, इसमें अधिकतर महिलायें हैं जो सारस हर्गिला के बचाव का काम करती हैं।
डा. पूर्णिमा देवी बर्मन ने हर्गिला को बचाने के लिए अरण्यक संगठन बनाया और उसमें उन्होंने वरिष्ठ वन्यजीव विज्ञानी के रूप में काम किया। डा. पूर्णिमा देवी वुमन इन नेचर नेटवर्क इंडिया की निदेशक भी हैं और आईयूसीएन स्टॉर्क, आईबीआईएस और स्पून विन स्पेशलिस्ट ग्रुप की सदस्य भी हैं। इस दुर्लभ पक्षी हर्गिला को बचाने के लिए सबसे पहले उन्होंने इसे लेकर लोगों की धारणा बदली। 16 साल तक किये गये अपने अथक प्रयासों के बाद उन्होंने कामरूप कामाख्या क्षेत्र में 10 हजार महिलाओं की हर्गिला आर्मी टीम तैयार की है, जो इस पक्षी के घोसलों की सुरक्षा करती हैं। घायल सारसों की देखभाल करती हैं और नवजात सारसों के जन्म पर बेबी सावर जैसी परंपराओं को अपनाकर संरक्षण को समाज से जोड़ने का काम कर रही हैं। उनके अथक प्रयासों के चलते आज ग्रेटर एडजुटेंट सारस को आईयूसीएन (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ) द्वारा ‘संकटग्रस्त’ से ‘निकट संकटग्रस्त’ श्रेणी में लाया जा चुका है। उनकी पहल केवल सारस संरक्षण तक ही सीमित नहीं रही, उन्होंने स्थानीय महिलाओं को बुनाई कॅरियर की ओर भी प्रेरित किया है और उनके लिए करघे तथा धागे उपलब्ध कराकर हर्गिला आकृति वाले कपड़े बनाकर बेचने का एक मजबूत बिजनेस तैयार किया है।
पूर्णिमा देवी बर्मन को साल 2017 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है, जो उन्हें भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा प्रदान किया गया था। उसी वर्ष उन्हें ब्रिटेन की राजकुमारी एनी द्वारा प्रस्तुत व्हिटली अवार्ड (ग्रीन ऑस्कर) से भी सम्मानित किया गया। दुनिया की मशहूर टाइम पत्रिका की वुमन ऑफ द ईयर सूची का उद्देश्य उन महिलाओं को सम्मानित करना होता है, जिन्होंने अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया होता है और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाला होता है। वास्तव में यह पहल महिलाओं की उपलब्धियां पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए बनायी गई है। इस सूची की शुरुआत 2020 से हुई थी और अब तक के इतिहास में टाइम ने पहली बार वुमन ऑफ द ईयर परियोजनाओं के तहत 100 महिलाओं को सम्मानित किया। टाइम की इस सूची में दुनिया के एक से बढ़कर एक महत्वपूर्ण शख्सियतें शामिल की जा चुकी हैं। लेकिन डा. पूर्णिमा देवी बर्मन भारत की तरफ से इस सूची का हिस्सा बनने वाली अकेली महिला हैं किसी और भारतीय को यह सम्मान नहीं मिला है।
डा. बर्मन को आज भी याद है कि किस तरह उन्होंने 2007 के उस दिन जब एक पेड़ को कटते देखा, जिसमें ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क यानी बृहद सारस के परिवार का घर था और वह कुछ महिलाओं के साथ जब पेड़ काटने वालों से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो सभी ने उन्हें घेर लिया और उन पर सीटी बजाना शुरु कर दिया। एक पल को उन्हें इस सबसे बहुत डर लगा था, लेकिन फिर अपनी जुड़वां बेटियों को याद करके इन सारस पक्षियों के बच्चों को जीवित रखने में अपना काफी वक्त लगाया। इस घटना का जिक्र सुनकर वो अभी भी भावुक हो जाती हैं। आज असम में इस दुर्लभ पक्षी को लेकर लोगों में खूब जानकारी है और वो इन्हें अपने अस्तित्व के लिए ज़रूरी समझते हैं और सब डा. पूर्णिमा देवी बर्मन को धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने उनके अंदर इस दुर्लभ पक्षी प्रजाति के लिए दया और करुणा का संचार किया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर