शिल्प एवं सौन्दर्य से भरपूर है मोढेरा का सूर्य मंदिर
अधिकांश पर्यटन प्रेमी जानते हैं कि भारत में उड़ीसा के कोणार्क में विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है मगर बहुत कम लोग जानते होंगे कि एक नहीं, भारत में दो विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर हैं। एक है देश के पूर्वी छोर यानी उड़ीसा राज्य में, इसका नाम है कोणार्क सूर्य मंदिर, जो अपने आप में काफी प्रसिद्ध है। दूसरा है देश के पश्चिमी छोर यानी गुजरात राज्य में बना हुआ मोढेरा सूर्य मंदिर।
गुजरात में महेसाणा से 25 कि.मी. और अहमदाबाद से 106 किलोमीटर दूर स्थित मोढेरा गांव का सूर्य मंदिर पुष्पावती नदी के किनारे स्थित है। यह पाटन की प्रसिद्ध कलाकृति रानी की वाव से 30 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
पुराणों में है उल्लेख:
इस मंदिर का जिक्र कई पुराणों में भी आता है। स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि प्राचीन काल में मोढेरा के आसपास का पूरा इलाका धर्मारण्य के नाम से जाना जाता था। सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् 1026-1027 ई. में इस मन्दिर का निर्माण किया गया था। सोलंकी राजा सूर्यवंशी थे और सूर्य को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसीलिए उन्होंने अपने आद्य देवता की पूजा के लिए इस भव्य सूर्य मंदिर बनाने का निश्चय किया, इसके चलते मोंढ़ेरा के सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ। वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और इस मन्दिर में पूजा करना निषिद्ध है।
मंदिर का इतिहास
इस सूर्य मंदिर परिसर का निर्माण एक ही समय में नहीं हुआ था। मुख्य मन्दिर, चालुक्य वंश के भीमदेव प्रथम के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। इससे पहले 1024-25 के दौरान, गजनी के महमूद ने भीम के राज्य पर आक्रमण किया था। उसने मोढेरा के सूर्य मंदिर पर भी भीषण आक्रमण किया व लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इसी के साथ उसने संपूर्ण मंदिर का विध्वंस किया व मूर्तियों को खंडित कर दिया। इतना ही नहीं, उसने मुख्य मूर्ति को भी खंडित कर दिया व यहां से सभी सोना व आभूषण लूटकर अपने साथ ले गया। तब लगभग 20,000 सैनिकों की उनकी टुकड़ी ने उसे मोढेरा में रोकने का असफल प्रयास किया था।
ऐसा भी माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी के हमले ने मंदिर को खंडित कर दिया था। फिलहाल इसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को अपने संरक्षण में ले लिया है। इस मंदिर में पूजा करना इसीलिए निषिद्ध है क्योंकि यह देश के खंडित मंदिरों की श्रेणी में आता है।
क्या कहते हैं जानकार
इतिहासकार ए.के. मजूमदार के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण इस रक्षा के स्मरण के लिए किया गया हो सकता है। परिसर की पश्चिमी दीवार पर, उल्टा लिखा हुआ देवनागरी लिपि में ‘विक्रम संवत 1083’ का एक शिलालेख है, जो 1026-1027 ईस्वी के अनुरूप ही ठहरता है। इसके अतिरिक्त मोंढेरा के सूर्य मंदिर के निर्माण के बारे में कोई अन्य तिथि नहीं मिलती है। मान्यता है कि चूंकि शिलालेख उल्टा है, यह मन्दिर के विनाश और पुनर्निर्माण का प्रमाण है। शिलालेख की स्थिति के कारण, यह दृढ़ता से निर्माण की तारीख के रूप में नहीं माना सकता है।
मुख्य भाग : इस मन्दिर परिसर के मुख्य तीन भाग हैं- गूढ़मण्डप (मुख्य मन्दिर), सभामण्डप तथा कुण्ड (जलाशय)। इसके मण्डपों के बाहरी भाग तथा स्तम्भों पर अत्यन्त सूक्ष्म नक्काशी की गयी है। कुण्ड में सबसे नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं तथा कुछ छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।
शैलीगत आधार पर, कहा जा सकता है कि इस मंदिर के साथ कुंड 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। शिलालेख को निर्माण के बजाये गजनी द्वारा विनाश की तारीख माना जाता है। इसके तुरंत बाद भीमदेव सत्ता में लौट आए थे। इसलिए मंदिर का मुख्य भाग, लघु और कुंड में मुख्य मंदिर 1026 ई. के तुरंत बाद बनाए गए थे। 12वीं शताब्दी की तीसरी तिमाही में द्वार, मंदिर के बरामदे और द्वार और कर्ण के शासनकाल के दौरान कक्ष के द्वार के साथ नृत्य कक्ष को बहुत बाद में जोड़ा गया था ।
एक कथा इस मंदिर के साथ जुड़ी है। कहा जाता है कि जब श्री रामचंद्र ने रावण का वध किया तो उन्हें बताया गया कि वे ब्रह्म हत्या के दोषी हो गए हैं । तब ब्रह्महत्या के पाप निवारण के लिए वे मोढेरा आए और यहां आकर उन्होंने हवन यज्ञ आदि के द्वारा स्वयं को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त कराया था। इसीलिए इस मंदिर के साथ बने हुए सूर्यकुंड को रामकुंड के नाम से भी जाना जाता है।
बेजोड़ स्थापत्य
यह सूर्य मन्दिर विलक्षण स्थापत्य और शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है। इस मंदिर के निर्माण में जोड़ लगाने के लिए कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। ईरानी शैली में बने इसे राजा भीमदेव प्रथम ने दो हिस्सों में बनवाया था जिसमें पहला हिस्सा गर्भगृह का और दूसरा सभामंडप का है। स्तंभों को नीचे की ओर देखने पर वह अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने से वह गोल नज़र आते हैं। मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार किया गया था गर्भगृह में अंदर की लंबाई 51 फुट, 9 इंच और चौड़ाई 25 फुट, 8 इंच है।
प्रतीकात्मक निर्माण
इस मंदिर में 52 स्तंभ हैं जो वर्ष के 52 सप्ताहों को प्रदर्शित करते हैं। हर स्तंभ पर इतनी अद्भुत व बारीकी से तराशी की गयी है। इन स्तंभों पर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों के अलावा रामायण और महाभारत के प्रसंगों को बेहतरीन कारीगरी के साथ दिखाया गया है। सूर्य भगवान की वर्ष भर में 12 दिशाओं के अनुसार 12 रूप दिए गए है। साथ ही मंदिर की चारों दिशाओं में दिशा के अनुसार ही देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। इसके शिल्प एवं सौंदर्य को देखकर इसे गुजरात का खजुराहो मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में खजुराहो जैसी ही नक्काशी वाली मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं।
इस मंदिर को इस कुशलता के साथ बनाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह को रोशन करती है। निर्माण के समय कहा जाता है कि यह किरण सीधे भगवान सूर्य की मूर्ति के मस्तक पर पड़ती थी। मंडप में सुन्दरता से गढ़े पत्थर के स्तम्भ अष्टकोणीय योजना में खड़े किये गये है जो अलंकृत तोरणों को आधार प्रदान करते हैं। मंडप की बाहरी दीवारों पर चारों ओर आले बने हुए हैं जिनमें 12 आदित्यों, दिक्पालों, देवियों तथा अप्सराओं की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं।
कैसे पहुंचें
यदि आप यहां दर्शन करने का विचार कर रहे हैं तो यहां तक पहुंचने के लिए आपको हवाईजहाज, रेल, बस इत्यादि सभी की सुविधा आसानी से मिल जाएगी। यदि आप प्लेन या ट्रेन से आने का सोच रहे है तो नजदीकी हवाई अड्डा अहमदाबाद हवाई अड्डा है व सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन भी अहमदाबाद का रेलवे स्टेशन है। यहां से आगे आप बस या निजी वाहन से यात्रा कर सकते हैं। और हां, जब आप मोंढेरा का मंदिर देखने जाएं इस तरह जाएं तो टाइमिंग ऐसी रखें कि सर्दियों में 2 बजे से 3 बजे के बीच और गर्मियों में 4 बजे से छह बजे शाम क्योंकि इस वक्त जाने से आप आराम से मंदिर और इसके बराबर में बना हुआ म्यूजियम भी आराम से देख पाएंगे और बाद में सूर्यास्त के पश्चात होने वाली खूबसूरत लाइटिंग का भी आनंद ले सकेंगे। (उर्वशी)