दिलचस्प है बीना राय की फिल्मों में एंट्री 

फिल्म ‘अभिमान’ (1973) का प्लाट यह है कि गायक सुबीर कुमार (अमिताभ बच्चन) अपनी पत्नी उमा (जया भादुड़ी, अब जया बच्चन) को प्रेरित करता है कि वह अपना गायकी का करियर जारी रखे और उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करे। लेकिन उनके वैवाहिक जीवन में उस समय कलह व तनाव हो जाता है जब उमा गायन में सुबीर से अधिक सफल हो जाती है। 
‘अभिमान’ की यह कहानी बीना राय और प्रेमनाथ के जीवन पर आधारित है। हालांकि प्रेमनाथ मधुबाला के प्रेम में पागल थे और उनसे शादी करना चाहते थे, लेकिन यह विवाह बीना राय के अनुसार दोनों के धार्मिक अंतर के कारण न हो सका। यह वजह सही प्रतीत नहीं होती क्योंकि धार्मिक अंतर के बावजूद मधुबाला ने आखिरकार किशोर कुमार से तो शादी की। दरअसल, असल कारण यह था कि फिल्म ‘तराना’ की शूटिंग के दौरान मधुबाला दिलीप कुमार को अपना दिल दे बैठीं थीं। इसे लेकर प्रेमनाथ दिलीप कुमार से नाराज़ भी रहे। यह बात स्वयं प्रेमनाथ ने एक इंटरव्यू में बतायी थी। बहरहाल, मधुबाला से अलग होने के बाद प्रेमनाथ जब फिल्म ‘औरत’ की शूटिंग कर रहे थे तो फिल्म की हीरोइन बीना राय, जो बहुत सुंदर व प्रतिभाशाली कलाकार थीं, से इश्क कर बैठे। दोनों ने जल्द ही शादी कर ली। उन दिनों शादी करने के बाद अधिकतर अभिनेत्रियां फिल्मों से अलग हो जाया करती थीं ताकि पारिवारिक जीवन का निर्वाह कर सकें, लेकिन प्रेमनाथ ने बीना राय को प्रोत्साहित किया कि वह फिल्मों में काम करना जारी रखें। फिर कुछ ऐसा हुआ कि बीना राय कामयाबी की सीढियां चढ़ती रहीं, ‘अनारकली’, ‘घूंघट’ व ‘ताजमहल’ जैसी कालजयी फिल्मों ने उन्हें शुहरत व सफलता की बुलंदी पर पहुंचा दिया, जबकि दूसरी ओर प्रेमनाथ का करियर ग्राफ नीचे की तरफ जाने लगा। उन्हें हीरो के रोल मिलने बंद होने लगे। उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस खोला, बीना राय को ही अपनी फिल्मों में हीरोइन लिया, लेकिन कोई फिल्म न चली, जबकि प्रदीप कुमार के साथ बीना राय की जोड़ी निरंतर हिट फिल्में दिए जा रही थी। 
सफलता के इस अंतर से उनके पारिवारिक जीवन में कलह व तनाव रहने लगा। सन्यासी बनने के लिए प्रेमनाथ पहाड़ों की ओर निकल गये। अनेक वर्षों तक वह मायानगरी से दूर रहे। आखिरकार अपने परिवार को बचाने और दो बेटों (प्रेम किशन व कैलाश नाथ) के भविष्य की खातिर बीना राय ने 28 फिल्मों में अभिनय करने के बाद बड़े पर्दे को, ‘अपना घर अपनी कहानी’ (1968) में काम करने के बाद अलविदा कह दिया, यह अलग बात है कि फिल्म ‘घूंघट’ के लिए फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार पाने वाली बीना राय जब 68 वर्ष की विधवा थीं तब भी उन्होंने एक इंटरव्यू में अपनी आयु के अनुरूप फिल्मों में किरदार अदा करने की इच्छा व्यक्त की थी। बीना राय की कुर्बानी के बाद प्रेमनाथ बॉलीवुड में लौट आये और सफलतापूर्वक फिल्मों में चरित्र व खलनायक के किरदार निभाने लगे। अनारकली का नाम आते ही जहन में अब तो मधुबाला का नाम आता है, लेकिन ‘मुगले-आज़म’ के रिलीज़ होने से सात साल पहले बीना राय ने पर्दे पर अनारकली बनकर अपनी अमिट छाप छोड़ी थी और दर्शक उन्हें ‘नशे में नृत्य’ करते हुए देखने के लिए बार-बार सिनेमाघरों का रुख करते थे। 
कृष्णा सरीन के रूप में बीना राय का जन्म 13 जुलाई, 1931 को लाहौर में हुआ था। देश विभाजन के समय उनका परिवार कानपुर में बस गया। बीना राय ने लखनऊ जाकर आईटी कॉलेज में प्रवेश लिया, कॉलेज के मंचों पर नाटकों में हिस्सा लेने लगीं और इस तरह उनकी अभिनय में दिलचस्पी बढ़ती रही। उनका फिल्मों में प्रवेश करने की दो अलग-अलग कहानियां बतायी जाती हैं। एक यह कि टैलेंट कांटेस्ट में उन्होंने हिस्सा लिया, उसे जीता, परिवार से बॉम्बे जाने के लिए भूख हड़ताल की, ज़िद की जिसे आखिरकार मान लिया गया और वह फिल्मों का हिस्सा बन गईं। दूसरा यह कि किशोर साहू ने उन्हें लखनऊ में एक नाटक में काम करते हुए देखा, उनके अभिनय से प्रभावित हुए और उन्हें नया नाम बीना राय देकर फिल्म ‘काली घटा’ में काम करने का ऑफर दिया। यह फिल्म 1951 में रिलीज़ हुई, बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल न कर सकी, लेकिन बीना राय की सुंदरता व प्रतिभा ने सब को प्रभावित किया। निर्माता उन्हें अपनी फिल्मों में लेने के लिए उतावले हो गये।   
बीना राय का दिल का दौरा पड़ने से 6 दिसम्बर, 2009 को मुंबई में निधन हो गया। वह 78 वर्ष की थीं। हालांकि बीना राय ने अपने दौर के लगभग सभी एक्टर्स के साथ काम किया, लेकिन प्रदीप कुमार के साथ ‘अनारकली’ (1953), ‘ताजमहल’ (1963) व ‘घूंघट’ (1960) में उनकी जोड़ी सबसे सफल रही और इन्हीं फिल्मों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा, ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’, ‘पांव छू लेने दो’ जैसे कालजयी गीतों के लिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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